Tuesday, 16 June 2015

रीवा मध्यप्रदेश के सीयानगर गाँव की कहानी

पूजा कुमारी
सीजीनेट स्वर, जनपत्रकारिता एवम् जनजागरूकता यात्रा के तहत आज में सियानगर में जाने का मौका मिला,  गांव-पंचायत कोटा, ब्लाक जबा, तहसील जबा और जिला रीवा, इस गांव को  सन 2001 में बसाया गया था पर यहाँ के जमींदारो ने कुछ ही समय में बाद  में गांव को खाली करबा दिया था.  उसके बाद यह गांव दुबारा सन 2010 में बसाया गया. इस गाँव को दुबारा बसाने में  सियादुलारी आदिवासी का संघर्ष है. इस गांव को खाली करबाने का प्रयास वहा के जमींदारो ने बार-बार किया. जमींदारो ने इस गांव को खाली कराने केलिए कैलेक्टेर से मिल कर झूठी शिकायत कि  जिसके बाद  इस गांव को खाली कराने के लिए नोटिस भी भेजा गया. जिस नोटिस का  सियादुलारी आदिवासी  ने जमकर विरोध किया और इस गांव को दुबारा उजड़ने से बचा लिया. इसन  भोले-भले आदिवासियों  लिए सियादुलारी ने मीडिया का सहारा लिया. जमींदारों की इस करतूत कि खबर जब अखबारों में छपी तो  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी इसकी सुध ली और घोषणा किया कि  जहाँ कहीं भी आदिवासी  गांव में आकर बसा है उस गांव से हटाया नहीं जायेगा. अब इस गांव को पट्टा दिलाने के लिए  सरकार से इस मुददे पर बात चल रही है. 
सामाजिक कार्यकर्त्ता जगदीश जी
सियादुलारी आदिवासी  ने बताया कि वह एक आदिवासी  संस्था में काम करतीं  हैं, इन्होंने 10 आदिबासी बंचित बच्चों के लिए स्कूलखोला है. इस सराहनीय काम को देखते हुए उन्हें  एक प्रोजेक्ट मिला है जिसके तहत वे काम करतीं हैं. सियानगर गांव को बसाया में सियादुलारी आदिवासी  का बहुत बड़ा योगदान है. जहाँ पर यह गांव बसा हुआ है वह जमीन बंजर पड़ी हुई थी जिसपर  उन्होंने इन वेसहरा आदिवासी लोगो को बसाने के बारे में सोचा. इस गांव में सिर्फ वही आदिबासी लोग रहते है जिनके पास जमीं नहीं है. जिनका जमींदारो के हाथो शोषण हुआ करता था. इन्हें गाय, भैस, बकरी चराने तक कि छुट नहीं थी.  एसे आदिवासी को इस गांव में लाकर बसाया गया है. यहाँ  सिर्फ एक हैंडपंप है, वो भी चन्दा ले कर बनबाया गया है, कोई सरकारी हैंडपंप इस गांव में नहीं है, जबकि दो हैंडपंप होने चाहिए.  बिजली-पानी कि यहाँ अभी भी समस्या है. सरकारी प्राथमिक  हॉस्पिटल और स्कूल का तो नामोनिशान नहीं है. यहाँ की जनसँख्या 240 है इस गांव में 150 मकान है. स्वयंसेवी बाल संस्था के सहयोग से एक स्कूल चल रहा है जिसमे इस गांव के आदिबासी बच्चे पढ़ने जाते है. इस स्कूल में एक टीचर है जिसकी क्वालिफिकेशन बीएससी है और तीन सहयोगी हैं.  इस गांव के बच्चों को कपडे बनाकर स्वयंसेवी संस्था गूंज  फ्री में बच्चों को कपडे भी बाटती है. इस गांव को अब रासन  भी मिलने लगा है और आने वाले समय में यह गांव सब से ज्यादा प्रगति करेगा ऐसा यहाँ के सरपंच का कहना है.

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