करुणा नयन
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या :-
ख़ुदा भी आपसे यदि आपकी रज़ा पूछकर कुछ देने को है, तो यह मान लीजिए कि आपके अंदर वह ब्रह्माण्ड की क्षमता विद्यमान है । जोकि उसको ग्रहण करने को राज़ी है। इस सब्र के बांध को भर के बाहर आने में दिन हफ़्ते, महीने साल नहीं बल्कि 11 साल 6 दिन लगें हैं। जिस ट्रॉफी को अपने जाबाजों के हाथों में देखने के लिए हमारी आंखें 11 साल से तरस गयी थीं। उस सूखे को समाप्त करके हमें हमारे 2007,2011,2013 वाले बचपन को पुनः ज़िंदा करने के लिए शुक्रिया टीम इंडिया।
बीसवें ओवर की आखिरी गेंद जब पांड्या ने डाली और एनरिक नोर्किया ने उसको मिडविकेट पर मारा उसके बाद सब कुछ जैसे शून्य हो गया। रोहित मैदान पर लेट गए और उसके सीने पर अपने हाथों के प्रहार से मानों कह रहें हो कि देख : -
वसुधा का नेता कौन हुआ?
भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ?
नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया,
विघ्नों में रहकर नाम किया
विराट जब घुटनों के बल बैठ गए, हार्दिक पिच पर ही बैठ गए। उस समय लगा वक़्त ठहर गया था। भारतीय खिलाडियों के साथ रो रहा था पुरा भारत। उनकी स्मृति पटल पर वह सभी दृश्य चल रहे थे । जिसने ढाका, सिडनी, मुम्बई ,ओवल, मैनचेस्टर, एडिलेड और अहमदाबाद के इंतज़ार को और बढ़ाया था। इंतज़ार केवल उस दुधिया रोशनी के समान चमचमाती ट्रॉफी का । जिसके लिए किसी ने रनों का अम्बार लगाया तो किसी ने विकेटों की झड़ी। मगर अफ़सोस वह ट्रॉफी कमबख्त किसी दूसरे के बाहों में अपनी शोभा बढ़ाती रही।
सपना क्या है? नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी,
गोपालदास की ये पंक्तियां उन तमाम भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के लिए फिट बैठती हैं। जिनके सपने पिछले 11 सालों से टूटते आ रहे थे। उनकी आंखों की जलधारा अब लगभग सुख चुकी थी। इसका कारण किस्मत भी थी। जोकि पिछले 11 सालों से हमारे नज़दीक आने के पश्चात दूसरे के दरवाज़े पर चली जा रही थी। आज भी उसने यही करने का प्रयास किया। वह तो भला हो एक लौंडे का जिसने उस लक्ष्मणरेखा रूपी सीमारेखा पर ट्रॉफी को पार जाने से पहले ही पकड़ लिया। क़िस्मत को 11 खिलाडियों के आगे नतमस्तक करने पर मजबूर कर दिया।
आज एक बल्लेबाज़ के बल्ले ने अपना रंग दिखाया। वह भी तब जब इसकी ज्यादा ज़रूरत थी। जिसके बल्ले को उससे रूठा बताया गया, उसका दौर ख़त्म कर दिया गया था। उसने दिखाया क्यों वह आज के दौर में सभी बल्लेबाजों का महाराज है। जिस समय टीम संकट में पड़ी, उसने संकटमोचक की भूमिका निभाई। एक गेंदबाज़ भी था कोई आज के मैच में ,जो पहले मज़ाक का पात्र था लोगों के लिए । लेकिन आज उसकी डाली गईं हर गेंद और लिए गए विकेट ने हर भारतीय को गौरवान्वित महसूस करने का मौका प्रदान कर दिया। बारबाडोस में किसी की बल्लेबाज़ी ने संजीवनी का काम किया। तो एक अजीब एक्शन वाले गेंदबाज जोकि महानतम है, जिसके लिए शब्द भी कम पड़ जाएं। जोकि दावानल के समान है। जिसके नज़दीक आते ही बल्लेबाज़ भस्म हो जाते हैं। आज उसकी गेंदों का ज़वाब कोई नहीं दे सका।
आज इन खिलाडियों ने 11 साल के लम्बे इंतज़ार को समाप्त किया। उस इंतज़ार को जोकि आईसीसी के किसी टूर्नामेंट में हमें खाने को दौड़ जाता था। इन जाबाजों ने मैच और क़िस्मत दोनों को जीता है। उस क़िस्मत को जीता है जो इनसे रूठ गई थी। उम्मीद है अब इतना लम्बा इंतज़ार न हो। आज वह इंतज़ार समाप्त हो गया है, हम विश्वविजेता बन चुके हैं। विश्वविजेता भारत
इन नीली जर्सी वालों ने आज हमें ट्रॉफी जीतकर दी है। वह ट्रॉफी जिसको जीतता देखने के लिए फैंस की आंखें तरस गईं थीं। फैंस जोकि इनके हारने को नियति मान चुके थे। उनके खराब प्रदर्शन को अपना आदत मन बैठ चुके थे। टूटी चुकीं उम्मीदें, उदास मन, झुके कंधे और बड़े मैच में हार जाने का डर। फैंस की यही सोच और नियति बन चुकी थी। मगर इन जाबाजों ने अपने फैंस, पागल फैंस, जो इनको दिल्लोजन से प्यार करते हैं, नाराज़ होते हैं,वही जो इनको हारने के बाद क्रिकेट के गुर सिखाते हैं, फ़िर भी भारत को समर्थन करने मैदानों में चले जाते हैं। उन सभी को इन 11 खिलाडियों ने 11 सालों में पत्थर बन चुकी आंखों से अमृतजलधारा बह जानें का अवसर प्रदान किया। उन्हें खूब चिल्लाने, मन भर रो लेने और खूब आतिशबाज़ी करने का मौक़ा दे दिया। चिल्लाओ... खूब चिल्लाओ... हवा में लहरा दो तिरंगा और कर दो ऐलान की दुनियां देख ले भारत विश्वविजेता बन चुका है।
बोलो बोलो भारत माता की जय... जय...
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