संतोष कुमार
हमें दुःख है कि हमारी पीढ़ी ने महात्मा गाँधी को नहीं देखा, लेकिन हम आने वाली पीढ़ियों को गर्व से कहेंगे कि हमने डॉ. कलाम को देखा है। डॉ. अब्दुल कलाम आजाद एक राष्ट्रपति, वैज्ञानिक या प्रोफेसर ही नहीं थे, वो इन सब से कहीं अधिक थे। वे उन लाखों युवाओं के लिए एक प्रेरणा थे जिनके छत आसमान के होते हैं और सपने सिकंदर के। डॉ. कलाम ने हमेशा देश का भला सोचा तथा अपने कर्म और विचारों से एक ‘विकसित भारत’ बनाने की चेतना जाग्रत की। उन्होंने अपने संबोधन में हमेशा युवाओं का आह्वान किया। उनका मानना था कि “प्रज्वलित युवा मस्तिष्क प्रबल संसाधन होते हैं। धरती के ऊपर, आकाश में तथा जल के नीचे छीपे किसी भी संसाधन से यह संसाधन कहीं अधिक शक्तिशाली है।“
15 अक्टूबर,1931 को जन्मे डॉ. कलाम ने आधुनिक भारत के सबसे महत्वपूर्ण कालक्रम 1947 के दोनों ओर के मंजर को करीब से देखा था। गुलामी की बेड़ियों से बाहर निकले हिंदुस्तान के सामने सुरक्षा, भूख, गरीबी, अशिक्षा, बढ़ती जनसंख्या जैसे तमाम मुद्दे सुरसा के समान मुंह बाए खड़ी थी। कलाम का उदय उस दौर में हुआ जब भारत को सामरिक हितों की रक्षा के लिए आंतरिक शक्तियों तथा नई वास्तविकताओं का समायोजन करना था। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आए यहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। अग्नि और पृथ्वी मिसाइल तथा 1998 में पोखरण में दूसरा सफल परमाणु परीक्षण का श्रेय डॉ. कलाम को ही जाता है।
कई तथाकथित शांति के दूतों का मानना है कि डॉ. कलाम ने बम बना कर शांति के लिए खतरा पैदा किया। उन्हें यह जानना चाहिए कि दुनिया के सभी आदर्श हमेशा शांतिप्रिय ही रहे हैं लेकिन इतिहास फिर भी युद्ध से भरा हुआ है। जिस देश ने दो सौ साल की गुलामी झेली हो, जिस देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं हो, जिसने विश्व का इतिहास देखा, सुना या पढ़ा हो और जहां के लोग जागरूक हों उस देश का हर नागरिक चाहेगा कि उसके यहाँ एक नहीं, एक हजार ऐसे और कलाम पैदा हों।
कलाम साहब ने अपनी किताब ‘भारत 2020’ में लिखा है कि यह सोचकर निराश होने की जरूरत नहीं है कि कोई व्यक्ति अकेला क्या कर सकता है। समंदर छोटी-छोटी बूँदों से मिलकर ही बनती है। उन्होंने देश के सभी वर्ग के लोगों से अपील की कि हर स्तर पर कार्य करने वाले भारतीय के मन में मंत्र की भांति यह सूत्र गूंजते रहना चाहिए कि मुझे सदा भारत को विकसित देश बनाने के लिए कुछ न कुछ योगदान देते रहना है। उन्होंने देश की मीडिया से सकारात्मक रूख अपनाने की गुजारिश की। उन्होंने कहा था कि “हर रोज पोखरण, या क्रिकेट मैच में भारत की जीत जैसी खबरें मीडिया को नहीं मिलती लेकिन मीडिया हर रोज एक सकारात्मक खबर छापकर या प्रसारित कर एक नए वातावरण और नजरिये को जन्म देने में योगदान कर सकता है।“ कलाम साहब ने शिक्षकों को अधिक सक्षम और अद्यतन होने का संदेश दिया। शिक्षकों को लिए उनका संदेश था कि बच्चों पर अपनी कुंठाओं का बोझ न लादें और उनके नए और निर्मल मन को प्रसन्न रहने दें।
1997 में डॉ. कलाम को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 18 जुलाई, 2002 को डॉ. कलाम ने भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में पदभार सँभाला। राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल को सर्वाधिक लोकप्रियता हासिल हुई। बतौर राष्ट्रपति कलाम ने छात्रों से संवाद के हर मौके का इस्तेमाल किया। खासतौर से स्कूली बच्चों को उन्होंने बड़े सपने देखने को कहा ताकी वे जिंदगी में कुछ बड़ा हासिल कर सकें। राष्ट्रपति डॉ. कलाम सही मायनों में जनता के हिरो थे। बात चाहे उनके हेयर स्टाइल की हो या उनके कामों की, उनके हर पहलू ने लोगों को आकर्षित किया।
संपूर्ण राष्ट्र इस महान सपूत के निधन पर शोकाकुल है । भारत अपने इस सपूत की क्षतिपूर्ति कभी नहीं कर पायेगा। डॉ. कलाम पूरी पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक थे। इतिहास में कम ही ऐसे महापुरुष होते है जिन्हें लोग विभिन्न लिंग, आयु, जाति, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्र, और वर्ग की सीमाओं से परे उठकर प्यार और सम्मान देते हैं। डॉ. कलाम उन महापुरुषों में से एक थे। अब कलाम केवल एक नाम नहीं होगा, कलाम एक पैमाना होगा कामयाबी का, कलाम एक पैमाना होगा आत्म-अनुशासन का और कलाम एक पैमाना होगा संकल्प का।
15 अक्टूबर,1931 को जन्मे डॉ. कलाम ने आधुनिक भारत के सबसे महत्वपूर्ण कालक्रम 1947 के दोनों ओर के मंजर को करीब से देखा था। गुलामी की बेड़ियों से बाहर निकले हिंदुस्तान के सामने सुरक्षा, भूख, गरीबी, अशिक्षा, बढ़ती जनसंख्या जैसे तमाम मुद्दे सुरसा के समान मुंह बाए खड़ी थी। कलाम का उदय उस दौर में हुआ जब भारत को सामरिक हितों की रक्षा के लिए आंतरिक शक्तियों तथा नई वास्तविकताओं का समायोजन करना था। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आए यहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। अग्नि और पृथ्वी मिसाइल तथा 1998 में पोखरण में दूसरा सफल परमाणु परीक्षण का श्रेय डॉ. कलाम को ही जाता है।
कई तथाकथित शांति के दूतों का मानना है कि डॉ. कलाम ने बम बना कर शांति के लिए खतरा पैदा किया। उन्हें यह जानना चाहिए कि दुनिया के सभी आदर्श हमेशा शांतिप्रिय ही रहे हैं लेकिन इतिहास फिर भी युद्ध से भरा हुआ है। जिस देश ने दो सौ साल की गुलामी झेली हो, जिस देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं हो, जिसने विश्व का इतिहास देखा, सुना या पढ़ा हो और जहां के लोग जागरूक हों उस देश का हर नागरिक चाहेगा कि उसके यहाँ एक नहीं, एक हजार ऐसे और कलाम पैदा हों।
कलाम साहब ने अपनी किताब ‘भारत 2020’ में लिखा है कि यह सोचकर निराश होने की जरूरत नहीं है कि कोई व्यक्ति अकेला क्या कर सकता है। समंदर छोटी-छोटी बूँदों से मिलकर ही बनती है। उन्होंने देश के सभी वर्ग के लोगों से अपील की कि हर स्तर पर कार्य करने वाले भारतीय के मन में मंत्र की भांति यह सूत्र गूंजते रहना चाहिए कि मुझे सदा भारत को विकसित देश बनाने के लिए कुछ न कुछ योगदान देते रहना है। उन्होंने देश की मीडिया से सकारात्मक रूख अपनाने की गुजारिश की। उन्होंने कहा था कि “हर रोज पोखरण, या क्रिकेट मैच में भारत की जीत जैसी खबरें मीडिया को नहीं मिलती लेकिन मीडिया हर रोज एक सकारात्मक खबर छापकर या प्रसारित कर एक नए वातावरण और नजरिये को जन्म देने में योगदान कर सकता है।“ कलाम साहब ने शिक्षकों को अधिक सक्षम और अद्यतन होने का संदेश दिया। शिक्षकों को लिए उनका संदेश था कि बच्चों पर अपनी कुंठाओं का बोझ न लादें और उनके नए और निर्मल मन को प्रसन्न रहने दें।
1997 में डॉ. कलाम को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 18 जुलाई, 2002 को डॉ. कलाम ने भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में पदभार सँभाला। राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल को सर्वाधिक लोकप्रियता हासिल हुई। बतौर राष्ट्रपति कलाम ने छात्रों से संवाद के हर मौके का इस्तेमाल किया। खासतौर से स्कूली बच्चों को उन्होंने बड़े सपने देखने को कहा ताकी वे जिंदगी में कुछ बड़ा हासिल कर सकें। राष्ट्रपति डॉ. कलाम सही मायनों में जनता के हिरो थे। बात चाहे उनके हेयर स्टाइल की हो या उनके कामों की, उनके हर पहलू ने लोगों को आकर्षित किया।
संपूर्ण राष्ट्र इस महान सपूत के निधन पर शोकाकुल है । भारत अपने इस सपूत की क्षतिपूर्ति कभी नहीं कर पायेगा। डॉ. कलाम पूरी पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक थे। इतिहास में कम ही ऐसे महापुरुष होते है जिन्हें लोग विभिन्न लिंग, आयु, जाति, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्र, और वर्ग की सीमाओं से परे उठकर प्यार और सम्मान देते हैं। डॉ. कलाम उन महापुरुषों में से एक थे। अब कलाम केवल एक नाम नहीं होगा, कलाम एक पैमाना होगा कामयाबी का, कलाम एक पैमाना होगा आत्म-अनुशासन का और कलाम एक पैमाना होगा संकल्प का।
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