श्रेया पाण्डेय
''आज की दुनिया विचित्र नवीन
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन है
नर के घरो में बधे वारि विधुत भाप
हुक्म पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप
है बाकी नहीं कोई व्वयाधन
लाँघ सकता नर सरित गिरि सिंधु एक समान."
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन है
नर के घरो में बधे वारि विधुत भाप
हुक्म पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप
है बाकी नहीं कोई व्वयाधन
लाँघ सकता नर सरित गिरि सिंधु एक समान."
इस तरह से हम देख सकते है कि यह भूमंडलीकरण के इस दौर में मनुष्य के आदेश पर ही पवन उतरता चढ़ता है. इस तरह से हम अपनी बुनियादी जरुरतो को भूलते ही जा रहे है कि हमारी मूलभूत जरूरते क्या है? विकास के इस दौर में हम तेज रफ़्तार से भागते जा रहे है ,और अपनी आधार को भूलते जा रहे है. चलिए, अब बात मुद्दे की करते है. बुनियादी विकास क्या है ? बेरोजगारी से छुटकारा, गरीबो का उत्थान, शिक्षा इत्यादि बुनियादी विकास के अन्तर्गत आते है. लेकिन बड़े दुःख की बात है कि आज ना तो सरकार इस पर गौर फरमा रही है ना ही देश की जनता. हम इस बात का खुशी बनाते नहीं थक रहे है कि हमारा देश मंगलयान पर पहुँच गया है. वाकई खुशी की बात तो है क्यूंकि किसी भी देश की प्रगति के लिए विकासशील होना अनिवार्य है. लेकिन हम ऊँचाई पर तो पहुँच गये है पर जमीन तो खोखली ही है.
यह तो वही बात हो गयी कि बाहर से हट्टा कट्टा दिखने वाला इंसान आंतरिक रूप से खोखला है, तो उसके बाहय रूप से बलवान होना बलवंता नही कहलाता है क्यूंकि कहा जाता है कि आंतरिक रूप से बलवान होना ही बलवंता कहलाता है. चलिए अब एक उदारहण द्वारा मै आपको समझती हूँ की वाकई बुनियादी विकास पीछे छुट गया है. देश में कई ऐसे जगह है जहन लोगो को रहने के लिए छत भी नसीब नहीं हैं. कभी एक वक्त की रोटी तो कभी वह भी नसीब नहीं होती है उनको. ये केवल एक उदाहरण नहीं है अपितु इसके जैसे तमाम उदाहरण से हमारा देश भरा हुआ है.
हम बात करते है कि हमे बुलेट ट्रेन चाहिए मैं भी सहमत हूँ. लेकिन इसका उपयोग कौन करेगा क्योंकि भारत की लगभग 70% आबादी गाँव में रहती है और गाँव में न तो पैसा है न शिक्षा है तो कैसे होगा इसका उपयोग. एक समृद्ध देश के नागरिक के लिये रोटी ,कपड़ा, मकान, शिक्षा और चिकित्सा सबसे मूलभूत आवश्यक्ता है. इस तरह से भूमंडलीकरण के दौर में अमीर और भी अमीर हो जायेंगे और गरीब दिन पर दिन गरीब. यह एक समय भारत में अराजकता की स्थिति पैदा कर सकता है. विकास की नीति ऐसी होनी चाहिये जो देश क हर वर्ग को आगे बढ़ाने मॆं सहायक हो.
यह तो वही बात हो गयी कि बाहर से हट्टा कट्टा दिखने वाला इंसान आंतरिक रूप से खोखला है, तो उसके बाहय रूप से बलवान होना बलवंता नही कहलाता है क्यूंकि कहा जाता है कि आंतरिक रूप से बलवान होना ही बलवंता कहलाता है. चलिए अब एक उदारहण द्वारा मै आपको समझती हूँ की वाकई बुनियादी विकास पीछे छुट गया है. देश में कई ऐसे जगह है जहन लोगो को रहने के लिए छत भी नसीब नहीं हैं. कभी एक वक्त की रोटी तो कभी वह भी नसीब नहीं होती है उनको. ये केवल एक उदाहरण नहीं है अपितु इसके जैसे तमाम उदाहरण से हमारा देश भरा हुआ है.
हम बात करते है कि हमे बुलेट ट्रेन चाहिए मैं भी सहमत हूँ. लेकिन इसका उपयोग कौन करेगा क्योंकि भारत की लगभग 70% आबादी गाँव में रहती है और गाँव में न तो पैसा है न शिक्षा है तो कैसे होगा इसका उपयोग. एक समृद्ध देश के नागरिक के लिये रोटी ,कपड़ा, मकान, शिक्षा और चिकित्सा सबसे मूलभूत आवश्यक्ता है. इस तरह से भूमंडलीकरण के दौर में अमीर और भी अमीर हो जायेंगे और गरीब दिन पर दिन गरीब. यह एक समय भारत में अराजकता की स्थिति पैदा कर सकता है. विकास की नीति ऐसी होनी चाहिये जो देश क हर वर्ग को आगे बढ़ाने मॆं सहायक हो.
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