केसरी नंदन
"सैफरन वार" डॉक्यूमेंट्री फिल्म एक ख़ास संप्रदाय को बढावा देती है । यूपी राज्य के गोरखपुर जिले को केन्द्र में रखकर इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म को बनाया गया है । डॉक्यूमेंट्री फिल्म में गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ का भटकाउ भाषण व हिन्दुत्व की विचारधारा वाले कटट्र समर्थक लोगो को दिखाया गया है। फिल्म की शुरूआत योगी आदित्य नाथ के भाषण से शुरू होती है अंत भी भाषण पर ही खत्म होता है।
फिल्म में पूरे हिन्दू धर्म को केवल केसरिया रंग पर दिखाया गया है। जिसका निष्कर्ष परिणामस्वरूप भगवा आतंक या हिन्दू धर्म आंतकवादी है। हिन्दू धर्म आतंकवादी है इस पर जोर दिया गया है । फिल्म में केवल एक पक्ष को लेकर बात की गई है जिसमें पीडित पक्ष को निर्बल व शोषक पक्ष को राजा जैसा व्यावहार करतें देखने को मिलता है। किसी धर्म को लेकर इतनी फूहडता दिखाना ठीक है क्या ? फिल्म में कई दंगो का जिक्र देखने को मिलता है । लेकिन सारे दंगे धर्म को लेकर किये गये है, यह दिखाया गया है । कहा तो नही जा सकता पर इसकी संभावना जरूर है, कि सारे दंगे धर्म को ही लेकर नही अपितु राजनैतिक दृष्टि को भी लेकर हो सकतें हैं । जिन पर इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में कोई बात ही नही हुई है। इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म को एक पक्ष में बनाने के दो कारण हो सकतें है । पहला तो यह कि हिन्दू मुस्लमान में नफरत का बीज बोना । दूसरा यह कि ऐसी फिल्म बनाने पर लाभ व पापुलर्टी दोनो मिलती है।
डाक्यूमेंट्री फिल्म में कुछ दृष्य को पूरी तरह से एक तरफा होकर दिखाया गया है जो पूरे हिन्दू समाज को बदनाम करता है। दंगे में मारे गये मुसलमानो का दृष्य और उनके परिजनो का सवांद ,सवेदनहीन तरीके से प्रस्तुत किया गया है मानो जो प्रश्नकर्ता है वह बस भूमिका बना रहा हो और पीडित उसे सवांर ने का काम कर रहा है। गोरखपुर जिले के कुछ क्षेत्रो का नाम बदल दिया गया मसलन उर्दू बाजार को हिन्दी बाजार ,मीना को माया व अली नगर को आर्य नगर का नाम दिया गया । फिल्म में इस बात को दंगे के सदर्भ से जोडा गया है । डाक्यूमेंट्री फिल्म में यह तो दिखाया गया है कि नाम बदला गया है पर यह नही दिखाया गया है कि क्यो बदला गया है इसके पीछे क्या तर्क है ।
ऐसी डॉक्यूमेंट्री फिल्म समाज में नफरत को बढावा और धर्मनिरपेक्षता की तौहीन करती है । इससे साफ स्पष्ट होता है कि फिल्म मात्र राजनैतिक लाभ के लिए बनाई गई है । कई दृष्य धरातल की वास्तविकता तो दिखातें है ,लेकिन उनका महत्व तब गिर जाता है जब उसके विपक्ष में उसका तर्क नही मिलता । डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता इस बात का ध्यान रखतें है कि समाज के समक्ष, उस विषय की तटस्थता दिखाई जाए, जिसका दर्शक स्वयं निर्णय ले सके । तटस्थता का अभाव है जिससे विश्वसनीयता कम होती है ।
आबेडकर कॅालेज
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