Tuesday, 13 December 2022

लेखिका व अनुवादिका श्रीमति वंदना शांतुइन्दु जी की पुस्तक "जड़ से उखड़े हुए लोग" कहानी संग्रह का लोकर्पण


दिल्ली, 13 दिसंबर, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास व केंद्रीय हिन्दी संस्थान, दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में लेखिका व अनुवादक श्रीमति वंदना शांतुइन्दु जी की पुस्तक "जड़ से उखड़े हुए लोग" कहानी संग्रह का लोकर्पण तथा परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस मौके पर उन्होने कहा की इस कहानी संग्रह की कहानी "जड़ से उखड़े हुए लोग" कश्मीर पंडितों के विस्थापित और तिब्बत के विस्थापित लोगों के दुख-दर्द की कहानी है। दूसरी कहानी "मोक्ष" की चर्चा करते हुए कहा की यह कहानी गुजरात और पाकिस्तान शरहद के पार बसे गांव की कहानी है, इसमें विभाजन की त्रासदी है। अखंड भारत में विभाजन की त्रासदी को लेकर संवेदनशील कहानी है। यह कहानी संग्रह मूलतः गुजरती में है जिसका अनुवाद स्वयम लेखिका ने बहुत की भावपूर्ण किया है। लेखिका ने अंत में इस पुस्तक की भाषा संपादिका डॉ शीतल बहन और मदन भाई शर्मा जी का आभार व्यक्त किया साथ ही विशेष आभार अतुल भाई कोठारी जी का किया। 


डॉ वीना शर्मा ने कहा की लेखक के लिखने से पहले उसके मन मे बहुत कुछ घटित होता है, जिनको  लेखिका बहुत खूबसूरती से कहानी में पिरोया है। जिसके लिए उन्हे बहुत बहुत बधाई।

डॉ अनिल जोशी ने कहा की इस कहानी संग्रह में गुजराती और हिंदी में एकात्मकता है उसका बेहतरीन उदाहरण यह कहानी संग्रह है। हिंदी सभी भारतीय भाषाओं को एकता को दर्शाती है। यह पुस्तक रचनात्मकता और वैचारिकता का संगम है। इस पुस्तक का नरेटिव अलग है। जड़ से उखड़े लोग निष्कासन को लेकर सबसे महत्वपूर्ण कहानी है। इनकी हर कहानी की जड़ में भारतीयता है। इनकी कहानियां आधुनिक भारत का नरेटिव रचती है। यह साधारण नहीं है। 


मुख्य अतिथि के रूप में साहित्यकार, कवि व नाटककार डॉ सचिदानंद जोशी जी ने कहा की यहा कहानी संग्रह तीन भाषाओं का समन्वय है। वर्तमान को भाषा से जोड़ने की जरूरत है। जब कभी इन कहानियों को आप पढ़े तो यह देखे की क्या हमने अपनी स्मिता को बचा पा रहे हैं इस बात की याद दिलाती है। इनकी कुछ कहानियां बहुत रोचक हैं। अनुवाद करना दो धारी तलवार जैसा होता है। लेखक केलिए हर रचना को जन्म देना प्रसव पीड़ा से कम नहीं होती।

अध्यक्षीय वक्तव्य माननीय अतुल भाई कोठारी जी देते हुए कहा की यह पुस्तक उखड़े हुए लोगो को अपनी जड़ों से जुड़ के रहने की प्रेरणा देती है। कभी भी जड़ से कटाना नहीं चाहिए। यह पुस्तक अपनी जड़ों से जुड़े रहने की


प्रेरणा देती है। नरेटिव बदलने का एक प्रयास यह कहानी संग्रह है। बोलना आसान है नरेटिव बदलना बहुत चैलेंज का काम है। सरकार बदल गयी है लेकिन नरेटिव बदला या नहीं कहना मुश्किल है। मैं ऐसी पुस्तक का लोकार्पण कर रहा हूँ जिसकी लेखिका मेरी बहन भी हैं। धन्यवाद डायमंड पॉकेट बुक के नरेंद्र वर्मा जी ने धन्यवाद किया। संचालन नूतन पांडे जी ने किया।   

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