Monday, 25 September 2017

चहारदीवारी के भीतर भी सुरक्षित नहीं हैं बेटियाँ

सोम प्रभ 
इस देश का साधारण से साधारण आदमी बनारस हिंदू यूनीवर्सिटी में आंदोलन कर रही छात्राओं की माँग समझ सकता है। यह खास तौर पर उन लोगों के लिए लिख रहा हूँ जिन्हें यह पूरा मुद्दा ठीक से नहीं समझ आया है कि क्या है। ऐसे काफी सारे लोग मेरी सूची में हैं जिनका बनारस, दिल्ली से संपर्क नहीं है। वे इसे समझें और अपने आस-पास के लोगों को बिना किसी अतिश्योक्ति के बताएँ । हुआ क्या? पहले तो यह समझिए की बीएचयू एक बड़ी सी चहारदीवारी के भीतर बसा हुआ विश्वविद्यालय है।क़िले जैसा। यह वैसा नहीं है जैसे अपने जनपद में होता हैं जहाँ आवारा जानवर घुस जाते हैं। बीएचयू के भीतर इसकी भी व्यवस्था है। जैसे कुत्तों को पकड़ने के लिए भी प्रशासन की गाड़ी घूमती रहती है।इसके कई गेट हैं। गेट पर और कैंपस के भीतर सुरक्षाकर्मी होते हैं। 

बनारस हिंदू यूनीवर्सिटी में कैंपस के भीतर तमाम फ़ैकल्टी हैं जहाँ कक्षाएँ चलती हैं। कैंपस के भीतर ही हॉस्टल हैं। एक क़तार में लड़कों का हॉस्टल और एक क़तार में आख़ीर में लड़कियों का हॉस्टल। सब कुछ बहुत व्यवस्थित और भव्य लगता है। लेकिन यह यूनीवर्सिटी में काफी समय से चला आ रहा है कि अपने हॉस्टल से आती-जाती लड़कियों पर कुछ लड़के अभद्र टिप्पणियाँ करते थे। इधर कुछ साल से इसमें और तेज़ी आ गयी। यहाँ तक कि खुलेआम कैंपस के भीतर लड़कियों को घेरकर छेड़खानी की गयी आदि। विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और विरोध में लड़कियाँ धरने पर बैठ गयीं। उनकी माँग थी कि सुरक्षा के लिए कुछ बंदोबस्त किया जाए और उन्हें न्याय दिया जाए।बंदोबस्त भी कैसा हो कि कुछ कैमरे लगा दिए जाएं और रास्तों पर गॉर्ड हों। कई घंटों तक बीस-बाइस साल की लड़कियों ने तमाम तरह के ख़तरे उठाते हुए बहुत हिम्मत से इस माँग के लिए प्रदर्शन किया। और प्रशासन ने बिना बात किए लाठी चार्ज कर दिया जिसमें कई लड़कियाँ घायल हो गयीं। प्रशासन ने नियम बना रखा है कि शाम 6 बजे के बाद लड़कियां हॉस्टल के भीतर रहें। लड़कियाँ इसका भी विरोध करती रही हैं। हो सकता है कि आपको लगे कि यह तो ठीक नियम है और ऐसा होना ही चाहिए। इसके लिए आपको ध्यान देना होगा कि ऐसा कोई नियम लड़कों पर लागू नहीं होता है। 

चलिए एक बार इसे भी छोड़ देते हैं कि अपने समाज में लड़कों के लिए तो कोई ख़तरा नहीं है तो उन्हें आवारा जानवरों की तरह रात भर घूमने, खाने-पीने की आज़ादी दी जा सकती है लेकिन लड़कियाँ कैंपस के भीतर आज़ादी चाहती हैं वे बनारस में विचरण की माँग नहीं कर रही हैं। कैंपस जो बड़ी सी चहारदीवारी के भीतर है और वहाँ रहने वाले लोगों के लिए घर की तरह है जहाँ वे शाम को ही क़ैद हो जाती हैं। वह भी तब जब विश्वविद्यालय सुरक्षा के नाम पर काफी रूपया खर्च करता है और कैंपस के भीतर प्रशासन की गाड़ियाँ पेट्रोलिंग करती रहती हैं। यहाँ तक आपको समझ में आ गया होगा कि मुद्दा हमारी बच्चियों से जुड़ा हुआ है। आगे क्या हो सकता है? आपको बताया जा सकता है कि यह लड़कियां राजनीतिक दल की कार्यकर्ता हैं। और कौन से राजनीतिक दल की। वाम संगठन यानी लाल झंडे वाली।लाल झंडे वाले कौन हैं। वे भगवा संगठनों के विरोधी हैं।अब इसमें लाल और भगवा कहाँ से आ गया? तो जो भी भगवा सरकार का आलोचक है उसे लाल झंडे का बताओ। और जो यहाँ का वीसी है वह आरएसएस का आदमी है। तो आसान काम क्या है कि जरूरी मु्ददे को दबाओ और राजनीति कर दो। राजनीति से क्या फ़ायदा होगा? आपको, मुझे लगेगा कि यह तो मुद्दा ही नहीं है। यह तो सरकार को बदनाम करने के लिए किया गया और दूसरा इससे वीसी अपने राजनीतिक आकाओं को खुश कर लेगा। आका कौन भगवा रंग वाले? वे खुश क्यों होंगे? वह इसलिए कि इससे फिर साबित हो जाएगा कि भाजपा की सरकार को बदनाम किया जा रहा है। क्योंकि सरकार तो कहती है कि बेटियों को आगे बढ़ाओ। 
उत्तरप्रदेश की सरकार ने एंटी रोमिया दस्ता ही बना दिया। लेकिन ज़मीन पर तो कुछ हुआ नहीं। अब अगर इतने दस्ते और फ़ौज के बाद भी लड़कियों को प्रताड़ित किया जा रहा है तो सरकार की बदनामी हो जाएगी। तो तरीक़ा क्या है कि असली बात को दबा दो।असली बात को जानना हो तो कहाँ जाना चाहिए? अपने आस-पास। हक़ीक़त सबको पता है। नारा तो दे दिया लेकिन किया कुछ नहीं, वैसे ही जैसे पिछले ने दिया थ उससे भी बड़े नारे दे दिए।नारा क्या दिया सबका साथ सबका विकास। और सोच कैसी? कि बेटिया पढ़ गईं तो चार आवाज़ें और हो जाएँगी। और ये आवाजें किसके घर की होंगी? हमारे-आपके घर की होंगी।सरकार से और ताक़तवर लोगों की मनमानी पर सवाल करने की समझ आ जाएगी। फिर जो देशभक्त विधायक और सांसद ढूँढने पर भी नहीं मिल रहा है, आपका काम नहीं करता उसे भी जवाबदेह होना पड़ेगा। 

सोचिए किसी रोज आप ऐसे ही किसी मुद्दे पर धरने पर बैठ गए और लाठी पड़ी तो क्या करेंगे।आपके बारे में अफ़वाह फैला दिया कि यह सरकार को बदनाम करने के लिए किया तो क्या करेंगे। क्या करेंगे जब आप दबंगों, ठेकेदारों, भ्रष्ट तंत्र की शिकायत ले जाएँगे और कहा जाएगा कि यह तो देश विरोधी काम कर रहा है। बीएचयू के मामले में लाठी चार्ज के बाद यह शुरू हो गया है।और इससे हासिल यह होता है कि एक नक़ली व्यवस्था को चमका पोंछकर दिखाते रहना कि हम नागरिकों के लिए बहुत काम किया जा रहा है। सोचिएगा कि आप किसी राजनीतिक दल को और उसके चापलूसों के समर्थन में क्यों खड़े होंगे जो आपके बेटे-बेटियों को विरोधी राजनीतिक गुट का साबित करने में लग गए हैं।जिनका वास्तव में उससे कोई दूर-दूर तक संबंध नहीं है। कुछ न समझ में आए तो सोचना कि सरकार ने क्या कहा था और आस-पास को देखना।आस-पास के थानों का माहौल क्या है पता ही है। रात और दिन पुलिस वाले ट्रक रोककर वसूली कर रहे हैं कि नहीं कर रहे हैं।काम के लिए पैसा देना पड़ता है कि नहीं देना पड़ता है। और जो सड़क को जून में दुरूस्त हो जाना था उस पर गड्ढे बढ़े हैं कि नहीं बढ़े हैं। और कुछ न समझ में आए तो आती-जाती बिजली को देखना जो होली पर कम आती थी और ईद पर ज्यादा आती थी।अगर सब काम हो रहा है। अधिकारी सुन रहे हैं। भ्रष्टातार बंद है। ज़ोर जबरदस्ती बंद है। सबका साथ सबका विकास हो रहा है तो एक बार जोर लगाकर बोलना भारत माता की जय और लाठी चार्ज का समर्थन करना।

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