नई दिल्ली। '14-15 अगस्त, 1948 की मध्यरात्रि को जब देश आजाद हो रहा था और सिंध का इलाका पाकिस्तान में जा रहा था, तब उस सिंध में पैदा हुए जीवत राम भगवान दास कृपलानी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। यह अद्भुत गौरव की बात है।' ये उद्गार वरिष्ठ पत्रकार एवं राज्यसभा सांसद हरिवंश ने आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किए।
आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित 'आचार्य कृपलानी की प्रासंगिकता' विषयक व्याख्यान में उन्होंने कहा कि जाति-धर्म या क्षेत्र के आधार पर या जिन लोगों से हमारी तात्कालिक भौतिक जरूरतें पूरी होती हैं हम उन्हीं का स्मरण करते हैं। हम मानें या ना मानें, पर यह यथार्थ है कि जिन लोगों ने अपना वर्तमान आने वाली पीढ़ियों के लिए कुर्बान कर दिया, आज उनकी स्मृति उस रूप में हमारे मन में नहीं रह गई। लेकिन आज हम जिस चौराहे पर खड़े हैं, कृपलानी जी जैसे लोगों से भविष्य के लिए ताकत मिलती है। आचार्य जी का पुण्य स्मरण हम सबके लिए प्रेरक है।
उन्होंने आगे कहा कि आचार्य कृपलानी ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने आजादी के बाद नेहरू जी के प्रस्ताव को अस्वीकार किया, मंत्री बनने से मना किया। उनके मन में कांग्रेस और सरकार के कामकाज के प्रति गहरा आक्रोश या मतभेद था। वह पहले ऐसे सांसद थे जिन्होंने नेहरू सरकार के प्रति अविश्वास प्रस्ताव लाया, अपने ही साथियों के खिलाफ।
हरिवंश ने बताया कि यदि आचार्य कृपलानी के पूरे लेखन व लोकसभा के भाषण को देखें तो उन्होंने सार्वजनिक नैतिकता के पतन पर सबसे करारा प्रहार किया। देश के नैतिक पतन एवं भ्रष्टाचार पर उस समय जिस व्यक्ति ने सबसे अधिक लिखा, उसे रेखांकित किया, वह कृपलानी थे। उन्होंने 1963 में कहा, 'हम जीवित मुर्दों के देश हो गए हैं। आजादी के बाद कोई सक्रियता, कोई मकसद, कोई उद्देश्य हमारे पास नहीं रह गया है।' उन्होंने बताया कि आचार्य कृपलानी नेहरू जी के प्रखर आलोचक रहे; खास तौर पर वे नेहरू जी के आर्थिक विचारों और विदेश नीति के कठोर आलोचक थे। उनकी चिंता थी कि गांधीजी नेहरू जी को क्यों पसंद करते थे। उनकी दृष्टि में गांधीजी हमेशा अपने आलोचकों को पहले तरजीह देते थे। चीन के हमले के बाद पंडित नेहरू की सरकार पर सबसे तीखा प्रहार आचार्य कृपलानी ने किया। 11 अप्रैल, 1961 को कृपलानी जी ने लोकसभा में जो भाषण दिया उसकी जाने माने इतिहासकारों ने चर्चा की है।
हरिवंश ने आचार्य कृपलानी के आर्थिक विचारों की चर्चा करते हुए कहा कि उनके आर्थिक विचार व्यावहारिक, स्पष्ट और दूर तक देखने वाले थे। वही आज सबसे अधिक प्रासंगिक हैं। आचार्य कृपलानी मानते थे कि राजनीति और अर्थनीति दोनों अलग-अलग चीज है। राजनीति में आप कुछ भी कह सकते हैं; राजनीति में आप तानाशाही को 'पीपुल्स डेमोक्रेसी', 'ग्रासरूट डेमोक्रेसी', 'गाइडेड डेमोक्रेसी' कह सकते हैं। अर्थशास्त्र में शब्दों का यह मैनीपुलेशन तुरंत पकड़ में आ जाएगा। शब्दों के मैनीपुलेशन से अर्थशास्त्र नहीं चलने वाला। सिर्फ नारे लगाकर देश में उत्पादन या संपत्ति का सृजन संभव नहीं है। राजनीति और अर्थशास्त्र दोनों के अलग-अलग धर्म हैं, सिद्धांत हैं। उनको अपने रास्ते पर चलने देंगे तभी दोनों विकास करेंगे। हरिवंश ने कहा कि आचार्य कृपलानी ने आजादी के ठीक बाद ही यह कहा कि पब्लिक या प्राइवेट इंटरप्राइजेज दोनों बेहतर व इमानदार तरीके से नहीं चलेंगे तो देश का विकास नहीं होगा।
उन्होंने अंत में कहा कि वह त्याग का जीवन, कुछ अपने बारे में कभी प्रमुखता से न कहने का जीवन, हमेशा समाज के बारे में सोचना और दूर तक सोचना, एक ऋषितुल्य जीवन; यह सब आचार्य कृपलानी की खासियत थी। ऐसे रास्तों पर चलने वाले आचार्य कृपलानी देश-समाज की मौजूदा चुनौतियों के संदर्भ में हमेशा प्रासंगिक बने रहेंगे।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं आचार्य कृपलानी के जीवनी लेखक वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री राम बहादुर राय ने कहा कि गांधी और कृपलानी को आप अलग नहीं कर सकते। 'हमें आज कैसा गांधी चाहिए', इसी में आचार्य कृपलानी की प्रासंगिकता छिपी हुई है। उन्होंने आगे कहा कि आचार्य कृपलानी के जीवन का सबसे बड़ा अफसोस यह था कि गांधीजी को उन लोगों ने नहीं समझा जो गांधी को अपना सब कुछ मानते हैं। इसलिए उन्होंने लेखों की एक छोटी श्रृंखला चलाई। 'राजनीतिक गांधी' शीर्षक से वह छोटी-सी पुस्तिका छपी है जिसमें 11-12 लेेेख हैं। उनका कहना था कि 15 अगस्त 1947 के बाद जिस गांधी की जरूरत थी उसे किसी एक व्यक्ति ने यदि पहचाना तो वे आचार्य कृपलानी थे। तो जरूरत है राजनीतिक गांधी की। वे कहते थे 'राजनीतिक गांधी को अपनाओ और उसके रास्ते पर चलो'।
उन्होंने आगे बताया कि गांधी और कृपलानी इसलिए प्रासंगिक रहेंगे क्योंकि इस देश की राजनीति सुधारने के लिए जब भी कोई प्रयोग होगा तो वह गांधी के जीवन का प्रयोग होगा; और राजनीतिक गांधी से सीख कर ही कोई प्रयोग हो सकता है। यही बात हमें कृपलानी जी की याद दिलाते रहेंगे। 'राजनीतिक गांधी' शीर्षक उनकी पुस्तक पढ़ें तो हो सकता है जो उन्होंने नहीं कहा वह भी अंतर्दृष्टि से आपको प्राप्त हो जाए।
स्मृति व्याख्यान का श्रीगणेश राजधानी कॉलेज के सह-प्राध्यापक वेद मित्र शुक्ल द्वारा बांसुरी पर गांधी जी के प्रिय भजन 'वैष्णव जन...' की धुन बजाने के साथ हुआ। व्याख्यान के दौरान वरिष्ठ गांधीवादी सत्यपाल ग्रोवर, रामचंद्र राही, कुमार प्रशांत, अरविंद मोहन, वी वी कुमार, टी एन झा, अवधेश कुमार, एस एन शर्मा, शेषनारायण सिंह, अशोक सिंह, शिवानी सिंह, सुरेश शर्मा, प्रेम प्रकाश, राजीव रंजन गिरी, मनीषचंद्र शुक्ल, मनोज झा जैसे ढेर सारे बुद्धिजीवी मौजूद थे। व्याख्यान के आरंभ में आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी अभय प्रताप ने सभी अतिथियों का स्वागत किया जबकि अंत में होल्डिंग ट्रस्टी पी एम त्रिपाठी ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया। कार्यक्रम का संचालन सोपान जोशी ने किया।
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