साक्षी त्यागी...
भारत सदियो से ऐसी परम्पराओ का प्रतीक रहा है, जहाँ नदियो को मॉ दर्जा दिया गया है। मानव की आस्था और विश्वास नदियों से जुडा है। जिसका सांस्कृतिक और धार्मिक पहलू है, इसका मुख्य कारण यह भी है कि नदियां हमारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ती करती हैं। भारत देश में ऐसी नदियों की श्रेणी में गंगा का मुख्य स्थान है। इस देश मे गंगा को मॉ काहा जाता है। यह मान्यता सदियो से चली आ रही है कि गंगा मे डुबकी लगाने से मनुष्य अपने पापो से मुक्त हो जाता है और जीवन-काल के चक्र से भी मुक्ति पा लेता है। नदियों के जल से ही कृषि कार्य भी संपन्न होते हैं, गंगा के किनारे फसलें. सब्जियां और फल की खेती होती है।इसलिए नदियों को जीवनदायनी भी कहा गया है,और गंगा एक विस्तृत भूभाग को सिंचित करती है,उसकी प्यास बुझाती है. मानव सभ्यता के विकास में भी इन नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका है, इसके तट पर कई सभ्यताओं का उदय हुआ। प्रचीन और मध्य युग में नदियों के जरिये अवागम और व्यापार होता था. परंतु आज ह्म एक ऐसे समाज का हिस्सा बन चुके हैं, जो नदियों के महत्व को भूल गया है। वह अपने स्वार्थ के लिए नदियों का दोहन करने के साथ-साथ उसके पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण को गंभीर रूप से क्षति पंहुचा रहा है। इससे यह साफ हो गया है की हम अपनी नदियों की सभ्यता व संस्कृति की रक्षा करने में असमर्थ है। जिस गंगा की पवित्रता की कसमे पूरा देश सदियो से खाता आ रहा है, आज उसी गंगा को अपनी पवित्राता पर संदेह है। गंगा का उद्गम स्थान गोमुख है जहां से ये अपनी यात्रा प्रारंभ करती है, इसके बाद गंगा को अपनी यात्रा बंगाल की खाडी तक पूर्ण करनी होती है, गंगा अपनी इस यात्रा मे अपने साथ देश का पूरा कचरा बहा कर ले जाती है। गंगा की इस हालत को देख कर एक पुरानी हिन्दी फिल्म का एक गाना याद आ जाता है जिस के बोल है “राम तेरी गंगा मैली हो गई पापीयो के पाप धोते धोते”।
वर्तमान समय में लगभग एक अरब कचरा, अनुपचारित मल हर दिन गंगा मे प्रवाहित किया जाता है। यह आंकड़े हर बीस साल के अंतराल बढ़ते जा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगले बीस सालो में प्रदूषण के इस अनुपात में 100% इजाफा हो सकता है। बडी-बडी कम्पनियों से निकलने वाला कचरा भी गंगा मे प्रतिदिन प्रवाहित किया जा रहा है, पिछले 25 सालो मे गंगा में प्रदूषण बढ़ा है।
ऋषिकेश एक ऐसा शहर है, जो की गंगा के किनारे पर बसा है, यहाँ दूर-दूर से लोग इसकी खूबसूरती देखने आते है। यहां का प्रमुख घाट त्रिवेणी घाट है, जहाँ पर साफ-सफाई का कोई उचित साधन नहीं है। सरकार बडे-बडे शहरों में तो गंगा की हालत देख कर इसे प्रदूषण मुक्त करने के लिए कार्य कर रही है। स्वच्छता अभियान चला रही है, परंतु कई एसे छोटे-छोटे शहरों को वह भूल गई है, जो कि गंगा की सफाई के लिए अहम है। सरकार ने गंगा की सफाई के लिए बड़े-बड़े प्रोजेक्ट शुरू किए है पर वे सभी प्रोजेक्ट सिर्फ नाम के लिए हैं। रही बात गंगा के साफ और स्वच्छ रखने की तो गंगा यह काम खुद कर सकती है। हमें उसमें कचरा बहाने और प्रदूषित करने से खुद को रोकना होगा तभी जाकर गंगा को हम मूल रूप में देख पाएंगे, वर्ना गंगा में पानी की जगह गंदगी देखने को मिलेगी ।
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