सोनू चौबे
नयी दिल्ली, स्थानीय अबुल फज़ल मार्ग स्थित एनडीएमसी पार्क में “हुत” के बैनर तले सामूहिक कविता पाठ का आयोजन किया गया. 23 नवंबर की शाम को खुशनुमा बनाते हुए युवा रचनाकारों ने स्वरचित कविताओं का पाठ किया. हुत के तत्वाधान में यह चौथा आयोजन था. सभा की शुरुआत युवा रचनाकार एवं पत्रकार सुशील पाण्डेय ने अपनी कविता “मौत का बागान और ज़िंदगी” से की. कविता दार्जिलिंग और असम के चाय-बागानों के मजदूरों की व्यथा पर केंद्रित थी. कविता ने एक चुसकी चाय के पीछे बहे मजदूरों के पसीने और लहू को काफी मार्मिक तरीके से प्रस्तुत किया. नवंबर की कांपती शाम को इस प्रस्तुति ने अपने थपेड़ों से गर्म कर दिया. वहीं दूसरे युवा कवि और लोक जन स्वर ब्लाग के संपादक अमन आकाश ने अपनी हास्य कविता “लौट के बुद्धू घर को आए” सुनाकर माहौल को हल्का किया. विगत दिनों पटना में नवनियोजित शिक्षकों द्वारा किए गए हड़ताल को हास्य का जामा पहनाकर बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर उन्होंने करारा प्रहार किया. उनके द्वारा पढ़ी गयी अन्य कविताएं “सिसकियां” और “मैं एक कलाकार हूं” को भी श्रोताओं ने सराहा. कविता “सिसकियां” जहां कन्या भ्रूण हत्या पर केंद्रित थी वहीं “मैं एक कलाकार हूं” के ज़रिए उन्होंने अपने रंगमंच की यादों को साझा किया. अन्य युवा कवि इरेंद्र बबुअवा ने अपनी क्षणिकाओं “शक”, “राह नहीं” और “चल दिए” का पाठ कर श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया.
सभा का समापन वरिष्ठ कवि कुमार विरेंद्र ने अपनी रचना “आहार में आहार” के पाठ से की. अपनी कविता में भोजपुरी भदेसपन का छौंक लगाते हुए जीवन-यापन के लिए सभी प्राणियों के एक दूसरे भर निर्भरता और मानवीय संबंधों को दर्शाया है. सभा का समापन “हुत” के संयोजक इरेंद्र बबुअवा ने धन्यावाद ज्ञापन से किया. बताते चलें कि युवा रचनाकारों को तरजीह देने वाली संस्था “हुत” हर रविवार को कविता पाठ का आयोजन करती है, जिसमें दिल्ली, उत्तर-प्रदेश, बिहार तथा अन्य राज्यों के युवा कवि शिरकत करते हैं.
बहुत अच्छी कोशिश...... इसे जारी रखें!!
ReplyDeleteधन्यवाद जी !!!!
ReplyDeleteअत्यंत सराह्नीय
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