Sunday, 8 February 2015

स्त्री संघर्ष और आधुनिकता

नीलम रावत
65वां गणतन्त्र दिवस एक मायने में बड़ा रोचक रहा. पहली बार परेड में महिलाओं ने भाग लिया. यह नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. नारी सशक्तिकरण की चर्चा लम्बे समय से भारत तथा अन्य देशो में होती  रही है. जहां एक तरफ गणतन्त्र दिवस की परेड में स्त्री के प्रबल रूप को दिखाकर सशक्तिकरण को मजबूती दी गयी वही दूसरी और आज भी समाज में महिलाये घरेलू-हिंसा,दहेज-हत्या,बलात्कार,छेड़छाड़ का शिकार है। महिलाओ के प्रति अपराधो की संख्या में इजाफा हुआ है। वर्ष 2011 में अपराधो का प्रतिशत जहां 6.5% था वही 2012 में यह प्रतिशत बढ़कर 12.7% हो गया,क्या इसे ही नारी सशक्तिकरण कहा जाए? एक ऐसे देश में सशक्तिकरण को दर्शाया जा रहा है जहाँ  आज भी बेटी को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है, जहां उसके पिता को उसकी शिक्षा से ज्यादा चिंता उसके दहेज की होती है. क्या ऐसे नारी सशक्तिकरण के कोई मायने है जहां नारी ना ही स्वतंत्र है और ना ही सशक्त. सिर्फ भारत में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में महिलाओ के प्रति अपराधो की संख्या बढ़ी है, जहां एक ओर तालिबान ने लड़कियो की शिक्षा पर रोक लगाने की कोशिश की तो दूसरी ओर "मलाला" जैसी बहादुर लड़की ने अपनी जान पर खेल कर इसका पुरजोर विरोध भी किया और वह सफल भी हुई. आज समाज में लड़कियो को वेश्यावृति की ओर जबरन धकेला जा रहा है, उन्हें देह-व्यापार के लिए मजबूर किया जा रहा है. ऐसे देश में नारी सशक्तिकरण की बात करना बेमानी है, एक ऐसे समाज में जहां बलात्कार हो जाने पर राजनेताओ द्वारा ही विवादास्पद ब्यान दिए जाते है, लड़कियो को पहनावे को लेकर टीका-टिप्पणी  की जाती है.
आंकड़ो को देखा जाए तो साल 2011 में बलात्कार के मामले 24,206 थे जो 2012 में बढ़कर 24,923 हो गए,ऐसे ही अपहरण के मामले 35,565 से बढ़कर 38,262 , सेक्ससुयल हरासमेंट 8,570 से बढ़कर 9,173,छेड़छाड़ के मामले 42,968 से बढ़कर 45,351 तक पहुँच चुके है,ये मामले घटने के बजाय बढ़ते ही जा रही है। शिक्षा की बात की जाए तो लड़कियो को आज भी स्कूल नहीं जाने दिया जाता,शिक्षा का अनुपात जहा पुरुषो का 82.14% है वही महिलाये केवल 65.46% शिक्षित है। यदि आज भी समाज की सभी महिलाए शिक्षित नहीं है तो किस प्रकार से नारी को सशक्त कहा जा सकता है. आज भी आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा देह-व्यापार के मामले सामने आते है. आकड़ों के मुताबिक लगभग 300,000 ओरतों व लड़कियो के देह-व्यापार के मामले आंध्र प्रदेश से आए है. यदि हम महिलाओ के स्वास्थ्य की बात करे तो बहुत-सी महिलाओ को बिमरियो का पता चलने से पहले मौत देखनी पड़ती है. UNISEF की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 78,000 महिलाओ की हर साल प्रसव  जटिलता के कारण मौत हो जाती है. यदि हम सशक्तिकरण की बात करते है तो उसके लिए समाज की अंतिम महिला का सशक्त होना आवश्यक है, केवल कुछ महिलाओ के सशक्त होने से देश में नारी सशक्तिकरण का डंका नहीं बजाया जा सकता. इसके लिए हम सभी को पहल करनी होगी तथा दूसरी ओर सरकार को महिलाओ के प्रति सजग होना पड़ेगा तथा उनके प्रति होने वाले अपराधो के लिए कड़े-कानून बनाने होंगे साथ ही साथ शिक्षा के लिए नए आयाम तय करने होंगे तथा 'बेटी बचाओ', 'बचपन बचाओ' आंदोलनो के प्रति जनता को भी जागरूक करना होगा. नारी सशक्तिकरण को सही मायने में समझने के लिए केवल महिलाओ को ही नहीं अपितु पुरुषो को भी आगे आना होगा. स्वामी विवेकानंद ने कहा है"दूर जाओ,और तब तक मत रुको,जब तक तुम्हें अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता" नारी सशक्तिकरण की ओर हमारा रास्ता बहुत दूर है, परंतु एक दिन हम अवश्य उस तक पहुंचेंगे एक दिन ऐसा जरूर आयेगा जब महिलाएं सशक्त होंगी.

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