रंजना बिष्ट
पिछले वर्ष दिसम्बर २०१५ को भारतीय नदी दिवस के अवसर पर नदियों की दुर्दशा के बहाने मौजूदा जल संकट के कारण को उजागर करते हुए पर्यावरणविद अनुपम मिश्र , उनकी स्मृति को सादर नमन !
राजनीति की ही तरह आज वॉटर लेवल भी बहुत नीचे गिरता जा रहा है। यह बात ‘गांधी मार्ग’ के संपादक व जाने माने पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र ने 28 नवंबर को इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हैरिटेज के सभागार में आयोजित ‘भारतीय नदी दिवस’ के अवसर पर कही। तीन दिवसीय इस कार्यक्रम में रामस्वामी अय्यर स्मृति व्याख्यान में अनुपम मिश्र ने नदियों से जुड़ने उनके स्वभाव और विज्ञान को समझने और उनको बचाने के बहाने अपने को बचाने की बात कही।
इस अवसर पर दिल्ली के जलमंत्री कपिल मिश्रा ने स्कूली छात्रों के सवालों के जवाब देते हुए कहा कि यमुना के पानी को तीन साल के भीतर साफ करने के लिए उनकी सरकार प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली जल बोर्ड के पास इतना ट्रीटेड वॉटर है कि उससे अन्य काम किए जा सकते हैं। यमुना साफ करने की योजना में लोगों का जुड़ना जरूरी है। लोगों को नदियों पर निर्भरता की जानकारी नहीं है। इसके लिए जागरूकता की आवश्यकता है। सरकार की योजना डीसेन्ट्रलाइज्ड सीवर सिस्टम बनाने की है जिससे गंदगी अपनी जगह पर साफ हो जाएगी। समाज में होने वाला बदलाव और गंदगी नदियों में साफ दिखती है समाज बदलेगा तो नदियों में भी बदलाव नजर आएगा। नदियों में धार्मिक अनुष्ठानों के नाम पर डाले जाने वाली सामग्री के संदर्भ में उन्होंने कहा कि जब कोई चीज धर्म से जुड़ जाती है तो कानून उसे रोक नहीं सकता। उन्होंने कहा कि वास्तव में नदियां सीवर के कारण गंदी हुई है फूल-पत्ती, पूजा के सामान से नहीं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में बताया कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में भी नदियों के विषय को शामिल किया जाएगा, वॉटर डाक्यूमेंट्री के माध्यम से बच्चों को जानकारी दी जाएगी। नदियों की सफाई क्यों जरूरी है यह बात वे समझ सकेंगे।
इस अवसर पर नदीयों के संरक्षण के क्षेत्र में योगदान के लिए ऐमुअल थियोफिलिप्स जिन्होंने उत्तराखंड की महाकाली नदी, मोन नदी क्षेत्रीय संघ को अरूणाचल प्रदेश में मोन नदी और तवांग जिले के संरक्षण, दूधातोली लोक बचाओं संघ के सच्चिदानंद भारती को उत्तराखंड की नदी गाड गंगा तथा संभव ट्रस्ट राजस्थान को नंदू नदी के संरक्षण के लिए भागीरथ प्रयास सम्मान से नवाजा गया। कार्यक्रम में ‘यमुनाः कल, आज और कल’ विषय पर प्रदर्शनी भी आयोजित की गई जिसका उद्घाटन जल मंत्री कपिल मिश्रा ने किया।
‘नदी विज्ञान’ विषय पर बोलते हुए अनुपम मिश्र ने कहा कि नदी के विज्ञान को लेकर अवैज्ञानिक मान्यताएं चल पडी है। पिछले कुछ सालों से भ्रष्टाचार की तरह नदियां साफ हो रही है मगर फिर भी नदियां साफ नहीं दिखती। योजनाओं में बहुत पैसा खर्च हो रहा है। इनको चलाने वाले लोग देश के बडे़ बुद्धिजीवी हैं उनके पास पैसा भी र्प्याप्त है। इस देश के सबसे अच्छे लोगों को चुनकर ही सरकार ने एक समन्वय की समिति बनाई है। आईआईटी के प्रोफेसर उसके संयोजक है। तो क्या नदियां हमारी जिद्दी हैं जो साफ नहीं होना चाहती या उसका विज्ञान है जो हम समझ नहीं पा रहे हैं। सबसे पहले हमें नदी का धर्म समझना होगा। उनका धर्म है बहना। हम उसको बहने नहीं दे उसका स्वभाव बदल दें और फिर सोचे कि वह साफ हो जाएंगी यह संभव नहीं है। नदियां पहले स्वतः बहती थी। मगर आज उनका मार्ग अवरूद्ध किया जा रहा है।
नदियां अपने उद्गम से लेकर अंत तक अनगिनत तरह से हमारा जीवन सहज बनाती थी। नदियों के नाम देवियों के नाम पर रखे हुए मिलेंगे जिनमें आशा, उत्साह और सम्मान का भाव मिलेगा। जिन नदियों का स्वभाव उजियाला फैलाने का था वह गंदी कैसे हो गई। हमने अपना स्वभाव बदल दिया हम विकसित हो गए। हमें अपने शहर, उद्योग और खेतों के लिए पानी चाहिए। पानी की जरूरत पहले भी पड़ती थी मगर अब हमारी प्यास बड़ी हो गई है। हम तकनीक और विज्ञान का गलत उपयोग करना सीख गए है। पानी का स्वभाव है कि वह ऊपर से नीचे गिरता है। हमने पानी के स्वभाव के विपरीत काम किया है। पानी का स्वभाव एंटी ग्रेविटी वाला बना दिया है। लाखों ट्यूबवैल खोद दिए।
दिल्ली की बात यदि की जाए तो एक समय में यहां 800-900 के करीब छोटे-बडे़ तालाब हुआ करते थे। शहर में जमीन की कीमते बढ़ी तो यह सभी तालाब हमने पाट दिए जिससे कुछ करोड़ हासिल हो जाएं। पानी दूर से आ जाएगा यह सोचने लगे। दिल्ली में कई जगहों का नाम तालाब के नाम पर पड़ा है जैसे हौजखास, तालकटोरा आदि। यह तालाब अपने शहर में बरसने वाले पानी को बडे़ प्यार से अपने में समा लेते थे और पानी की एक-एक बूंद छानकर नीचे पहुंचती थी जिसे अच्छे कुओं के जरिए हम ऊपर निकाल लेते थे। धौलाकुआं नाम से ही जाहिर होता है स्वच्छ पानी का स्रोत, यह कुआं संगमरमर का बना हुआ सफेद कुआं था आज ढूंढने पर भी नहीं मिलेगा। इन सब तालाबों और कुओं का मतलब था वह दिल्ली को बाढ़ से बचाते थे और उसका भूजल संवर्धन करते थे। इसी कारण शहर के किनारे से एक साफ सुथरी नदी बहती थी।
सन 70 में यमुना के 32 घाट हुआ करते थे। इनमें जल उत्सव होते थे। हिन्दू और मुसलमान पहलवानों के अखाडे़ थे। इनका एक सामाजिक काम था। शहर के बच्चों को तैरना सिखाते थे। बच्चें एक नारियल, फूल, अगरबत्ती और गंडा बांधकर शिष्य बनते थे। यह बच्चें नदी के किनारे जितने मेले लगते थे लोगों को डूबने से बचाने का काम करते थे। पूरे शहर में उत्सव के पोस्टर लगते थे। बरसात में तैराकी प्रतियोगिता आयोजित की जाती थी। दिल्ली में उन दिनों गाना शादी ब्याह एक गाना चलता था ‘फिरंगी नल मत लगवाई दियो’ लोग नल के पानी को पीने योग्य नहीं समझते थे मगर आज सभी जगह नल का पानी पहुंच गया है। हमें अब आस-पास के पानी की कोई जरूरत नहीं रही। मगर सौ साल की इस गतिविधि से हमारे शहर का स्वभाव बदला है।
इन दिनों अंग्रेजी और हिंदी के अखबारों में मानसून के आने की खबरें लगातार छपती हैं जिस दिन मानसून आता है पूरे शहर और गली मोहल्लों में पानी भर जाता है। उदाहरण के लिए हाल ही में चेन्नई की स्थिति देख लीजिए जहां पहली बार पानी ने पहली मंजिल की सीढ़िया चढ़ी। जब 900 तालाब सारे पाट दिए गए हो तो बरसात का पानी कहां जाएगा। चूंकि हमने नदी के विज्ञान को नहीं समझा और अविज्ञान के कारण ऐसी स्थिति पैदा हुई। कहीं बाढ और कहीं सूखा पड़ रहा है। पिछले दिनों सिंतबर में महाराष्ट्र के नागपुर में मानसून की विदाई भी नहीं हुई कि वहां पहले ही अकाल घोषित हो गया। जिस राज्य में सबसे ज्यादा बांध हैं और वह कुछ नहीं कर पाता। देश में राजनीति का लेवल भी बहुत नीचे गिर रहा है और वॉटर लेवल भी नीचे गिर रहा है। इसे ऊपर लाने के लिए अच्छी राजनीति करनी होगी। हम, तुम, आप कई तरह की पार्टियां हैं मगर नदी साफ नहीं हो पा रही है। इनमें से किसी का भी षडयंत्र नहीं है कोई भी नदी को गंदा नहीं करना चाहता। हमें यह ध्यान रखना है कि हमें इसी राजनीति में से बेहतर विकल्प तलाशना होगा। हर युग का अपना एक विचार होता है इस युग का विचार है ‘विकास’। विकास का यह झंडा ऐसा है कि इसके आगे बाकी सब झंडों का रंग फीका पड़ गया है। सब विकास के झंडे के आगे नतमस्तक हैं।
इममें कभी-कभी यह भी सुनने को मिलता है कि नदियां व्यर्थ समुद्र में पानी बहा रही हैं, उनका काम ही बहना है। जितने अच्छे लोग हैं चाहे वह सहिष्णु हो या असहिष्णु वह नदी के मामले में विकास के मामले सौ प्रतिशत सहमती रखते हैं कि यही विकास है। हमें ऐसे ही लोगों के जरिए नदी जोडों जैसी योजनाएं मिल जाती हैं। एक मराठी कहावत का जिक्र करते हुए कहा कि ‘रावणा तोडी रामायण’ रावण रामायण गाके सुना रहा। यह विकास का रावण है जो एक दिन अपनी कहानी जरूर सुनाएगा और हम उसका हिस्सा न बने इसके लिए कुछ संस्थाएं प्रयासरत हैं ऐसी गोष्ठियां आयोजित होती रहें जिसमें सभी लोग मिले और नदी के बारे में जाने और समझे इस प्रकार नदी को बचाने के बदले हम अपने को बचा सकेंगे।
(यह लेख यथावत पत्रिका में पिछले वर्ष प्रकाशित है )
No comments:
Post a Comment