शक्ति मिश्रा
फोटो रंजय |
मौके पर प्रथम वक्ता के रूप में मुख्य अतिथि ने आचार्य कृपलानी के आजादी के पहले और आजादी के बाद के कई महत्वपूर्ण कार्यों को गिनाया । उन्होंने बताया कि किस तरह से सन् 1883 में कार्ल मार्क्स के निधन के बाद सन् 1885 में कांग्रेस का उदय हुआ और उसके 3 सालों बाद ही सन् 1888 में एक नये कार्ल मार्क्स (जे.बी. कृपलानी) का जन्म हुआ । द्विवेदी जी ने अपने वक्तव्य में पूरी तरह से कृपलानी के संघर्षशील व्यक्तित्व को प्रस्तुत किया।
व्याख्यान के दूसरे पहलू में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने अपने वक्तव्य में कृपलानी के बुद्धिजीवी और सफल नेता होने की बात कही तथा उनके संगठनात्मक कार्यो की सराहना भी की ।
जिस तरह से आचार्य कृपलानी ने भी कहा है "कोई सख्त और चुस्त संगठन बनाने की ताकत अब हममें नहीं हैं। हम खुद अब बूढ़े और सख्त हो गयें हैं। हम बदल नहीं सकते जब तक नया खून नहीं आयेगा, तब तक कोई जानदार चीज बन नहीं सकेगी। इसलिये हम एक ढीला संगठन बना लें । साल-छह महीने में मेले या सम्मेलन हों । रचनात्मक संघों का जो मिलापी संघ बनेगा, वह यह काम करे। यह मिलापी संघ सलाह-मशविरा दे । लेकिन हरेक केन्द्र स्वतंत्र हो । उसके काम में किसी तरह से दखल न दिया जाये । शायद उन्हीं में से कोई 'जीनियस' या विभूति पैदा हो जाये । इस तरह छोटे-छोटे संगठनों में से एक 'सुपर ऑर्गनाइजेशन' पैदा होगा।"
उन्होंने बताया कि कृपलानी की नई क्रान्ति के उद्देश्य ने ही उनको सन् 1934 से सन् 1945 तक लगातार 11वर्ष तक कांग्रेस महासचिव के पद पर रखा गया। कृपलानी एक राजनेता के साथ-साथ कुशल पत्रकार और समाजसेवी भी थे। मौके पर स्थानीय पत्रकार, दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र तथा सामाजिक कार्यो से जुड़े लोंगो ने हिस्सा लिया।
कार्यक्रम के अन्त में गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान के प्रबन्धक सुरेन्द्र शर्मा ने तमाम आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की।
जिस तरह से आचार्य कृपलानी ने भी कहा है "कोई सख्त और चुस्त संगठन बनाने की ताकत अब हममें नहीं हैं। हम खुद अब बूढ़े और सख्त हो गयें हैं। हम बदल नहीं सकते जब तक नया खून नहीं आयेगा, तब तक कोई जानदार चीज बन नहीं सकेगी। इसलिये हम एक ढीला संगठन बना लें । साल-छह महीने में मेले या सम्मेलन हों । रचनात्मक संघों का जो मिलापी संघ बनेगा, वह यह काम करे। यह मिलापी संघ सलाह-मशविरा दे । लेकिन हरेक केन्द्र स्वतंत्र हो । उसके काम में किसी तरह से दखल न दिया जाये । शायद उन्हीं में से कोई 'जीनियस' या विभूति पैदा हो जाये । इस तरह छोटे-छोटे संगठनों में से एक 'सुपर ऑर्गनाइजेशन' पैदा होगा।"
उन्होंने बताया कि कृपलानी की नई क्रान्ति के उद्देश्य ने ही उनको सन् 1934 से सन् 1945 तक लगातार 11वर्ष तक कांग्रेस महासचिव के पद पर रखा गया। कृपलानी एक राजनेता के साथ-साथ कुशल पत्रकार और समाजसेवी भी थे। मौके पर स्थानीय पत्रकार, दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र तथा सामाजिक कार्यो से जुड़े लोंगो ने हिस्सा लिया।
कार्यक्रम के अन्त में गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान के प्रबन्धक सुरेन्द्र शर्मा ने तमाम आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की।
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