नीलम रावत
पत्रकार स्वतंत्र मिश्र की पुस्तक "जल, जंगल और जमीन, उलट-पुलट पर्यावरण" जो पर्यावरण को केंद्र में रख कर लिखे गए लेखों का संकलन है। पुस्तक में पर्यावरण से संबंधित कुल ४३ लेख हैं। पुस्तक में ‘पर्यावरण आंदोलन की हकीकत’ नमक लेख में पर्यावरण से जुड़े आंदोलन की चर्चा की गयी है। पर्यावरण आंदोलन में अमेरिका बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता है, जबकि हकीकत यह है कि पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान भी अमेरिका ने ही पहुँचाया है। मुनाफे की लालसा के कारण हर पूंजीपति और पूंजीवादी देश प्राकृतिक संपदा की लूट में लगा रहता है। इसका परिणाम यह होता है कि बहुत सारे पेड़-पौधे, जीव-जंतु बिलुप्तप्राय हो रहे हैं। उनकी प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है या वे पूरी तरह समाप्त हो जाते हैं। इससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता है। आज आम जनता को ही पर्यावरण बचाना होगा, क्यूंकि आज तक पर्यावरण के असंतुलन का नुकसान आम लोगों को ही झेलना पड़ा है। पुस्तक के दूसरे लेख 'बोतलबंद पानी और निजीकरन' में एक तरफ पानी की समस्या को लेकर चर्चा की गयी है वही दूसरी ओर उसके निजीकरण पर सवाल उठाया है। आज दुनिया भर में पानी की समस्या एक भयावह रूप ले रही है। पानी की दिक्कतों को दूर करने के लिए बहुत सारे सरकारी- गैरसरकारी संगठन कार्यरत हैं, लेकिन ये सारे संगठन बहुराष्ट्रीय कंपनियो के निजी लाभों के सामने छोटे ही साबित हो रहे हैं। आज बोतलबंद पानी का बाजार तेजी से फल-फूल रहा है, इससे भी तेजी से बोतल का पानी पीने की मानसिकता का प्रसार हो रहा है।
जहा तक पानी के व्यवसाईकारण की बात है तो विश्व बैंक का अनुमान है कि पानी का बाजार तेजी से बढ़ रहा है जो आज लगभग 800 अरब डॉलर पहुँच गया है। हालत यह है कि आम आदमी पानी के मासिक बिलों की भेट चढ़ने लगा है। इस समस्या के समाधान के लिए समाज को निजीकरण के दूसरे स्थानों के नतीजों को सामने रखना होगा और विरोध की गति को रफ्तार देनी होगी। स्वतंत्र मिश्र के लेख 'यज्ञ नही, यत्न से निलेगा पानी' में भी पानी की समस्या से निपटने केलिए बारिश के पानी के इस्तेमाल के विषय में हमारा ध्यान दिलाया है। इसमे उन्होंने बताया कि सरकार सही तरीके से नीतियाँ बनाने तथा उसे लागू करने के बजाय अंधविश्वासो को बढ़ावा देने वाले कामों में लग गई है। वह बारिश के लिए कृत्रिम बादल बनाने के लिए करोड़ो रूपये खर्च कर रही है। जबकि हमे यज्ञ कराने तथा पैसा खर्च करने के बजाय बारिश के पानी को तालाबों, पोखरों ,बावड़ियों में सहेजना चाहिए । सरकार को यज्ञ नही समाज द्वारा यत्न से वापिस पानी पाने के उपायो का सहारा लेना चाहिए। वही हमने तालाब,बावड़ी जेसे पानी के पारंपरिक स्रोत की उपेक्षा कर बड़े-बड़े बांध बनाने शुरू किए है। बड़े बांधो से लोगों की समस्याओ का निपटारा तो नही हुआ परंतु उनकी मुसीबते जरूर बढ़ गई। आंकड़े बताते है की भारत में ऐसी बड़ी परियोजनाओ ने 3 करोड़ लोगों को विस्थापित किया है। बांध बनाने के लिए पर्यावरण से छेड़छाड़ और काफी धन खर्च किया जाता है। इस पुस्तक में सरकार द्वारा बयाने जाने वाले बड़े बाधों की वे आलोचना करते हैं जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है। धार्मिक कर्मकांडों के नाम पर नदियों को दूषित किया जा रहा है। हिमालय से निकलने वाली नदियाँ जैसे-जैसे पहाड़ो से निचले इलाकों में प्रवेश करती है उसमे प्रदूषण का स्तर बढ़ता जाता है। हरिद्वार की 'हर की पौड़ी' में गंगा की आरती के दौरान श्रद्धालु रोज हजारों किलो फूल, सैकड़ों लीटर तेल-घी नदी में विसर्जित करते है। गंगा नदी के किनारे बहुत सारे उद्योग विकसित किए गए, इन उद्योगो से निकलता कचरा नदियों के पानी को जहरीला बना रहा है। स्थिति ऐसी है कि उद्योगों के कचरे को बहाने पर सख्त प्रतिबंध तो लगाया जा सकता है लेकिन धर्म का इस्तेमाल जहां वोट बैंक के लिए किया जाता है वहाँ इस तरह की पाबंदी लगा पाना मुश्किल है ।
देश के विकास में पर्यावरण का महत्वपूर्ण स्थान है। हमें देश के विकास और अपने उत्थान के लिए पर्यावरण की देख-रेख करनी होगी। गांधी जी का कथन "प्रकृति हमारी सभी जरूरतों को पूरा कर सकती है, परंतु हमारे लालच को नहीं" बिल्कुल सही है। हम पर्यावरण से जितना लेते हैं उतना ही उसे लौटाना चाहिए । यदि हम एक पेड़ काटते है तो उसके बदले 10 पेड़ लगाने चाहिए जिससे पर्यावरण संतुलन बना रहा है और उसके साथ-साथ हम सम्पूर्ण देश का विकास पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना कर सकते हैं। स्वतंत्र मिश्र की पुस्तक "जल, जंगल और जमीन, उलट-पुलट पर्यावरण" विकास का सच और पर्यावरण को जानने के लिए बेहद महत्वपूर्ण पुस्तक है।
देश के विकास में पर्यावरण का महत्वपूर्ण स्थान है। हमें देश के विकास और अपने उत्थान के लिए पर्यावरण की देख-रेख करनी होगी। गांधी जी का कथन "प्रकृति हमारी सभी जरूरतों को पूरा कर सकती है, परंतु हमारे लालच को नहीं" बिल्कुल सही है। हम पर्यावरण से जितना लेते हैं उतना ही उसे लौटाना चाहिए । यदि हम एक पेड़ काटते है तो उसके बदले 10 पेड़ लगाने चाहिए जिससे पर्यावरण संतुलन बना रहा है और उसके साथ-साथ हम सम्पूर्ण देश का विकास पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना कर सकते हैं। स्वतंत्र मिश्र की पुस्तक "जल, जंगल और जमीन, उलट-पुलट पर्यावरण" विकास का सच और पर्यावरण को जानने के लिए बेहद महत्वपूर्ण पुस्तक है।
पुस्तकः जल, जंगल और जमीन उलट-पुलट पर्यावरण
लेखकः स्वतंत्र मिश्र
प्रकाशकः स्वराज प्रकाशन
मूल्यः 295 रूपये
लेखकः स्वतंत्र मिश्र
प्रकाशकः स्वराज प्रकाशन
मूल्यः 295 रूपये
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