अमन आकाश
नई दिल्ली, गांधी शांति प्रतिष्ठान केतत्त्वाधान में 15 दिवसीय पत्रकारिता एवं लेखन कार्यशाला का आयोजन किया गया। 5 सितंबर से शुरु इस कार्यशाला में पत्रकारिता के विभिन्न आयामों के विशेषज्ञ जैसे रामबहादुर राय, अच्युतानंद मिश्र, जवाहर लाल कौल, वेदप्रताप वैदिक, कुलदीप नैयर, अरविंद मोहन, वर्षा दास, मणिमाला, क़मर वहीद नक़वी, प्रियदर्शन, देवप्रिय अवस्थी, अरुण कुमार त्रिपाठी, अनिल चमड़िया, अकु श्रीवास्तव, मणिकांत ठाकुर, पुण्य प्रसून वाजपेयी, रवीश कुमार, आनंद प्रधान, संत समीर एवं पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र शामिल हुए। प्रांत के भिन्न-भिन्न विश्वविद्यालयों के पत्रकारिता छात्रों और इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले अन्य व्यक्तिओं ने भी अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करायी।
कार्यशाला का आरम्भ कार्यशाला संयोजक अभय प्रताप द्वारा आए हुए अतिथियों के स्वागत से हुआ। तदोपरांत जनसत्ता के पूर्व संपादक अच्युतानंद मिश्र ने प्रतिभागियों को पत्रकारिता के गौरवशाली इतिहास से अवगत कराया। उन्होंने आजादी और उसके बाद की पत्रकारिता के बारे में विस्तार से समझाया। आजकल पत्रकारिता के बदलते मायनों को लेकर उन्होंने रोष भी व्यक्त किया। इसके बाद गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की निदेशक मणिमाला भी प्रतिभागियों से रू-ब-रू हुईं। उन्होंने बताया कि आजकल लोगों का रूझान पत्रकारिता की ओर नहीं अपितु मीडिया की ओर है। सबको मीडिया में ग्लैमर नजर आता है। जो आने वाले दिनों में पत्रकारिता के लिए दु:खद संदेश है। वहीं न्यूज चैनल आज तक के कार्यकारी संपादक पुण्य प्रसून वाजपेयी ने कहा कि अब पत्रकारिता शब्द मृतप्राय हो गयी है। इसकी नयी संज्ञा मीडिया है। मीडिया, जो दागदार है और कटघरे में खड़ी है। उन्होंने पत्रकारिता की भावी पीढ़ी से कहा कि सारी जिम्मेदारी अब आपके कंधों पर है। पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता से अपना काम करते रहिए।
भारतीय जनसंचार संस्थान के प्राध्यापक आनंद प्रधान ने लगभग 45 मिनट के अपने व्याख्यान में पत्रकारिता से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण बातें बतायीं। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में आप सब मिलकर एक नयी शुरुआत भी कर सकते हैं। पत्रकारिता के परंपरागत विधियों से इतर कुछ प्रयोगधर्मी तरीके अपनाइए। मसलन इंटरनेट, ब्लॉग के माध्यम से पत्रकारिता। छात्र इनसे काफी सहमत दिखे। वरिष्ठ पत्रकार क़मर वहीद नक़वी ने पत्रकारिता की भाषा पर सवाल उठाए और स्वयं ही उनका उत्तर भी दिया। उन्होंने हिंदी भाषा कैसी होनी चाहिए? संवाद का सलीका कैसा हो? भाषा में ऐसा कौन-सा तत्त्व डाला जाए कि अपनापन लगे? आदि महत्त्वपूर्ण विषयों पर लंबी बातचीत की। प्रख्यात लेखिका वर्षा दास ने लैपटॉप की सहायता से गूगल की महत्ता संबंधी एक वीडियो दिखायी और बताया कि वर्त्तमान दौर में इंटरनेट किस तरह हम पर हावी होता चला रहा है। उन्होंने इसके इस्तेमाल-संबंधी दुष्प्रभावों पर भी चर्चा किया। वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक ने भी अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज करायी। हालिया पाकिस्तानी आतंकी हाफिज़ सईद से साक्षात्कार कर लौटे डॉ. वैदिक से बात करने को लेकर युवा पीढ़ी काफी उतावली दिखी। विदेश नीति पर बात करते हुए इन्होंने अपनी वक्तृत्व कला से सबकी जिज्ञासा को शांत किया। कार्यशाला के लगभग अंतिम दिनों में पत्रकार अरविंद मोहन का व्याख्यान हुआ। जिसमें उन्होंने पत्रकारिता पर उद्योग जगत और सत्ता के बढ़ते दबाव के बारे में छात्रों को बताया। उन्होंने बताया कि पूंजी के बगैर मास मीडिया का बिजनेस नहीं चल सकता और सत्ता से रिश्ते भी बनाए रखना आवश्यक होता है। इन सभी विशेषज्ञों के व्याख्यानों के बीच प्रतिभागियों से जुड़ने का सबसे प्रभावशाली तरीका रहा एनडीटीवी इंडिया के कार्यकारी संपादक रवीश कुमार का। उन्होंने अनौपचारिक बातचीत के जरिए प्रतिभागियों से सीधा संपर्क स्थापित किया। सब एक के बाद एक प्रश्न दागते रहे और रवीश कुमार अपने चिरपरिचित ठेठ लहजे में सबको जवाब देते रहे। कार्यशाला के अंतिम दिन 19 सितंबर को वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार कुलदीप नैयर ने अपने संक्षिप्त संबोधन के बाद सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र प्रदान किए। कुछ अन्य विषयों से संबंधित पुस्तकें एवं पत्रिकाएँ भी दी गयीं। कार्यक्रम के अंत में गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव सुरेंद्र शर्मा ने सबका धन्यवाद ज्ञापन करते हुए समापन की घोषणा की। व्याख्यान के दौरान द्विपक्षीय संवाद ने कार्यशाला को काफी हद तक सफल बनाया। हर किसी के दिलोदिमाग में मीडिया को लेकर नकारात्मक पक्ष भरे हुये थे। इस तरह के संवाद से कई सारी गलतफहमियाँ दूर हुयीं।
कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य पत्रकारिता की नयी पौध में नैतिक मूल्यों की सिंचाई तथा बौद्धिक विकास का उर्वरक देकर उनमें लक्ष्य की ओर उन्मुखता, समाज को देखने का नजरिया और विचारशीलता-सृजनशीलता विकसित करना है। इस पूरी कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों ने ‘‘युवा उद्घोष’’ नामक एक समाचारपत्र भी निकाला।
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