दीपक झा
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी माना जाता है. क्योंकि कहते हैं कि उनमें समाज को लेकर चेतना और नैतिकता होती है, पर आज हम उन सब चीजों को भूलते चले जा रहे हैं. पता नहीं इसकी वजह क्या है, इसके कारण क्या है? कौन लोग इसके जिम्मेदार हैं? हम सब एक व्यवस्था से बंधे हुए लोग हैं और यह समाज एक व्यवस्था है. किसी भी समाज को चलाने के लिए एक बेहतर व्यवस्था का होना बहुत जरूरी है. मगर आज हम देखते हैं की समाज में संवेदनशीलता ख़त्म होती जा रही है, आधुनिकता और विकास की राह पर चलते-चलते इंसानियत कहीं खो गई है. इस व्यवस्था ने उसे सभ्य बनाने के बजाए पंगु बना दिया है. आज से कुछ दिन पहले की ही घटना है जब मैं घर से कॉलेज जा रहा था तब मैंने एक ऐसा दृश्य देखा जिससे मेरी रूह कांप गई. रेल की पटरी पर छतविछत हालत में एक लाश पड़ी हुई थी. रेल लाइन के किनारे व्यक्ति की लाश कई दिनों तक पड़ी रही . मगर इस विषय में किसी ने पुलिस या अस्पताल को सूचना नहीं दी थी . यह घटना जहां घटित हुई थी वहां से कुछ दूरी पर मजदूर काम कर रहे थे. लेकिन वह इस दुर्घटना से अनभिग्य थें. इस तरह की घटनाएँ आए दिन देखने को मिलतीं हैं. कोई सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाता है पर वहीँ से दर्जनों मोटर गाड़ियाँ गुजतीं है पर कोई रुक के देखता तक नहीं. इस असंवेदनशीलता के पीछे क्या कारण हैं. क्या पुलिस और व्यवस्था इतनी जटिल हैं की इस तरह कई लोग दुर्घटना के शिकार हो जाते है.और हम उसे अनदेखा कर आगे बढ़ जाते हैं..महानगरों में तो ऐसी दुर्घटनाएं अक्सर हो जाती हैं मगर पुलिस इन्क्वायरी के डर से कोई रपट तक नहीं लिखाता.
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