Sunday, 5 August 2018

सोशलिस्ट युवजन सभा के राष्ट्रिय अध्यक्ष नीरज कुमार से विशाल जोशी और प्रदीप साह से बातचीत

प्रश्न : आप सोशलिस्ट युवजन सभा के अध्यक्ष हैं | समाजवाद में आपकी गहरी रुची हैं | अगस्त क्रांति (भारत छोड़ो आन्दोलन) में समाजवादियों कि क्या भूमिका रही हैं ?
उत्तर : इस क्रांति का मूलमंत्र महात्मा गांधी ने दिया था - 'करो या मरो' | उसमें आचार्य नरेन्द्र देव का सहयोग उन्हें मिला था क्योंकि प्रस्ताव तैयार करते समय वे भी वर्धा में थे | लोहिया 9th अगस्त को ही भूमिगत हो गए थे और अपनी गिरफ़्तारी तक आन्दोलन चलाते रहे | जयप्रकाश नारायण जान हथेली पर रखकर हजारीबाग जेल से फरार हुए और अगस्त क्रांति के हीरो बने 1942 का आन्दोलन आज़ादी के आन्दोलन में और सोशलिस्ट आन्दोलन में एक उच्चतम बिंदु था | उसमें नौजवान और खासकर सोशलिस्ट उभर कर आए और अपना पूरा दायित्व निभाया | इस आन्दोलन के जो महत्वपूर्ण नेता थे, वे सोशलिस्ट ही थे, वे चाहें अचुत्य पटवर्धन हों, डॉ. लोहिया हों, युसूफ मेहर अली हों, अरुणा आसफ अली हों या जयप्रकाश नारायण हों | 
प्रश्न : सोशलिस्ट पार्टी और उसकी युवा इकाई सोशलिस्ट युवजन सभा अगस्त क्रांति दिवस पर हर साल आन्दोलन करती हैं इसका क्या कारण हैं ?
उत्तर : राष्ट्रिय आन्दोलन और खासकर उसके अंतिम संघर्ष के मूल्यों, आदर्शों तथा मान्यताओं को अगर प्रसारित नहीं तो कम-से-कम बचाए रखने कि जिम्मेदारी समाजवादियों पर हैं | महात्मा गाँधी ने और उसके बाद भारत के समाजवादियों ने आजादी की लड़ाई को केवल अंग्रेजी हुकूमत के खात्में तक ही सीमित नहीं रखा था, बल्कि एक सुनहले समाज का सपना देखा था, उसका एक मोटा खाका खिंचा था, एक जीवन-दार्शन प्रस्तुत करने की कोशिश की थी | सबका आधार था - आत्मनिर्भरता और सादगी | उनके कल्पना में निहित था कि भारत के नागरिक ज्ञान-विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का विकास अतृप्त एवं असीमित इच्छाओं को संतुष्ट करने और उन्हें बढाने के दुश्चक्र में फंसने के लिए नहीं बल्कि उन्हें तृप्त तथा सीमित करने के लिए करेंगे | स्वाभाविक तौर पर वह व्यवस्था विकेन्द्रित होती, प्रत्येक नागरिक की आवश्यक जरूरतें पूरी होती और नागरिकों के बीच जीवन स्तर का अंतर न्यूनतम होता | वैसी व्यवस्था में एक ऐसे मनुष्य का सृजन होता जो केवल अपनी इकाई के हित को ही सर्वोपरि नहीं मानता बल्कि अपने को समाज का अभिन्न अंग मानकर सामाजिक दायित्व पूरा करने के लिए बराबर रुची लेता |
आजादी की इस अंतिम लड़ाई के 76वें साल में स्थिति ठीक उलटी है | गाँव की आत्मनिर्भरता के बदले भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व-अर्थव्यवस्था के साथ समायोजन के नाम पर फिर गुलाम बनाने का मुहीम छेड़ दिया गया है | पूरी नीति और कार्यक्रम अधिक-से-अधिक एक-चौथाई लोगों की सुख-सुविधा के लिए बनाए जा रहे हैं | विडम्बना यह हैं कि बाकी तीन-चौथाई लोग उन सुख-सुविधाओं की मृग-मरीचिका के पीछे पागल होकर दौड़ रहे हैं | परिणामतः पूरा समाज मानसिक तौर पर इस आपा-धापी में लगा है और जाने-अनजाने इस व्यवस्था को मजबूत कर रहा है | जो व्यक्ति या समूह इसकी असलियत समझते भी हैं, उनमें या तो निराशा घर कर रही है, या इतने बिखरे हैं कि कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रहे हैं | ऐसी स्थिति में सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट युवजन सभा का दायित्व बनता हैं कि आज़ादी के मूल्यों विचारों के माध्यम से आज के समस्या को जनता के सामने लायें यही काम हम लोग कर रहे हैं |
प्रश्न : वर्त्तमान शिक्षा व्यवस्था पर आप क्या कहना चाहेंगे ?
उत्तर : सोशलिस्ट युवजन सभा मानती है कि उच्च शिक्षा के बाजारिकरण की नींव सन 1999 में भारत सरकार ने यूनेस्को को पेश अपने पर्चे में डाल दी थी इस पर्चे में तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री ने दावा किया था कि उच्च शिक्षा सार्वजनिक हित के लिए नहीं हैवरन यह महज  व्यक्तिगत हित का 'बिकाऊ मालहैइसलिए इसकी किमत छात्रों को व्यक्तिगत तौर पर ही चुकानी चाहिएन कि सरकार को आगेसन 2000 में प्रधानमंत्री की 'आर्थिक मामलों की परिसदको पेश अम्बानी-बिड़ला रपट ने कहा कि सरकार को उच्च शिक्षा को पैसा देना बंद करके इसे पूरी तरह बाज़ार के हवाले कर देना चाहिए और बाज़ार तय करेगा कि क्या पढाया जाए,कैसे पढाया जाए यानी ज्ञान पर बाज़ार का पूरा कब्जा हो जाएगा इस क्रम को आगे बढाते हुए भारत सरकार ने अगस्त 2005 में विश्व व्यापार संगठन के पटल पर उच्च शिक्षा का अपना 'संसोधित प्रस्तावरख दिया यानी उच्च शिक्षा के दरवाजे बाज़ार के लिए खोलने की पेशकश कर दी हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार से उच्च शिक्षा से सम्बंधित विश्व व्यापार संगठन के प्रस्ताव से  हट जाए, नहीं तो सरकार को ही हट जाना चाहिए | क्योंकि केंद्र में इसके बने रहने का अर्थ होगा भारत की उच्च शिक्षा को उन विदेशी कॉर्पोरेट घरानों को बेच वैश्विक पूंजी के निर्देशन और हित में कार्य कर रहे हैं और भारत के युवाओं के हितों के विरुद्ध हैं, जिसका दुष्परिणाम राष्ट्र की संप्रभुता के लिए चुनौती पैदा होना तथा छात्रों को उच्च शिक्षा से वंचित करना होगा | निजिकरण एवं बजारिकरण से शिक्षा न केवल गरिबों और पहले से जाति,धर्मलिंग व विकलांगता के कारण वंचित तबकों के हाथ से निकल जाएगीबल्कि जो इसका खर्चा उठा सकते हैं उन्हें भी केवल ना मात्र की शिक्षा ही मिलेगी ऐसा इसलिए होगा क्योंकि बेतहाशा बाजारिकरण के चलते शिक्षा अपने मूल उद्देश्य से भटक जाएगी और साथ ही पाठ्यक्रमविषयवस्तु व शिक्षणपद्धति में भी भारी गिरावट होगीशिक्षा इतनी महँगी हो जाएगी कि मध्यम वर्ग के लिए भी इसका बोझ ढोना मुश्किल हो जाएगा | WTO के मातहत शिक्षा में लोकतांत्रिक व सामाजिक न्याय के एजेंडे को दरकिनार कर दिया जाएगा और इसके अन्तर्गत अब तक किए गए प्रावधानो को जैसे कि आरक्षणहोस्टलस्कलरशिपफ़ीस में छूट या मुफ़्त शिक्षा आदिके लिए भी कोई जगह नहीं बचेगी|
राजग के नेतृत्व में मौजूदा केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति को लागू कर रही है, जिसकी बुनियाद में कॉर्पोरेटीकरण, केन्द्रीयकरण और फिरकापरस्ती लाना हैं | शिक्षा संस्थानों के प्रबंधन और माली स्त्रोतों को बदला जा रहा है, ताकि शिक्षा को मुनाफे का व्यवसायिक धंधा बनाया जा सके | जोर-शोर से पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल को बढाया जा रहा है; सरकारी खर्च से चलने वाले स्कूल बंद किए जा रहे हैं, उन्हें एक दुसरे में जोड़कर उनकी संख्या कम की जा रही हैं | स्कूली और उच्च-शिक्षा दोनों के लिए बजट में आबंटन में बुरी तरह कटौती की जा रही है और फीस कई गुना बढ़ा दी जा रही है | अपने खर्च से पढ़ाई वाले कोर्स जबरन लागू किए जा रहे हैं | शिक्षा संस्थानों में लोकतान्त्रिक विमर्श की जगह कम हो रही है |
सोशलिस्ट पार्टी का मानना हैं कि शिक्षा ऐसी हो जो आवाम को पूरी तरह मुफ्त और बिना किसी भी तरह के भेदभाव के मिल सके -चाहे वह वर्ग, पितृसत्ता, मजहब, जुबान, अंचल, विकलांगता या और किसी भी तरह का ऐतिहासिक भेदभाव क्यों न हो और जो मौजूदा समाज को बदलकर लोकतान्त्रिक, धर्मनिरपेक्ष, बराबरी पर आधारित, न्यायपूर्ण, प्रबुद्ध और मानवीय बना सके | हमारी यह लड़ाई सरकारी खर्च से चलने वाली सार्वजनिक शिक्षा में कटौती, मुनाफाखोरी, निजीकरण और व्यापार बन चुकी शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ हैं |
प्रश्न : सोशलिस्ट पार्टी जो 9th अगस्त को आन्दोलन कर रही हैं 'शिक्षा और रोजगार दो वर्ना गद्दी छोड़ दो' में शिक्षा के साथ-साथ रोजगार को भी रखा हैं | बेरोजगारी कि समस्या बढती जा रही हैं इसपर आप क्या कहेंगे |
उत्तर : देखिये नवउदारवादी 'सुधारों' ने भारतीय समाज में वैश्विक पूंजी को बेलगाम अधिकाधिक घुसपैठ करने दिया, जिससे संवैधानिक सिद्धांत और मूल्य औंधे मुंह गिर पड़े और सामाजिक इन्साफ के सरोकारों को धीरे-धीरे छोड़ दिया गया और निरंतर डिजिटल टेक्नोलॉजी के बलबूते 'रोजगार-विहीन आर्थिक बढ़त' के वैश्वीकरण के महामंत्र ने शासक वर्गों की जमात को मंत्रमुग्ध कर दिया और गुलाम बना डाला | जिसका नतीजा आज के युवाओं को बेरोजगारी के रूप में देखने को मिलता हैं |
आईएलओ के अनुसार वर्ष 2018 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1.86 करोड़ रहने का अनुमान हैं | साथ ही इस संख्या के अगले साल 2019 में 1.89 करोड़ तक बढ़ जाने का अनुमान लगाया गया है | आंकड़ो के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे ज्यादा बेरोजगारों का देश बनता जा रहा हैं | इस समय देश की 11 प्रतिशत आबादी बेरोजगार हैं | ये वे लोग हैं जो काम करने लायक हैं, लेकिन उनके पास रोजगार नहीं हैं | बीते तीन से चार साल में बेरोजगारी की दर में जबरदस्त इजाफा हुआ है | मोदी सरकार के श्रम मंत्रालय के श्रम ब्यूरो के सर्वे से भी सामने आया है कि बेरोजगारी दर पिछले पांच साल के उच्च स्तर पर पहुँच गई है |
सरकारी क्षेत्र में रोजगार हासिल करने के लिए बेरोजगार युवाओं को आज कितनी मशक्कत करनी पड़ रही हैं, यह किसी से छिपी नहीं है | पढ़े-लिखे लोगों में बेरोजगारी के हालात ये हैं कि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के पद के लिए प्रबंधन की पढ़ाई करने वाले और इंजीनियरिंग के डिग्रीधारी भी आवेदन करते हैं | देश में बेरोजगारी की दर कम किए बिना विकास का दावा करना कभी भी न्याय सांगत नहीं कहा जा सकता | इसलिए हम कहते हैं कि 'हर हाथ को काम दो वर्ना गद्दी छोड़ दो' |
प्रश्न : अंत में आप क्या कहना चाहेंगे ?
उत्तर : जिस आर्थिक नीति पर आज वाक्-युद्ध छिड़ा हुआ हैं, उसको पुष्ट करने में आज के प्रत्येक दल ने योगदान दिया है | जिस उदार नीति, बहुराष्ट्रीय कंपनियों को निमंत्रण पर कागजी शेर दहाड़ रहे हैं, वह रातों-रात तो आ नहीं टपकी | कुछ तो हमें साम्राज्यवाद से विरासत में मिली, कुछ को विशेष प्रौद्योगिकी के चयन के कारण बहुत पहले न्योतना पड़ा और अस्सी-नब्बे के दशक में हमनें निर्यात तथा विकास दर बढाने के नाम पर यह काम शुरू कर दिया | आज जो विपक्षी दलों के बड़े-बड़े नेता हैं, वे भी इसमें भागीदार रहे हैं | आर्थिक सोच में असामना रहते हुए भी भाजपा अपना अस्तित्व बनाए रखने में कामयाब हुआ हैं क्योंकि उसका आधार सांप्रदायिक टकराव से पुख्ता होता हैं | जब उसकी आर्थिक नीतियों के फलस्वरूप अधिसंख्य लोगों का मोहभंग होगा तभी उसका ह्रास होगा | आज की स्थिति में गांधी, लोहिया, जयप्रकाश तथा आचार्य नरेंद्र देव की परंपरा और राष्ट्रीय आन्दोलन के मूल्यों को आगे बढाए बिना लड़ाई मजबूत नहीं हो सकती | इसलिए मेरा निवेदन हैं कि सोशलिस्ट पार्टी जो 9th अगस्त को आन्दोलन कर रही हैं 'शिक्षा और रोजगार दो वर्ना गद्दी छोड़ दो' का हिस्सा बनिए | यह आपकी आवाज हैं और सभी हाथ मिलेंगे तभी आजादी के मूल्यों को मजबूती मिलेगी | 

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