Wednesday, 1 March 2017

विज्ञान दिवस का जश्न मनाये या मातम

श्रेया उत्तम
28 फरवरी के दिन को देश में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है भारतीय विज्ञान एवम प्रौद्योगिकी विभाग के द्वारा 28 फरवरी 2009 को देश के 5 संस्थानों को विज्ञान संचार के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। यह पुरस्कार व्यक्तिगत, सरकारी एवम गैरसरकारी संस्थानों को देश में विज्ञान को प्रसिद्ध करने के प्रयास के लिये दिये गये। 2017 के विज्ञान दिवस का विषय "योग्य व्यक्तियों के लिये विज्ञान और तकनीक" है। यह बहुत ही प्रशंसनीय है कि देश दिन-प्रति दिन विज्ञान के क्षेत्र में ऊंचाइयों को छूता जा रहा है। फ़िर चाहे आप बात 5 नवम्बर 2013 को 2 बजकर 38 मिनट पर मंगल ग्रह की परिक्रमा करने हेतु आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसऍलवी) सी-25 के द्वारा सफलतापूर्वक छोडे गये उपग्रह की हो या फ़िर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा पौधों से बिजली बनाने की तकनीक को अपनाना हो। हालही में भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 104 सेटेलाइट कामयाबी के साथ अंतरिक्ष में प्रवेश कराकर एक नया इतिहास बना दिया है।


देश के विज्ञान का विजयरथ जैसे जैसे आगे बढ़ता जा रहा है उसके अश्व रूपी वैज्ञानिक जो की इस रथ को खींच रहे हैं उनकी अचानक एवम रहस्यमयी हो रही मौतों ने एक बेहद गम्भीर एवम चिंता का विषय देश के सामने उत्पन्न कर दिया है। नेशनल साइंस फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में भारतीय मूल के वैज्ञानिकों में 2003 से  2013 के बीच 85% वृध्दि हुई है। शायद यही कारण है की यह उनके अंदर डर पैदा कर रहा है की कहीं भारतीय प्रतिभा पर ही अमेरिका निर्भर ना हो जाये। इसीलिये ये भड़ास शायद रंगभेद, नस्लभेद जैसे बेबुनियाद मुद्दों पर फालतू की बहस छेड़ कर निकल रही है पिछले दिनों 22 फरवरी को अमेरिका के कंसास शहर में 32 वर्षीय भारतीय इँजीनियर "श्रीनिवास कुचीभोटला ओलेथ" की हत्या कर दी गयी। एवम उनका साथी आलोक मदासानी घायल हो गया। उसके पहले 10 फरवरी को तलँगाना के निवासी एवम भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर "वम्शी रेडडी ममिडाला" की कलिफौर्निया में एक व्यक्ति ने हत्या कर दी। उससे पहले की कुछ घटनाओं में नज़र डाले तो  RTI के उपलब्ध किये गये डाटा से पता चलता है की 2010 से  2014 के बीच अनेक भारतीय परमाणु   वैज्ञानिकों की अचानक मौतें हुई थी। भारत की सबसे अधिक शक्तिशाली पनडुब्बी "आईएनएस अरिहंत" के उच्च पद पर कार्यरत वैज्ञानिक "के के जोश" और "अभीष शिवम" रेल की पटरी में मृत पाये गये। उनके शरीर पर किसी भी निशान अथवा खरोंच का ना पाया जाना ये साबित करता है की  इनकी मौत किसी दुर्घटना अथवा ट्रेन की टक्कर से नहीं हुई थी। इसी प्रकार परमाणु वैज्ञानिक "लौक्नाथन महालिंगम" की भी हत्या हुई। 23 फरवरी 2010 को 'बीएआरसी'  परमाणु वैज्ञानिक "एम लायर" अपने घर में मृत पाये गये। उनको ब्रेन हैम्रेज हुआ था लेकिन पुलिस से इस केस में भी कोई खोज नहीं की और उसे अस्पष्ट घोषित कर दिया।



अप्रैल, 2011 को वैज्ञानिक "उमा राव" का मृत शरीर प्राप्त हुआ और इस केस को भी आत्महत्या घोषित कर दिया गया जबकि उमा के परिवारजनों ने इसे आत्महत्या मानने से इनकार कर दिया था। भारत सरकार के अनुसार 2010  से  2014 के बीच 9 वैज्ञानिकों की अप्राकृतिक ढंग से मौतें हुई है। इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है की जिस प्रकार देश की प्रतिभा का सफाया हो रहा है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की इन मौतों को पुलिस ने या तो आत्महत्या या अनसुलझी पहेली बनाकर छोड़ दिया था । भारत सरकार एवम मीडिया किसी का भी ध्यान इन मौतों पर नही गया था। सी वी रमण, होमी जहांगीर भाभा, वीश्वेश्व्रैया जैसे महान वैज्ञानिकों की धरती के वैज्ञानिक इस प्रकार अगर अनसुलझी मौत का शिकार होते रहेंगे तो हम राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के दिन अपनी सफलताओं का जश्न मनाये या फ़िर इन वैज्ञानिकों/ इन्जीनियर्स की मौतों का मातम मनाया जाये और विज्ञान दिवस के दिन भी अगर कोई इन मौतों  पर सवाल नहीं उठाता है  तो देश की प्रतिभा का आसानी से सफाया किया जाता रहेगा। और जब ऐसी प्रतिभा नहीं बचेगी तो 2017 की विज्ञान दिवस की थीम के अनुसार फ़िर किन योग्य व्यक्तियों के लिये एवम किन योग्य व्यक्तियों के द्वारा विज्ञान और तकनीक बचायी जायेगी । 

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