दीपक मिश्र
अनेकों ऐतिहासिक क्षणों की गवाह रह चुकी रामलीला मैदान में विशाल जन उपस्थिति के बीच दिल्ली के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत से राजनीति के बड़े-बड़े पंडितों को मुँह चिढाने वाले अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली के आठवें मुख्यमंत्री के रूप में नाटकीय अंदाज़ में शपथ लिया। हजारों दिल की धडकनें इस शपथ-ग्रहण समारोह की गवाह बनी । अरविन्द केजरीवाल के साथ पटपडगंज से आम आदमी पार्टी के विधायक मनीष सिसोदिया , सत्येन्द्र जैन, गोपाल राय, जितेन्द्र सिंह तोमर, संदीप कुमार एवं असीम अहमद खान ने भी मंत्री पद का शपथ लिया । मनीष सिसोंदिया को शिक्षा, PWD एवं शहरी विकास मंत्री, जीतेन्द्र तोमर को क़ानून मंत्री, संदीप कुमार को महिला एवं बाल विकास मंत्री, असीम अहमद खान को खाद्य एवं आपूर्ति विभाग का मंत्री बनाये जाने की संभावना है। शपथ ग्रहण के बाद अरविन्द ने दिल्ली वासियों का इतना प्यार देने के लिए आभार व्यक्त किया । केजरीवाल ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि-"हमें अहंकार से चौकन्ना रहना होगा। बीजेपी अहंकार के कारण विधानसभा चुनाव हारी। हम अहंकार के कारण लोकसभा चुनाव हारे। " केजरीवाल ने साम्प्रदायिकता की राजनीति का विरोध करते हुए सम्प्रदाय आधारित राजनीति को देश के विकास का सबसे बड़ा बाधक बताया । उन्होंने व्यापारी वर्ग से समय पर टैक्स भुगतान करने की अपील की एवं उनसे टैक्स चोरी न होने देने का वादा भी किया। सबको साथ लेकर चलने की बात करते हुए उन्होंने किरण बेदी एवं अजय माकन के निजी क्षेत्रों के विशद अनुभव को भी उपयोग में लाने की बात कर अपनी बढ़ रही राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया । इश्वर का शुक्रगुजार होते हुए उन्होंने सामने पड़ी 'अग्निपथ' पर चलने की शक्ति प्रदान करने का भी आग्रह किया। भारतीय क्रिकेट-टीम को पुनः विश्विजेता बनने की शुभकामना भी उन्होंने दिया । उन्होंने अपने अभिभाषण पर पूर्णविराम"इन्सान का इन्सान से हो भाईचारा ,
यही पैगाम हमारा, यही पैगाम हमारा।"
गाने के साथ लगाया जो देश की अखण्डता, संप्रभूता एवं एकता की पैगाम देती है। शपथ ग्रहण के बाद श्री केजरीवाल सचिवालय पहुंचे जहाँ उन्होंने सा सचिवालाय् के अधिकारियों एवं कर्मियों से मुलाक़ात किया।
वस्तुतः आज रामलीला मैदान में बोल रहा केजरीवाल , साल भर पूर्व रामलीला मैदान में चिल्ला रहे केजरीवाल से कई मायनों में अलग जान पड़ता था। उनमें राजनीतिक बोध में आई परिपक्वता एवं सही मायने में जिम्मेदारियों के अहसास का भाव दिख रहा था। नारों एवं पूकारों से भीड़ को आकर्षित करने का पैंतरा गायब हुआ जान पड़ता था एवं एक स्वाभाविक सौम्यता उनके शब्दों से टपक रही थी। दिल्ली की जनता से किये वायदों की फेहरिस्त अकिंचन मानस पटल पर लदी नजर आ रही थी, जो भारतीय राजनीति एवं दिल्लीवासियों के लिए शुभ संकेत है।
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