Wednesday, 14 January 2015

भ्रष्टाचार के चंगुल में फंसता समाज...


श्रेया पाण्डेय
उदारीकरण के दौर के बाद पूंजी और सूचना का प्रवाह जैसे-जैसे बढ़ा उसके साथ ही भ्रष्टाचार ने भी अपने पैर पर फैलाए. भ्रष्टाचार की खबर सुनकर हम अक्सर हैरान हो जाते हैं जबकि बचपन से ही हम कहीं न कहीं इसके प्रभाव में आ जाते है, तो जाहिर सी बात है कि इस समस्या से छुटकारा पाना मुश्किल हैं. जिस तरह से कहते है कि अगर हम पूरे लगन से कोई कार्य करते है तो वो अवश्य होता है. तो फिर भ्रष्टाचार की खबर सुनकर हम उस पर हैरान और भ्रष्टाचार करने वाले को भला बुरा क्यों कहते है ? क्या सिर्फ इसलिए कि उस मनुष्य ने लाख या करोडो का भ्रष्टाचार किया है ,जबकि बात चाहे एक रूपये की हो या लाख रूपये की है तो भ्रष्टाचार ही.
अधिकतर हम देखते है कि हम अपना थोड़ा सा वक्त बचाने के लिए कभी जायदा पैसे देकर अपने कार्य की पूर्ति करते है तो कभी हम अपने पद की गरिमा का नाजायज इस्तेमाल करके अपने कार्य को पूरा करते है. माना कि आजकल की भागदौड़ भरी जिन्दगी में वक्त की कीमत बहुत ज्यादा है ,
पर शायद वक्त की कीमत हमारे जमीर से बढ़ कर तो नहीं है तो फिर क्यों हम इसका समझौता करने में जरा भी नहीं हिचकिचाते है ? यही कारण है कि आज हम भ्रष्टाचार के चंगुल में बुरी तरह से फंस चुके है जहाँ से निकलना हमारे लिए असंभव है. तो अब यह बात तो स्पष्ट हो गयी कि भ्रष्टाचार को उड़ान भराने के लिये सिर्फ और सिर्फ हमारा ही हाथ और हमारा ही साथ है. यहाँ पर यह कहना बिलकुल गलत नही होगा कि भ्रष्टाचार की जो उड़ान आज समाज में दिख रही है वह भ्रष्टाचार के हौसले की नहीं अपितु यह हमारे हौसले की उड़ान है जो भ्रष्टाचार के रूप में निखर के सामने आ रही है. 

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