Friday, 5 June 2015

पत्रकारिता की पढ़ाई और व्यवहारिक चुनौतियां

शक्ति मिश्रा
पत्रकारिता के सामने चुनौतियां पहले भी थी और आज भी है मगर अब उनका स्वरूप बदल गया है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जहां वह मिशन थी उसमें सरोकार जुडे़ थे वहीं आज वह पूरी तरह व्यावसायिक हो गई है। यह सब बाजारवाद और उदारीकरण के कारण ही संभव हो पाया है। पहले पत्रकार बनने के लिए किसी भी प्रकार की ट्रेनिंग अनिवार्य नहीं होती थी मगर आज प्रशिक्षण एक अनिवार्य शर्त बन गई है। पत्रकारिता के कई संस्थान देशभर में चल रहे हैं वहां पर छात्रों को पत्रकारिता के मूल्यों की जानकारी दी जाती है मगर जब यह छात्र किसी मीडिया संस्थान में काम करने जाते है तो वह स्वयं को ठगा हुआ महसूस करते हैं चूंकि अब मीडिया संस्थानों  के काम करने की शैली पूरी तरह बदल चुकी है वह मार्केट आधारित हो गई है। उसमें न तो मिशन बचा है और ना ही सरोकार। यह स्थिति छात्रों के सामने एक भ्रम उत्पन्न करती है। इन तमाम मुद्दों पर चर्चा हेतु जन मिडिया के बैनर तले एक सेमिनार का आयोजन गांधी शांतिप्रतिष्ठान में किया गया जिसका विषय था 'पत्रकारिता की पढाई और व्यवहारिक चुनौतियां'
 कार्यक्रम के दौरान जनमीडिया अखबार का सामूहिक लोकार्पण भी किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार प्रशान्त टण्डन रहे । उन्होंने पत्रकारिता में मौजूद प्रतिस्पर्धा और चुनौतियों से लड़ने की प्रेणना दी, उन्होंने  कहा कि छात्रों को खुद अपने मस्तिष्क से नये.नये विचारों को जन्म देने की जरूरत है. विषय और भाषा शैली का विशेष ध्यान देने की जरूरत है । सिएमएस के प्रभाकर ने  छात्रों के सामने मोजूद संकट के लिए मीडिया शिक्षण संस्थानों को दोष दकरार दिया । उन्होंने छात्रों की भाषा शैली पर सवाल उठाते हुये कहा कि सबसे पहले लिखना प्रारम्भ करें और अपनी भाषा शैली को मजबूत करें. इस विषय में शिक्षण संस्थानों में बैठे पत्रकारिता के प्राध्यापकों गम्भीरता से सोचना चाहिये कि छात्रों की लेखन भाषा शैली किस तरह से मजबूत बने  । उन्होंने बताया आज लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया से लोंगो का भरोसा उठना समाज और भविष्य के लिये अच्छे संकेत नहीं हैं । भूमण्डलीकरण के दौर में पेड न्यूज, पीत पत्रकारिता ने समाज को दिग्भ्रमित करने का काम किया है आज शायद पत्रकारिता के छात्रों का भविष्य अॅधेरे में इसीलिये है क्योंकि कहीं न कहीं छात्र भी पत्रकारिता में सामाजिक कार्य करने की बात नहीं करते । इसमें गलती मीडिया संस्थान की भी है . इस पर मीडिया संस्थान अपने पूँजीवादी हितों को साधने में लगे हुए है और शिक्षण संस्थान के प्राध्यापक छात्रों को ठीक प्रकार से तैयार नहीं कर पा रहें हैं । आज जहाँ शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम बदलने की जरूरत है तो वही मीडिया संस्थानों को बाजारवाद के चंगुल से छुड़ाने की ।आज कन्टेन्ट की जरूरत है । आज नये.नये विषयों पर संपादकीय की जरुरत है । जरूरत है बाजार और संपादकीय के बीच लक्ष्मण रेखा खीचनें की ।
 कार्यक्रम के अंत में वरिष्ठ  पत्रकार अनिल चमड़िया ने जनमीडिया के अखबार को पाक्षिक करने की घोषणा की और कहा कि यह अखबार दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों की प्रेरणा से निकलना संभव हो पाया ।

No comments:

Post a Comment