डॉ सच्चिदानंद जोशी
फेस बुक और व्हाट्स एप्प से मैंने
रच डाली है अजीब सी दुनिया
अपने ही इर्द गिर्द ,अपने पर केन्द्रित.
जहाँ मैं हूँ ढेर सारे जाने अनजाने दोस्तों के साथ .
अनजाने इसलिए कि सामने पड़ने पर
पहचान ही नहीं पाता उन्हें ,
और पहचानने पर मिलना जरूरी नहीं समझता .
मेरी दुनिया में सिर्फ मैं ही हूँ
अपने आप से बात करता
अपने जरिये ही दुनिया को जोड़ता घटाता.
दूसरे भी जो है वो सिर्फ “मैं” ही है
हजारो की लिस्ट में सब के सब एकाकी .
अपनी ही तस्वीरो से लुभाते खुद को
अपनी पसंद, सन्देश और टिप्पणियों को बनाते
अपने चैतन्य होने का प्रमाण .
ऐसी तमाम बातो से जोड़ लेते अपने आप को
जो नहीं होती कही से भी उनके करीब.
कोई नहीं ऐसा इन सब में जो मुझे छूकर
मेरे होने का अहसास दिलाये
अपनी ऊष्मा से अपनी उपस्थिति दर्ज कराये
मेरी चाहरदीवारी के अंदर चलने वाले
यांत्रिक संवाद से मुक्ति दिलाये.
जन्मदिन पर गले मिलकर कभी दे बधाई
कभी आंसू पोछने के लिए अपना रूमाल बढ़ाये .
महसूस करा सके मुझे अपनी
सांसो का स्पंदन और
भावो के आवेग से मेरा परिचय कराये .
इन्ही को ढूँढने में खो सा गया हूँ
अपने बनाये अंतरजाल में
खुद से ही अजनबी हो गया हूँ.
रच डाली है अजीब सी दुनिया
अपने ही इर्द गिर्द ,अपने पर केन्द्रित.
जहाँ मैं हूँ ढेर सारे जाने अनजाने दोस्तों के साथ .
अनजाने इसलिए कि सामने पड़ने पर
पहचान ही नहीं पाता उन्हें ,
और पहचानने पर मिलना जरूरी नहीं समझता .
मेरी दुनिया में सिर्फ मैं ही हूँ
अपने आप से बात करता
अपने जरिये ही दुनिया को जोड़ता घटाता.
दूसरे भी जो है वो सिर्फ “मैं” ही है
हजारो की लिस्ट में सब के सब एकाकी .
अपनी ही तस्वीरो से लुभाते खुद को
अपनी पसंद, सन्देश और टिप्पणियों को बनाते
अपने चैतन्य होने का प्रमाण .
ऐसी तमाम बातो से जोड़ लेते अपने आप को
जो नहीं होती कही से भी उनके करीब.
कोई नहीं ऐसा इन सब में जो मुझे छूकर
मेरे होने का अहसास दिलाये
अपनी ऊष्मा से अपनी उपस्थिति दर्ज कराये
मेरी चाहरदीवारी के अंदर चलने वाले
यांत्रिक संवाद से मुक्ति दिलाये.
जन्मदिन पर गले मिलकर कभी दे बधाई
कभी आंसू पोछने के लिए अपना रूमाल बढ़ाये .
महसूस करा सके मुझे अपनी
सांसो का स्पंदन और
भावो के आवेग से मेरा परिचय कराये .
इन्ही को ढूँढने में खो सा गया हूँ
अपने बनाये अंतरजाल में
खुद से ही अजनबी हो गया हूँ.
(डॉ सच्चिदानंद जोशी के फेसबुक वाल से साभार)
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