संजय कुमार बलौदिया/श्रीकृष्णा
सोशल मीडिया की सामाजिक भूमिका विषय मीडिया
स्टडीज ग्रुप द्वारा गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित कार्यक्र्म में पत्रकार
दिलीप खान ने कहा कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाला उपभोक्ता और उत्पादक दोनों
की भूमिका में होता है। उपभोक्ता चीजों को पढ़ता ही नहीं है बल्कि कमेंट या
स्टेट्स के जरिये चीजों को प्रोड्यूस भी करता है। सोशल मीडिया पर सच और झूठ की
जांच करना बहुत आसान है। किसी भी व्यक्ति को पहले उस फोटो को अपने कंप्यूटर पर सेव
करना होता है जिसके सच और झूठ की पड़ताल करनी है। गूगल पर सर्च वाय इमेज के जरिये
उस फोटो को अपलोड करना होता है। फोटो अपलोड करते ही फोटो की सारी हिस्ट्री आ जाती
है। लेकिन इसका भी इस्तेमाल नहीं किया जाता और यहां तक कि बड़े-बड़े मीडिया हाउस
भी इसका शिकार हो जाते हैं।
शनिवार को इस मौके पर न्यूज लॉड्री के संपादक
अतुल चौरसिया ने कहा कि 2011 में अरब देशों में आंदोलन, भारत में अन्ना आंदोलन हुआ
तथा ऑक्यूपाइ वॉल स्ट्रीट के नाम अमरीका में पूंजीवाद के खिलाफ कंपैन में कहीं न
कहीं सोशल मीडिया की भूमिका सामने आई थी। इसने लोगों में जोश पैदा किया और लगा कि
एक वैकल्पिक माध्यम आ गया है। लेकिन इस उत्साह के बाद जब स्थिरता आई तो यह चुनौती
सामने आई कि राजनीतिक सामाजिक विकल्पता बनी हुई है। मिस्र में हुस्नी मुबारक की
सत्ता खत्म कर दी लेकिन वहां पर कोई पॉलिटिकल सिस्टम नहीं आया। सोशल मीडिया में
अराजकता वाली जिस स्थिति में छोड़ दिया जाता है वो एक बड़ा ड्रॉपबैक अभी सोशल
मीडिया में है।
मीडिया शिक्षक डॉ. सुभाष गौतम ने कहा कि 15-17
प्रतिशत इंटरनेट का उपयोग वाले लोग पूरी जनता यानी हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
लेकिन इस मायने में एक खास तरह के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनकी इंटरनेट
तक पहुंच है। सोशल मीडिया के हवाले से कॉरपोरेट मीडिया झूठ का प्रचार कर रहा है।
जामिया मीलिया इस्लामिया के मीडिया शोधार्थी विनीत उत्पल के कहा कि 2014 और 2015
में फेसबुक पर मुस्लिम, मुसलमान, इस्लाम जैसे शब्दों को सर्च किया और उसमें 100 कमेंट वाले 673
पोस्ट मिली। इस शोध में सामने आता है कि ऑनलाइन मीडिया में मुसलमानों के खिलाफ
नफरत फैलाई गयी है। कई चैनलों में संपादक रह चुके वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन ने
बताया कि सोशल मीडिया पर हर व्यक्ति अपना कंटेंट जनरेट करता है। दुनिया में जो भी
तब्दीली आयी है वह लिखे हुए शब्दों से आयी है। अंत में इस कार्यक्रम का समापन करते
हुए वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने कहा कि तकनीक सबके पास है और सब उसका इस्तेमाल
कर सकते हैं लेकिन यही पर्याप्त होता है। उस साधन का सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक स्थितियों में
परिवर्तन के लिए इस्तेमाल करना ही महत्वपूर्ण होता है। मसलन देश में सबको वोट देने
का अधिकार है लेकिन एक गरीब और ईमानदार आदमी चुनाव नहीं जीत सकता
है, वह केवल वोट दे सकता
है। इस कार्यक्रम का आयोजन मीडिया स्टडीज ग्रुप ने भारतीय जीवन बीमा निगम के सहयोग
से किया था।
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