राम नरेश
साल के शुरुआत यानि जनवरी माह से दिल्ली विश्वविद्यालय के सभी महाविद्यालयों में शोर-गुल होना शुरू हो जाता है. यह शोर गुल अब स्वाभाविक हो गया है अगर ऐसा न हो तो पता ही नहीं चलेगा कि आप दिल्ली वि. वि. जैसे बड़े संस्थान में पढ़ते हैं, होना भी चाहिए आखिर दिल्ली वि.वि. के पास काफी फंड है, इस बात का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है कि हर महाविद्यालय में दो से तीन दिन का महोत्सव मनाया जाता है जिसमे कई प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं. कार्यक्रम अंतिम दिन में मनोरंजन के लिए किसी एक कलाकार या गायक सभी छात्रों का मनोरंजन के लिए बुलाया जाता हैं, मनोरंजन के नाम पर सिर्फ 'शोर गुल' और समय तथा धन की बर्बादी ही नजर आती है ।
कई बार तो यह होता है कि किसी ऐसे सिंगर को बुलाया जाता है जिसके बारे में वहां पढ़ रहे छात्रों को पता भी नही होता । यह सब बजट पर और स्पोनसरशिप पर टिका हुआ होता है, जिसका जितना बड़ा बजट होगा वह उतना महंगा आयोजन करवाएगा । छात्रों के पास तो DU का कार्ड होता है वह अपनी क्लास छोड़कर निकल जाते हैं इस प्रकार के गैर जरुरी प्रोग्राम को सुनने, इसमें ज्यादा से ज्यादा रूचि प्रथम वर्ष में आए छात्र दिखाते हैं, क्योंकि उनके लिए सब कुछ नया जो होता है, लेकिन इस नए के चक्कर में कई दिन की पढाई का नुकसान होता है उसकी किसी को परवाह नहीं होती । .....लेकिन इस शोरगुल के बीच कई प्रतियोगिताएं में छात्रों को जीतने पर बहुत अच्छी इनाम राशि प्राप्त होती है जिससे वह अपना पढाई का खर्च वहन कर सके. मगर इसका लाभ चंद छात्रों तक सीमित है, ज्यादातर छात्रों को इसमें समय और धन की बर्बादी नजर आती है.
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