Thursday, 12 May 2022

दो दृश्य, दो प्रश्न

 दिल्ली की जिस कॉलोनी में हम रहते हैं,वहां की बात है। हां इसे कॉलोनी या लोकेलिटी ही कहना होगा। मोहल्ला कह दिया तो इसकी शान में भारी गुस्ताखी हो जाएगी। यहां दो तरह के लोग रहते हैं एक वो जो फ्लैट या बंगलो में रहते हैं और दूसरे वो जो इनके आऊट हाउस या गैराज में रहते हैं।

यहां सुबह का नजारा देखने लायक होता है जब अलग अलग स्कूलों की बसे अपने अपने विद्यार्थियों को लेने आती हैं । बसों या तत्सम सवारियों से आप उसमे बैठे बच्चों के घरों का पता जान सकते है कि वे पहली श्रेणी के आवास वाले हैं या दूसरी श्रेणी के ।सुबह सुबह बच्चो को स्कूल जाते देखना बहुत आनंदकारी होता है ,खासकर तब जब आपको स्वयं स्कूल न जाना हो या किसी को स्कूल के लिए छोड़ना न हो। ऐसी ही किसी एक सुबह के दो दृश्य हैं , जो मन में कही गहरे बैठ गए । इसलिए इन्हे साझा करने की इच्छा हो गई।
दृश्य एक :
बच्चे को छोड़ने मम्मी पापा दोनो आए हैं। बच्चा बहुत खुश है उसका एक हाथ पापा थामे हैं और दूसरा मम्मी। उसकी पीठ पर भारी भरकम बस्ता है जिसने उसे आगे की ओर लगभग झुका दिया है और कंधे पर वाटर बॉटल है। बच्चा अपने पीठ पर लदे बोझ के बावजूद खुश है कि वह अपने मम्मी पापा के साथ है। वह उन्हे बहुत कुछ बताना चाहता है । वह अपने दोनो हाथो से इशारा कर कुछ आकृतियां बना भी रहा है। अपनी रचनात्मक गतिविधि के लिए प्रशंसा पाने की गरज वो मम्मी की ओर देखता है। लेकिन मम्मी बच्चे का हाथ छूटते ही अपने मोबाइल पर कुछ टाइप करने जुट जाती है। उसका ध्यान बच्चे पर या उसकी गतिविधि पर नही है संदेश टाइप करने पर है। वह एक बार बच्चे की तरफ देखकर हंसती जरूर है लेकिन बच्चा भी समझ जाता है कि हंसी कितनी ऊपरी और औपचारिक है। झूठी हंसी के चक्कर में गलत शब्द टाइप होने की झुंझलाहट को भी बच्चा महसूस कर लेता है।
बच्चा उत्साह से पापा की ओर प्रशंसा की आस में देखता है। पिता के हाथ में मोबाइल नही दिखता। और वो हंसते मुस्कुराते बतिया भी रहे हैं । कुछ क्षण के लिए बच्चा खुश होता है कि पापा उसकी गतिविधि देख रहे हैं। लेकिन यह खुशी क्षणिक है। क्योंकि उसे पापा के कान में लगे सफेद हेड फोन दिख जाते हैं।
बच्चा हताश हो फिर अपनी गतिविधि में लग जाता है और मम्मी पापा अपनी अपनी में।
बस आती है। एयर कंडीशंड बस है। बस का परिचालक बच्चे को बस में बैठाता है। बस चलने लगती है । बच्चा बस के अंदर दौड़ कर सबसे पीछे वाली सीट पर आता है ताकि कांच के अंदर से मम्मी पापा को टाटा कर सके । वह करता भी है , लेकिन तब तक मम्मी पापा पलट कर अपने घर की दिशा में प्रस्थान कर चुके होते है। टाटा करने के लिए उठा बच्चे का हाथ बस के पीछे वाले कांच पर चिपक कर रह जाता है।
दृश्य दो:
बच्चे को छोड़ने एक अधेड़ महिला आई हैं। बच्चा अपनी मस्ती में चल रहा है और वह महिला उसका बैग और बॉटल उठाए उसके साथ चल रही है। दोनो के बीच संवाद हो रहा है। बच्चा जानना चाहता है कि सोलह तारीख को हॉलिडे क्यों हैं। महिला जिसे बच्चा बार बार अम्मा कह रहा है उसे पूर्णिमा और अमावस्या कैसे क्यों होती है यह बता रही है। उसे बुद्ध भगवान की कहानी सुना रही है। बुद्ध भगवान की कहानी सुन बच्चा राहुल के बारे में भी जानना चाहता है। इस बीच उसे यह भी याद आता है कि उसे बस में गर्मी बहुत लगती है । अम्मा उसे तरकीब बताते कहती है थोड़ी खिड़की खोल लिया करना, लेकिन हाथ बाहर मत निकालना । अम्मा उसे ज्यादा पानी पीने की भी सलाह देती है जिसे बच्चा खारिज करते कहता है " सू सू जाना पड़ता है न फिर बार बार " । अम्मा हंसती है और गर्मी से बचने की कोई और तरकीब सोचने लगती है। दादी पोते के संवाद को विराम तब लगता है जब बच्चा दूर से आती बस को देखकर कहता है " लो आ गई हमारी खटारा रानी। " अम्मा उसे डपटते हुए कहती है " ऐसा नहीं कहते बेटा " ।
बस आती है परिचालक बच्चे को चढ़ाता है । अम्मा कहती है " सम्हालना भैया " और उसे बैग बॉटल सोपती है। बस चलने लगती है। बच्चा लपक कर खिड़की पर जाकर बैठता है और कहता है " अम्मा टाटा" । अम्मा चिंता भरे स्वर में कहती है " गर्दन बाहर मत निकालना" । बस चल देती है और अम्मा टाटा की मुद्रा में तब तक हाथ हिलाती रहती है जब तक बस आंखों से ओझल नहीं हो जाती।
ये दोनो दृश्य मैं लगभग रोज देखता हूं । आप भी शायद देखते होंगे । पता नही क्यों पहली वाली बस के कांच से टाटा करता बच्चा और स्टॉप पर टाटा करती अम्मा जेहन से निकलती ही नही ।
अब दो सवाल
एक: क्या क्वालिटी टाइम की परिभाषा हमे फिर से लिखना होगी।
दो : क्या पहली वाली बस का बच्चा दूसरी वाली बस की अम्मा का टाटा की मुद्रा में हिलता हाथ कभी देख पाएगा ।
आप सोचे और विचारे। (डॉ सचिदानन्द जोशी की फेसबुक वाल से सभार)

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