Monday, 29 June 2015

मामा मोदी !

 संतोष कुमार
प्रिय मित्र मोदी जी (मित्र इसलिए क्योंकि आप बार-बार मित्रों कह कर संबोधित कर चुके हैं) आप हमेशा 125 करोड़ देशवासियों की चिन्ता करते रहते हैं. लेकिन आपको सूचित करना चाहता हूँ कि आपको सत्ता पर आसीन हुए 13 महीने से अधिक हो चुकें हैं. अपनी रफ्तार का शायद आपको अंदाजा नहीं है. अब यह संख्या बढ़कर लगभग 128 करोड़ हो चुकी है. इसलिए अगले संबोधन में बांकी के 3 करोड़ को भी शामिल कर लें नहीं तो जनता परिवार नए मेहमानों के स्वागत के लिए तैयार खड़ी रहती है. खैर काम की बात करते हैं. आप दिन-रात भारत वासियों की चिन्ता करते रहते हैं. बात चाहे घर की सफाई की हो या सुबह उठकर योग करने की, आपने पूरा व्यस्त कार्यक्रम बना डाला है. लेकिन सायंकाल वाला समय अभी भी खाली है. आशा है जल्द ही आप कोई संध्या वंदना का कार्यक्रम भी चालू करेंगे. जब आप हमारी इतनी फिक्र करते हैं तो हमारी भी आपके प्रति कुछ जिम्मेदारी बनती है कि नहीं. इसीलिए मैंने सोचा की क्यों न आपको भी एक ‘उपनाम’ दिया जाए. ताकि जब आप राष्ट्रपति पद के दावेदार हो जाएं या राजनीति से सन्यास ले लें, तो आने वाली पीढ़ी आपको भी आपके ‘उपनाम’ से याद करें. लेकिन बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है की कांग्रेस पार्टी ने इस मामले में भी लूट-खसोट मचाई है और जितने भी सुरक्षित उपनाम थे सब आपस में बाँट लिए हैं. नेहरू जी ने ‘चाचा’ खुद अपने लिए बुक करवा लिया. यह उपनाम सबसे प्रचलित और सुरक्षित माना जाता है. किसी भी उम्र, जाति, लिंग, क्षेत्र और धर्म के लोग उन्हें चाचा कहकर बुला सकते हैं. आप समझ सकते हैं कि इस उपनाम के सहारे उन्होंने कितना बड़ा वोट बैंक हथिया लिया था. खैर अब तो यह रहा नहीं तो दूसरे उपनामों को देखते हैं. 
महात्मा गाँधी को ‘बापू’  सभी देशवासी सम्मान से कहते हैं, और आप भी उनका हृदय से सम्मान करते हैं तो यह उपनाम भी जाता रहा. चौधरी देवी लाल जी को लोग ‘ताऊ’ कह कर याद करते हैं. मैं आपसे गुजारिश करूँगा की आप इस नाम के लिए मोह त्याग दें क्यों की आपका सीना 56 इंच का है और कंधे अभी चौड़े हैं. ‘ताऊ’ से तनिक ओल्ड वाली फीलिंग आती है. लेकिन आपके परिधान और आवाज से तो अभी लम्बी आश बंधती है. ‘लौह पुरुष’ की संज्ञा आप ही के कुनबे के सरदार वल्लभभाई पटेल को मिला है, इसलिए यहाँ तकरार का तो सवाल ही पैदा नहीं होता वरना लौह पुरुष वाले सभी लक्षण आपमें भी विद्यमान हैं. अब देखिये ‘नेता जी’ के उपनाम पर पहले से ही दो लोग हैं. एक तो ‘नेताजी’ सुभाष चन्द्र बोस और दूसरे ‘नेताजी’ मुलायम सिंह यादव. वैसे आपने जिस चतुराई से कांग्रेस से गांधीजी और केजरीवाल से झाड़ू छिनने का प्रयत्न किया, इसमें कोई शक नहीं की आप इस उपनाम के लिए भी कोशिश कर सकते हैं. बाल गंगाधर तिलक जी ‘लोकमान्य’ तथा और जय प्रकाश नारायण जी ‘लोकनायक’ के नाम से जाने जाते हैं. ‘लोकनायक’ ने देश को आपातकाल से मुक्त कराया था लेकिन अभी आपके ही कुछ शुभचिंतकों ने आप पर कीचड़ उछाला था कि आप देश में आपातकाल जैसी स्थिति पैदा कर रहे हैं. इसीलिए इस उपनाम को अभी रहने दें इस पर बाद में भी चर्चा की जा सकती है. लाला लाजपत राय को लोग ‘पंजाब केसरी’ कह कर बुलाते हैं. लोग कहते हैं की वो भी अपने ज़माने के दिग्गज और आक्रामक नेता थे. आप अगर चाहें तो ‘गुजरात केसरी’ पर विचार किया जा सकता है. लेकिन अब आप दिल्ली की गद्दी संभालते हैं इसलिए इस तरह एक खास राज्य से अपने को जोड़ लेना तार्किक नहीं जान पड़ता है. आपको तो इसका खासा अनुभव भी है कि कैसे आपने सरदार पटेल को गुजरात से जोड़कर एक एक्का अपने हाथ से गँवा दिया. एक गैर राजनीतिक उपनाम भी है लेकिन यह सबको को नसीब नहीं होता. किस्मत वाले ही ‘शहीद-ए-आजम’ कहलाते हैं.
अलबत्ता निराश होने की जरूरत नहीं है मैंने आपके लिए एक ‘उपनाम’ सोचा है. आपने गौर किया होगा की ‘मामा’ एक ऐसा रिश्ता होता है जिसके साथ परिवार में सभी सहज महसूस करते हैं. औरतें उन्हें अपना भाई मानती है, बच्चों के साथ उनका एक खास अपनापन होता है, तथा बड़े लोगों के साथ भी वो खुल कर बात करते हैं. तो मैं आपसे इल्तजा करता हूँ की आप यह उपनाम स्वीकार करें. इससे आपके अपने राजनीतिक फायदे भी होंगे. पहला तो ये की इस संबोधन का प्रयोग हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों में किया जाता है. दूसरा यह की महिला वोट आपके लिए सुरक्षित हो जायेगा. युवाओं में आपके प्रति एक खास आकर्षण बरक़रार रहेगा और बुजुर्गों से आप हक से वोट माँग सकेंगे. इससे आजीवन तो आपकी राजनीति चमकती ही रहेगी, मरणोपरांत भी आप हमेशा याद किए जायेंगे.
आपका शुभचिंतक भांजा !
संतोष कुमार
दिल्ली विश्वविद्यालय

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