Tuesday, 20 January 2015

युवा कवयित्री दामिनी का एकल कविता-पाठ

राहुल शर्मा

‘‘वफ़ादारी’’
‘‘...बीवी बेवफ़ाई के बँटते ताजमहल को
कर देती है नज़रअन्दाज़
बस मनाती है इतना कि
घर से बाहर ही रहे हर आँच
अपने घर की दहलीज़ से ही वो
अन्तिम चिता तक जाना चाहती है
इसलिए हर रोज़
बेवफ़ा पति की सेज पर
पूरी वफ़ादारी से ख़ुद को बिछाती है.’’
कवयित्री दामिनी की कविताओं की ये पंक्तियाँ अपने तथ्य और नजरिए के ज़रिए बग़ैर किसी नेपथ्य के सहारे अपना सशक्त परिचय देती हैं. हिन्दी की ज़मीनी रचनाशीलता को अनौपचारिक मंच देने के उद्देश्य से गठित साहित्यिक संस्था ‘हुत’ हर रविवार को कविता-पाठ कार्यक्रम का आयोजन करती है. ‘हुत’ की तरफ़ से यह आयोजन रविवार, 18 जनवरी, 2015 को अपराह्न 3.00 बजे से एनडीएमसी पार्क, अबुल फ़ज़ल रोड, नियर तिलक ब्रीज रेल्वे स्टेशन, मंडी हाउस, नई दिल्ली में किया गया था. अपने कविता-पाठ में दामिनी ने---
‘विरासत’, ‘मक़सद’, ‘एक औरत और दूसरी औरत’,‘चेतावनी’, ‘सहभागी’, ‘ताल ठोक के’, ‘माहवारी’, ‘इज्ज़त’, ‘रात सुनाती मेरी कहानी’, ‘माँ’, ‘वफ़ादारी’, ‘प्रेयसी बनाम चादर’, ‘बोनसाई’, ‘माधुरी’, ‘कोठा’, ‘ओ हव्वा’ आदि कई कविताएँ प्रस्तुत कीं. 
इस गोष्ठी में दामिनी ने अपने उम्दा कविता-पाठ के ज़रिए ऐसे कथ्य की कविताएँ प्रस्तुत कीं जिन पर सोचा तो जा सकता है, लेकिन कविता लिखने की कल्पना अब तक किसी कवयित्री ने नहीं की थी. यह दामिनी की वैचारिक दृढ़ता ही है कि समाज, सभ्यता और संस्कृति से टकराते अपनी कविताओं में उस सच को अंजाम देने का काम किया जिसे आज तक हिन्दी कविता में एक झूठ, एक शर्म की तरह बिम्बों-प्रतीकों में गढ़ा जाता रहा. हिन्दी के कवि-आलोचक कुमार मुकुल ने अपने वक्तव्य में कहा कि दामिनी की कविताओं में प्रतिरोधक शैली गहरे रूप से प्रभावित करती है. हिन्दी में पहली बार किसी कवयित्री ने बेबाक ढंग से स्त्री-संसार के उस यथार्थ को कविता का विषय बनाया है, जिसे पितृसत्तात्मकता की आड़ में अब तक संस्कृति या कला के नाम पर  छुपने-छुपाने का खेल खेला जाता रहा. दामिनी ने जिस साहस का परिचय दिया है वह क़ाबिले-तारीफ़ है. कवि और गहरी आलोचकीय दृष्टि रखनेवाले आर. चेतन क्रान्ति ने विचार व्यक्त किया कि दामिनी की कविताओं के तथ्य वाक़ई में दुर्लभ तथ्य हैं. अगर इस कवयित्री ने अपने शिल्प को अच्छी तरह साध लिया तो सम्भावना दूर तक जाने की स्पष्ट दिखती है. युवा कवि-पत्रकार सुशील कुमार ने कहा कि दामिनी की कविताएँ सृजन का इतिहास और इतिहास के सृजन की कविताएँ प्रतीत होती हैं.
युवा कवि गुफरान ने उल्लेखित किया कि प्रेम की यातना जो दामिनी की कविताओं में है वह कहीं और नहीं दिखती. युवा रचनाकार विद्या सागर ने कहा कि इनकी कविताओं की अन्तर्वस्तु अपनी केन्द्रीयता में एक दृश्य के रूप में प्रकट होती है और विचलित करती है. वहीं पूर्णिमा सिंह ने कहा कि इनकी कविताओं में कहीं से नहीं लगा कि बनावटीपन है. सबकुछ उस सच की तरह है जिसे एक स्त्री ही समझ सकती है. कार्यक्रम का संचालन कर रहे युवा कवि और साहित्यिक पत्रिका ‘रू’ के सम्पादक कुमार वीरेन्द्र ने विचार व्यक्त किया कि असहनीय परिस्थितियों के चाक पर ही सृजन के ख़तरे उठाए जा सकते हैं, इसका स्पष्ट सबूत पेश करती हैं युवा कवयित्री दामिनी की कविताएँ. दामिनी की कविताएँ जिस घिनौनी दुनिया को रचती हैं, शर्म आती है कि हम उसी दुनिया के नागरिक और मनुष्य हैं. 'दु:ख' इस कवयित्री का रचना-आधार है जो बहुतों का रहा है, लेकिन 'घृणा' एक सशक्त दृष्टि भी हो सकती है, यह तो एक विरल प्रतीति है. कार्यक्रम के अंत में गोष्ठी के संचालक एवं युवा कवि इरेंद्र बबुअवा ने सबका धन्यवाद ज्ञापन करते हुए इस तरह की वैचारिक गोष्ठी को हर रविवार निर्बाध रूप से संचालित करने की घोषणा की.

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