हर्ष भारद्वाज
समलैंगिकता के ऊपर वैसे तो कई समय से लगातार बहस चल रही है. समलैंगिता का मतलब समान लिंग के प्रति आकर्षित होना होता हैं. जो एक स्वाभाविक प्रक्रिया हैं . देखा जाए तो आमतौर हम सभी लोग कहीं न कहीं समान सेक्स के प्रति आकर्षित होते हैं मगर यह जरुरी नहीं हैं की इसमें यौनसंबंध भी शामिल हो. बहुत सारे देशों में इस प्रकार के संबध को स्वीकार्यता प्राप्त हैं खासकर पश्चिमी देशों में, मगर भारत में आज भी धारा 377 के तहत इसे अपराध माना गया हैं. इसे अप्राकृतिक और अवैध माना गया हैं. हिन्दू धर्म इसकी इजाजत नहीं देता.
समलैंगिकता को अपराध क्यों माना जाता है यह वाकई एक बड़ा सवाल है. जब दो वयस्क अपनी रजामंदी के बिना किसी जबरदस्ती के एक दूसरे के साथ सम्बन्ध बनाना चाहते है तो यह अपराध कहा से हुआ सुप्रीम कोर्ट ने जब समलैंगिक सम्बन्धो को अपराध करार दिया तब कुछ लोगो ने इसे धर्म और भारतीय संस्कृति की जीत कहा पर क्या यह सही है समलैंगिक सम्बन्धो को अपराध नहीं मानना चाहिए यह उन परिवारो को भी कटघरे में खड़ा करता है जिनसे समलैंगिक जुड़े है किसी की भावना का क़त्ल कर देना ही सही मायने में अपराध है कही समलैंगिकता को अपराध कही बीमारी और कही मानसिक विकृति कहा गया है।
समलैंगिकता को अपराध क्यों माना जाता है यह वाकई एक बड़ा सवाल है. जब दो वयस्क अपनी रजामंदी के बिना किसी जबरदस्ती के एक दूसरे के साथ सम्बन्ध बनाना चाहते है तो यह अपराध कहा से हुआ सुप्रीम कोर्ट ने जब समलैंगिक सम्बन्धो को अपराध करार दिया तब कुछ लोगो ने इसे धर्म और भारतीय संस्कृति की जीत कहा पर क्या यह सही है समलैंगिक सम्बन्धो को अपराध नहीं मानना चाहिए यह उन परिवारो को भी कटघरे में खड़ा करता है जिनसे समलैंगिक जुड़े है किसी की भावना का क़त्ल कर देना ही सही मायने में अपराध है कही समलैंगिकता को अपराध कही बीमारी और कही मानसिक विकृति कहा गया है।
समलैंगिकों के हितो में आवाज बुलंद करने वाली नाज फाउंडेशन नामक संस्था तो बाकायदा समलैंगिकों के अधिकारों और समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करवाने के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ रही है जिसमे उसे काफी हद तक सफलता भी मिली है नाज फाउंडेशन की याचिका पर वर्ष २०१० में दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला आया था की दो वयस्क अपनी सहमति से समलैंगिक रिश्ता बनाते है तो यह ३७७ आई पी सी के अंतर्गत अपराध नहीं होगा उच्त्तम न्यायालय ने भी धारा ३७७ के कुछ प्रावधानों को रद्द करने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक लगाने से इंकार कर दिया परन्तु इस पर कई समय तक विचार चला फिर इसे धारा 377 के तहत अपराध करार दे दिया गया। देश में मनाया गया गे प्राइड परेड कई बातो पर सोचने को मजबूर कर देता है भारतीय संस्कृति तो हमेशा सबकी भावनाओ का सम्मान करना सिखाती आई है फिर क्यों समलैंगिको की भावनाओ को ठेस पहुँचाई जा रही है. समलैंगिकों को भी उनका हक़ मिलना चाहिए किसी की प्रेम भावना को कुचल देना ही सबसे बड़ा अपराध है यह मानसिक बीमारी नहीं बल्कि प्रेम है समलैंगिकता वर्तमान में ही नहीं वरन इतिहास से चली आ रही है भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में जहाँ सभी को सामान अधिकार दिए गए है वहां समलैंगिकों के साथ भेदभाव क्यों हो रहा है. आने वाले समय में समलैंगिकता अपराध नहीं होगा। ऐसा समय जरूर आएगा जब सभी समलैंगिक खुल कर एक दूसरे के साथ रह सकेंगे और उन्हें सम्मान की नजर से देखा जायेगा.
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