प्रीति कुमारी
हमारे देश में एक वेश्या और एक अभिनेत्री को अलग- अलग नज़रिया से देखा जाता है। ऐसा क्यों? आखिर क्या अंतर है ?दोनों में जो हमारे समाज मे लोगों का नजरिया इतना अलग है।अभिनत्री वो चीज़ है जो टी. वी पर झूठा स्वांग रचती है। जो लोगों का मनोरंजन करने और चंद पैसे कमाने के लिए अपनी शरीर की सुंदरता का इस्तेमाल करती है। परंतु वेश्या वो है,जो ये शौक से नहीं करती वल्कि किसी न किसी मज़बूरी वश पापी दुनिया मे धस्ती चली जाती है।वेश्या वो होती है जो लाखों लड़कियों की इज्ज़त अपनी इज्ज़त बेचकर बचाती है। भूखे भेडियों के सामने अपना शरीर का सौदा करती है। भले ही पटकथा,नाटक हॉलीवुड, वॉलीवुड इत्यादि में ये सिर्फ मनोरंजन का माध्यम होगा परंतु सत्य तो ये ही अभिनेत्री के गंदे प्रदर्शन के कारण बहुत सीे मासूम वेश्या बन जाती है। कुछ बच्चियां को तो बचपन में ही कुछ दरिन्दे चंद पैसो के लिए उन्हें कोठे पर बेच देते है फिर उन्हें पूरी ज़िंदगी कोई ,स्वीकार नहीं करता ।एक वेश्या का कलंक लेकर पूरी जिंदगी घूमती है। जिस से वो मासूम बड़े होते -होते माँ बाप द्वारा रखा गया नाम तो मानो जैसे भूल ही जाती है। और एक नया नाम का नामकरण हो जाता है वेश्या.....
वेसेे लड़कियों का दाव पर लगाना तो रजा- महाराजा के काल से चला आ रहा है। जैसे पंच पांडवो ने अपनी पत्नी द्रोपदी को दाव पर लगाया था। बस आज फर्क इतना है की ये पहले खुलेआम नहीं होता था। जैसा की आज होता है ।ये सब बदला है क्योंकि हमारा समाज बदलना नहीं चाहता जिसे में एक कविता के माध्यम से समझाना चाहुंगी।
अबी स्थिति बदल गई।
नपाप हरकत बढ़ गई।
हर मोड़ पर एक शैतान खड़ा।
पुलिस भी उस वक्त आँखे मुद बैठी रही।
जहाँ घटना घटती रही।
बस काली कमाई कहती रही।
ज्वारिओ और समाज के ठेकेदाेरों और नेतओ के पीछे दम घूमती रही।
घटना घाट जाने पर आत्महत्या का मामला करार देती रही।
आखिर ये घड़ा का फूटेगा।
आखिर ये समाज कब सुधरेगा।
निर्भया हत्या कांड तो इसका जीता- जागता उद्धारण है।उसे तो एक ने नहीं कई लोगो ने लूटा.... जिस मासूम को अपना शिकार बनाया और गुड्डा गुडियां का खाले समझकर खेला। गुडिया को ख़राब हो जाने के बाद नंगा कर रोड पर फैेंका। क्या ये ही पहचान है इंसानीयत कीे ? आखिर क्यों नहीं समझता वो इंसान। जब इस काम को अंजाम देता है। मेरा भी घर - पतवार होगा। क्यों नहीं सोचता उस कीे भी बेटी होगी? वो भी बड़ी होगी वो भीे घर की दिवार फांदेगी। उस पर पर भी लोगों की नज़र पड़ेगी ।फिर वो भी आँखों में खटकेगी। जैसे ही वो बढ़ेगी फिर उसे बेटी की चिंता सताएगी। लेकिन हम सिर्फ दोष एक ही इंसान को नहीं दे सकते। किसी एक ही इंसान को नहीं दे सकते।
कुछ हमारे ज्यादा हीे आधुनिक बनने की दिशा ने इंसान को पागल हीे कर दिया है।टी.वी अभिनेत्री की इस प्रदर्शन के कारण भी नई पीढ़ी काफी प्रभावित हुई है।आज के युवा पीढ़ी अभिनेत्रियो को मनोरंजन के तौर पर तो देखते है। वही दुसरी तरफ किसी आम लड़की के साथ नापाक हरकत को अंजाम देते है। इसके लिए बहुत से लोग तो लड़कियों की तस्करी,लेन- देन और कुछ लोग तो उन्हें कोठे पर ही बेच देते है। और समाज से बंचित कर बेश्या बना देता हैऔर इसका एक ही कारण है आशिक्षा। आशिक्षा ही इन सब का सबसे बड़ा दुशमन है।
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