करुणा नयन चतुर्वेदी
भोजपुरी भाषा का भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जलवा है। भोजपुरी भारत में आठवीं अनुसूची का हिस्सा भले नहीं हो। लेकिन मॉरीशस , फ़िजी, नेपाल , गयाना , सूरीनाम और सिंगापुर में खूब बोली जाती है। इससे ही पता चलता है कि इसका विस्तार कहां तक है। भोजपुरी फ़िल्मों की शुरुआत 1960 के दशक में गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ईबो से हुई थी। इसके पीछे प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और गाज़ीपुर के उसियां गांव के निवासी नज़ीर हुसैन की महत्ती भूमिका थी। भोजपुरी ने एक से बढ़कर एक सुपरस्टार दिए। भोजपुरी का दबदबा इसी बात का प्रमाण है कि भारत में भाषायी आधार पर सबसे ज्यादा फिल्में इसी भाषा में बनती हैं।
मनोज तिवारी, रवि किशन , पवन सिंह , दिनेश लाल यादव , खेसारी लाल यादव आदि ने इसके उन्नति में काफी योगदान दिया है। भोजपुरी में अमिताभ बच्चन से लेकर धर्मेंद्र , हेमा मालिनी , भाग्यश्री, मिथुन चक्रवर्ती ने भी अभिनय किया है। भोजपुरी के लिए एक समय में कहा जाता था कि मिसरी से मीठ लागे भोजपुरी बोली , एक बार आके बनारस में बोलीं। लेकिन इस मीठी भाषा के फिल्में और गायन में फूहड़ता का प्रवेश हो गया है। गानों को हिट करने के लिए तमाम बड़े कलाकार द्विअर्थीय गाना गाने लगें। राते दिया बुताके पिया क्या क्या किया, लहंगा उठा देब रिमोट से, लवण्डिया लंदन से लाएंगे द्विअर्थीय गानों में से एक हैं। ऐसा नहीं है कि यह गाने नहीं सुने जा रहे हैं। परंतु किसी भी भाषा की सुंदरता को बनाए रखने के लिए उसके लोगों को ही कदम उठाना पड़ता है। भोजपुरी भाषा में भरत शर्मा , मदन राय, गोपाल राय , विष्णु ओझा ने शानदार गाने गाएं हैं। मनोज तिवारी, पवन सिंह आदि ने भी बढ़िया गाने गाएं हैं। लेकिन आज के दौर में नए गायकों ने जल्दी प्रसिद्धि पाने के चक्कर में भोजपुरी की मिठास को तार तार कर दिया है। हमें समझना होगा कि जिस माटी ने शारदा सिन्हा जैसी स्वर कोकिला दिया। भिखारी ठाकुर जैसे रत्न दिए। हमें उनके पदचिन्हों पर चलते हुए भोजपुरी के मान को बढ़ाना चाहिए।
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