Friday, 31 March 2023

पांचवा प्रो देवेन्द्र स्वरूप स्मारक व्याख्यान


पांचवा प्रो देवेन्द्र स्वरूप स्मारक व्याख्यान माला में पूर्व केंद्रीय  मानव संसाधन मंत्री प्रो मुरली मनोहर जोशी ने "बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य में भारत"  विषय पर अपने विचार वयक्त करते हुए कहा कि मेरी मुलाकात प्रो देवेन्द्र स्वरूप जी से प्रयाग (इलाहाबाद) में हुई थी,वह मेरे छात्रावास में ठहरे हुए थे उस समय इतिहास, अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र आदि के छात्र उनकी विद्वता और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके मुरीद हो गए थे, वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे, स्वाधीनता संग्राम, संविधान और विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर उन्होंने लिखा और बोला है।  इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र से उनकी कुछ पुस्तकें प्रकाशित हुईं हैं उनके कुछ महत्वपूर्ण लेख भी संकलित और प्रकाशित किए जाने चाहिए। सरस्वती नदी की खोज विषय पर उनसे बहुत चर्चाएं हुई थी, उनके लेखों ने इस विषय पर काफी प्रकाश डाला, वह एक महान विद्वान, विनम्र व्यक्ति थे।  


प्रो देवेन्द्र स्वरूप जी भारतीय ऋषी परंपरा के व्यक्ति थे, उनके साहित्य को पढ़ा जाना चाहिए। विषय पर चर्चा करते हुए प्रो जोशी ने कहा कि आज जो परिवर्तन हो रहे हैं उसमें हम कहां खड़े हैं आज जिस सोपान पर भारता पहुंचा हुआ है, हम क्या करना चाहते हैं इस पर चिंतन होना चाहिए। विश्व को किस बिंदु से देखना शुरू करे, क्या उसके प्रारंभिक चरण से? हाल ही में जबसे परिवर्तनों की गति तेज हुई है इस पर विचार करना चाहिए। एक समय था जब लोग जीवन को बनाए रखने का संघर्ष कर रहे थे, यंत्रों के आविष्कार के बाद जीवन में गति बढ़ी, 200 साल की गतिमत्तता पर बात होने लगी, पहले जीवन में स्थायित्व था उसमे बदलाव आया, श्रम और उसके उद्देश्य में अलगाव पैदा हुआ। उसके बाद अपने लिए नहीं बाजार के लिए खेती किया जाने लगा। मनुष्य को समझ आगया की  वह श्रम का विप्पण कर सकता है, इस प्रकार विश्व इतिहास में जबरदस्त परिवर्तन आया, जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यहीं से वेज लेबर का कॉन्सेप्ट पैदा हुआ और  यही से औद्यगिक क्रांति की शुरुआत हुई। पहले अपने श्रम का उपभोग व्यक्ति स्वयं करता था, बाद में कौशल का विकास शुरू हुआ, यांत्रिक प्रयोगों के बाद इस परिस्थिति में बड़ा परिवर्तन आया।  कुछ खास उद्देश्यों के लिए काम करने वाला व्यक्ति निरुद्देश्य हो गया, बाद में ग्रोथ का कॉन्सेप्ट आया।  अधिक से अधिक सामग्री जमा करने का कॉन्सेप्ट आया, अधिक पूंजी कमाने का विचार पनपा और कंसंट्रेशन ऑफ वैल्थ की शुरूआत  हो गयी।  यांत्रिक रूप से कार्य करने के प्रचलन में गति आई, चीजों के निर्माण में गति आई, परम्पराओं का निर्मुलीकरण होने लगा। जिससे वैचारिक दृष्टि से विमोह पैदा हुआ, 19 शताब्दी ले मध्य में ये प्रश्न उठने लगे की  पूंजी कितनी है? ऋण कितना है? जीडीपी की बात सामने आई, संपत्ति का लेखा-जोखा सामने आने लगा। एक एकाउंटिंग का सिस्टम होना चाहिए इसपर विचार किया जाने लगा। आपकी प्रगति का मापदंड जीडीपी आधारित हो गई, जीडीपी के अनुसार उत्पादन की सामग्री, सर्विसिंग के बाद की मॉनिटरिंग वैल्यू कितनी है, गुड्स एंड सर्विसेज का वितरण कैसे हुआ है। 

पर्यावरण का क्या होगा, ऐसे सवाल पैदा हुए, पर्यावरण का कितना दोहन किया गया जीडीपी इस बात का पैमाना है।  देश की नौ इंडस्ट्रीज के आधार पर जीडीपी तय होता है।  कई हजारों लोग जो पर्यावरण से प्रभावित हुए उनका इसमें कोई मूल्यांकन नहीं होता है। उसी समय  मार्केट अस्तित्व में आया, आज कृप्टो करेंसी आ गई है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के पास आज श्रम चला गया, पहले हम बांट कर खाते थे अब हम छीन कर खाते हैं, क्या यह विकास है? क्या यह विकास का पैमाना होना चाहिए? इन सब घटनाक्रम की शुरुवात वैज्ञानिकता से हुई है।  वैज्ञानिकता में विश्व का कल्याण है या नहीं विचार किया जाना चाहिए। भूटान ने कहा कि आज हैपीनेस इंडेक्स कितना है, पर्यावरण और मानसिक शांति पर ध्यान दें, यदि आप जिस काम को कर रहे हैं उसमे शांति नहीं है तो हम क्या कर रहे हैं? भारत इस मोड पर है कि वह अपनी चेतना को विकसित करे, संतुलित जीवन का दृष्टिकोण सामने रखे, उसने दुनिया के सामने योग का कॉन्सेप्ट रखा जिसे विश्व ने स्वीकार किया, अब डिग्रोथ का कॉन्सेप्ट भी सामने आया है। यदि देखा जाए तो पिछले साठ सालों में इंग्लैंड ने क्या किया? बस कूड़ा एकत्रित किया है।  जहां यंत्र भी होगा, समृद्धि भी होगी और शांति भी हो ऐसा संतुलन होना चाहिए, अंतर्राष्ट्री मसलों पर चिंतन होना चाहिए। हमारे लिए यह एक चुनौती है कि मानव कितना सुखी है? प्रकृति कितनी शांत है? भारत में इस विषय पर विमर्श होना चाहिए। पर्यावरणीय चेतना और मानवीयता हो इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।  भारत को किधर जाना चाहिए इस विषय में प्रो देवेंद्र स्वरूप का चिंतन रहा है।




इस व्याख्यान माला की अध्यक्षता कर रहे इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय काला केंद्र के अध्यक्ष व वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय ने कहा की प्रो देवेंद्र स्वरूप जी के लेखन से अनेक पुस्तकें छ्पी हैं। एक पुस्तक आईजीएंसी से भी छपी है, ''संवाद पुरुष: देवेंद्र स्वरूप, यह उनके लेखों का संकलन है, ''अखंड भारत: संस्कृति ने जोड़ा राजनीति ने तोड़ा'' यह पुस्तक बेहद महत्वपूर्ण जिसे पढ़ा जाना चाहिए। इस मौके पर प्रो देवेन्द्र स्वरूप की स्मृति में उनके परिवार से प्रो पूनीता जी, प्रो सुनीता जी और प्रो उदिता जी आदि उपस्थित थीं। साथ ही प्रो देवेन्द्र स्वरूप जी के चाहने वाले सैकड़ो छात्र व उनके प्रशंसक उपस्थित थे।      

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