Saturday, 31 January 2015

अतिथि देवो भव: !!!

नीलम रावत
भारत अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है। इसी लिए इसे ‘अतुल्य भारत’ का नाम दिया गया है। भारत में सभी धर्मों, जातियों, समुदायों का सम्मान किया जाता है और उतना ही सम्मान दिया जाता दूसरे देश से आने वाले अतिथियों को। वह हमारे देश में देश की सुंदरता को देखने तथा हमारी संस्कृति से अवगत होने आते हैं। भारतवर्ष में अतिथियों को भगवान का दर्जा दिया जाता है, परंतु धीरे-धीरे 'अतिथि देवो भवः' के मायने बदलने लगे हैं। अतिथियों का स्वागत तो किया जाता है परंतु उन्हें आदर नहीं दिया जाता। विदेशी महिलाओं के साथ बदसलूकी की जाती है। विदेशी सैलानियों को गाइड बनकर घूमाने के नाम पर लूटा जाता है।
विदेशी महिलाओं के साथ छेड़खानी तथा दुष्कर्म जैसी घटनाएँ भी सामने आयी हैं। भारत की राजधानी दिल्ली में बढ़ते अपराधो तथा बलात्कार जैसी घटनाओं से पर्यटकों की संख्या में कमी आयी है। विदेशी सैलानियों ने भारत में आना कम कर दिया है, जिससे पर्यटन विभाग को खासा नुकसान उठाना पड़ रहा है। निर्भया केस के बाद विदेशी सैलानियों की संख्या में 30% की भारी गिरावट आयी है। वर्ष 2012-13 में जहां सैलानियों की संख्या 12,25,484 थी, वहीं वर्ष 2013-14 में यह संख्या घटकर 8,83,411 हो गयी, लगभग 29.3% की गिरावट रही। यदि ऐसा ही चलता रहा तो आगामी वर्षों में विदेशी सैलानियों का भारतभ्रमण ना के बराबर हो जाएगा। इसलिए देशवासियों को अपनी संस्कृति-सभ्यता का खयाल रखते हुए विदेशी सैलानियों का आदर-सत्कार करना चाहिए तथा अतिथि देवो भव: के सही मायनों को बरकरार रखना चाहिए।
     

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