Sunday, 16 June 2024

ग्रामीण अंचल की सच्चाई से अवगत कराता नाटक बाबूजी

करुरणानयन चतुर्वेदी

नई दिल्ली, 16 जून। हिन्दी साहित्य का क्षेत्र कितना बड़ा है, यह मुझे दिल्ली आने के बाद पता चला है। पूर्वांचल के गांवों में परिवार के लड़कों को जहां साहित्य क्या है, कैसे हमारे सोच और समाज को प्रभावित करता है ? इस चीज़ की उनको समझ ही नहीं है। सीधे तौर पर कहा जाए तो वह माहौल ही नहीं है कि वह साहित्य को पढें और समझने की कोशिश करें। हमारे क्षेत्र में लोगों द्वारा नाटक को नौटंकी से तथा नौटंकी को ऑर्केस्टा आदि से जोड़ दिया जाता है। हमारे क्षेत्र में नाटक और नौटंकी की विधा अब सिर्फ रामलीला मंचन पर आकर ही रुक गई है। 

   

परन्तु इस नाटक विधा को जीवित रखने का काम कर रही है एनएसडी यानी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली। पिछले डेढ़ महीनों से लगातार एनएसडी जाने को मिल जा रहा है। इस बीच अगल - अगल तरह के नाटक देखने को मिला। अंधा युग, ताज महल का टेंडर, बंद गाली का आख़िरी मकान, लैला-मजनूं आदि नाटक कुछ ज्यादा अच्छे लगे थे । मुझे प्रभावित भी कर गए। लेकिन कल जब बाबूजी नाट्य को मैंने देखा तो मानों मेरे शरीर के कण-कण ने इसका आनंद उठाया। इसका कारण यह भी हो सकता कि इस नाटक में भोजपुरी भाषा का ज्यादा प्रयोग किया गया था। जिस कारण भोजपुरी भाषी होने के नाते मैं इससे जुड़ पाया। 

  

बाबूजी नाटक पूर्ण रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की वास्तविकता से हमें अवगत कराता है। जहां एक परिवार है। बाबूजी संगीत और नृत्य के प्रेमी हैं, सारंगी बजाते हैं। सारंगी के प्रति उनका जुनून है। लेकिन इस जुनून के चलते उन्हें अपने ही परिवार में उपेक्षित होना पड़ता है। बाबूजी अपने जुनून को ज़िंदा रखने के लिए नौटंकी कम्पनी खोलते हैं। घर-दुआर शराबियों का अड्डा बन जाता है। जिससे रूष्ट होकर उनकी पत्नी बाल-बच्चों को साथ लेकर मायके चली जाती है। परिवार से उपेक्षित व्यक्ति का समाज भी दुश्मन हो जाता है। इधर कम्पनी चल पड़ती है। बच्चों के बड़े हो जानें पर और अपने घर चलने की ज़िद पर उनकी मां उन्हें लेकर पुनः घर वापस आ जाती है। घर में बाबूजी नहीं आने देते हैं । इस पर थाना-पुलिस तक हो जाता है। बाबूजी को घर से निकाल कर दालान में स्थान दे दिया जाता है। 

   

ऐसे ही समय बीतता जाता है और उनकी लड़की शादी विवाह के लायक हो जाती है। लड़की की शादी बड़ा भाई कैसे भी ठीक करता है। वह अपने पिता को मृत घोषित कर चुका होता है। अब संयोग देखिए कि जिस पिता को अपनी बेटी का कन्यादान करना चाहिए।वहीं उसकी शादी में नौटंकी/ऑर्केस्टा का सट्टा लेकर बारातियों का मनोरंजन करता है। इसी दौरान दुल्हे के पिता नचनियां से छेड़खानी कर देते हैं। जिसके चलते बात हाथापाई तक पहुंच जाती है। ठाकुर साहब अपने अपमान को सह नहीं पाते हैं। बाबूजी को इतना पीट दिया जाता है कि वह मरणासन पर चले जाते हैं और कुछ दिनों बाद वह परलोक सिधार जाते हैं। 

  

इसको देखते वक्त पूर्वांचल और बिहार के लोग अपने क्षेत्र की जड़ों से जुड़ते हुए दिख जायेंगे। नाटक को ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए भोजपुरी के लोकगीतों को भी जोड़ा गया है। यह नाटक अद्भूत है। सामंती व्यवस्था पर चोट करते हुए समाज की कुरीतियों को भी दिखाता है।


इसको मंचित कराने वाले पात्र काफ़ी मेहनती हैं। बिक्रम लेप्चा , शिल्पा भारती और राजेश सिंह जी का अभिनय तो इस नाटक की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है। 


यह नाटक मिथिलेश्वर जी की प्रसिद्ध कहानी बाबूजी जी से लिया गया है। मिथिलेश्वर जी बिहार के भोजपुर जिले से आते हैं । प्रेमचंद और फणीश्वर नाथ रेणु जी के बाद ग्रामीण अंचल पर लिखने वाले प्रमुख कथाकार हैं।कहानी का नाट्य रूपांतरण विभांशु वैभव ने किया है।नाटक के लिए प्रकाश परिकल्पना अवतार साहनी और वेशभूषा नलिनी जोशी ने तैयार की है। नाटक का निर्देशन  राजेश सिंह जी ने किया है।

1 comment:

  1. यह नाटक अति उत्तम कोटि की अभिनय प्रदर्शनी है। श्री राजेश सिंह निर्देशित इस नाटक में सभी कलाकार अच्छे गायक भी हैं नर्तक भी हैं। मैंने यह नाटक इसी वर्ष अनेक बार देखा है। नाटक सिनेमा से अधिक जीवंत क्यों है बाबूजी नाटक इसका एक प्रमाण है। इस नाटक में बाबूजी तबला वादक हैं (सारंगी नहीं)। इस नाटक के लगभग सभी शो हाउसफूल रहे हैं, यह बहुत लोकप्रिय है और मेरे जैसे अनेक दर्शक यह नाटक बार बार देख रहे हैं। एक कलाकार की जिंदगी वास्तव में अपने आप में कैसे एक नौटंकी बन रह जाती है यह आंखें खोल देने वाला तथ्य और सत्य चित्रित करती नौटंकी बाबूजी पुरानी कला आज के समय में कितनी कारगर है इसका एक प्रमाण है।

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