संतोष कुमार
चतुर्थ “श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफ्को साहित्य सम्मान” सुविख्यात कथाकार श्री मिथिलेश्वर को कमानी ऑडिटोरियम में दिया गया | हिन्दी के मूर्धन्य कथाकार पद्मभूषण श्रीलाल शुक्ल की स्मृति में वर्ष 2011 से यह सिलसिला शुरू हुआ | यह सम्मान प्रतिवर्ष ऐसे साहित्यकार को दिया जाता है जिनका हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के संवर्धन में महत्वपूर्ण अवदान रहा हो तथा विशेष रूप से, जिन्होंने भारतीय कृषि और किसान तथा ग्रामीण जीवन से जुड़ी समस्याओं, आकांक्षाओं और संघर्षों को अपने साहित्य के माध्यम से मुखरित किया हो | सम्मान के रूप में साहित्यकार को प्रशस्ति-पत्र, प्रतीक चिन्ह एवं ग्यारह लाख रुपये की राशि प्रदान की जाती है | 31 दिसंबर, 1950 को बिहार के भोजपुर जिले के बैसाडीह गाँव में जन्मे श्री मिथिलेश्वर के कथा साहित्य में गाँव की जिंदगी अपने समस्त रूप, रंग और गंध के साथ चित्रित होती है |
समारोह के मुख्य अतिथि थे सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद | तमाम औपचारिकताओं के बाद
मंच संचालक ने मुख्य अतिथि को यह कहते हुए संबोधन के लिए आमंत्रित किया कि “कृपया यह स्पष्ट करें कि किसान के अच्छे दिन कब आयेंगे” ! बड़ा वाजिब प्रश्न था, क्योंकि उर्वरक उत्पादन की कंपनी “इफ्को” का दावा है कि “धरती माँ व किसानों की सेवा ही इफ्को का धर्म है” और जिन्हें सम्मान दिया जा रहा था वो भी किसानों के राग-विराग, सुख-दुःख और चेतना का चित्रण करते हैं | लेकिन भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता रह चुके माननीय मंत्री महोदय बड़ी चतुराई से इस प्रश्न को अनसुना कर गये | फिर वही भजन-कीर्तन शुरू हुआ जो रोज ख़बरों में सुनते हैं 3 महीने में साढ़े ग्यारह करोड़ बैंक अकाउंट, स्वच्छ भारत अभियान, गंगा सफाई वगैरह वगैरह |
बीच- बीच में लोगों को यह भरोसा दिलाते रहे थे की वह स्वयं भी “यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ बिहार” से आते हैं | सूबे के महान साहित्यकारों तथा कवियों (विद्यापति,दिनकर, नागार्जुन, फणीश्वरनाथ रेणु, रामवृक्ष बेनीपुरी) का नाम लेकर श्री प्रसाद ने तालियाँ भी बटोरी तथा मंच पर उपस्थित साहित्यकारों से एक चिंता भी साझा की | चिंता थी प्रशासनिक हिन्दी के क्लिष्टता को लेकर | उन्होंने कहा की एक बार उन्होंने हिम्मत दिखाया लेकिन हिन्दी भाषा कि गहराई में डूबने से अच्छा था की अंग्रेजी में ही काम को अंजाम दे देना | उन्होंने कुछ उदहारण
भी दिए (television-दूरदर्शन, All India Radio- आकाशवाणी, school-विद्यालय, college-महाविद्यालय, University-विश्वविद्यालय) और कहा की इसी तरह का सरल और सहज अनुवाद भारतीय कानून की भाषा का भी चाहते हैं |
महामहिम के संबोधन के बाद श्रीलाल शुक्ल के द्वारा ही लिखे गये कहानी “सुखांत” का नाट्य मंचन प्रस्तुत किया गया | अभिनय, साउंड, लाइट और दर्शक के सामंजस्य से सफल मंचन सम्पूर्ण हुआ तदुपरांत आगंतुकों को भोजन के लिए आमंत्रित किया गया | लेकिन एक बात जो मेरे मन को कचोट रही थी, कि कितना अच्छा होता की इस सम्मान को उन लोगों के बीच दिया जाता जो लेखक के लेखनी
के नायक और नायिका हैं, उस जगह दिया जाता जिसका चित्रण लेखक ने अपने उपन्यास में किया है | इस प्रीतिभोज में अगर वे शामिल होते तो शायद लेखनी जिंदा हो जाती |
मंच संचालक ने मुख्य अतिथि को यह कहते हुए संबोधन के लिए आमंत्रित किया कि “कृपया यह स्पष्ट करें कि किसान के अच्छे दिन कब आयेंगे” ! बड़ा वाजिब प्रश्न था, क्योंकि उर्वरक उत्पादन की कंपनी “इफ्को” का दावा है कि “धरती माँ व किसानों की सेवा ही इफ्को का धर्म है” और जिन्हें सम्मान दिया जा रहा था वो भी किसानों के राग-विराग, सुख-दुःख और चेतना का चित्रण करते हैं | लेकिन भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता रह चुके माननीय मंत्री महोदय बड़ी चतुराई से इस प्रश्न को अनसुना कर गये | फिर वही भजन-कीर्तन शुरू हुआ जो रोज ख़बरों में सुनते हैं 3 महीने में साढ़े ग्यारह करोड़ बैंक अकाउंट, स्वच्छ भारत अभियान, गंगा सफाई वगैरह वगैरह |
भी दिए (television-दूरदर्शन, All India Radio- आकाशवाणी, school-विद्यालय, college-महाविद्यालय, University-विश्वविद्यालय) और कहा की इसी तरह का सरल और सहज अनुवाद भारतीय कानून की भाषा का भी चाहते हैं |
महामहिम के संबोधन के बाद श्रीलाल शुक्ल के द्वारा ही लिखे गये कहानी “सुखांत” का नाट्य मंचन प्रस्तुत किया गया | अभिनय, साउंड, लाइट और दर्शक के सामंजस्य से सफल मंचन सम्पूर्ण हुआ तदुपरांत आगंतुकों को भोजन के लिए आमंत्रित किया गया | लेकिन एक बात जो मेरे मन को कचोट रही थी, कि कितना अच्छा होता की इस सम्मान को उन लोगों के बीच दिया जाता जो लेखक के लेखनी
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