संतोष कुमार
भारतीय बल्लेबाज सुरेश रैना ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में दस साल पूरे कर लिए हैं। रैना ने 30 जुलाई, 2005 को श्रीलंका के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया था। रैना का कहना है कि अपने अब तक के क्रिकेट करियर से वो संतुष्ट हैं और आगे भी वो टीम के जीत के लिए सतत प्रयासरत रहेंगे। लेकिन हाल में ही हिंदुस्तान टाइम्स को दिये एक इंटरव्यू में उन्होंने बी.सी.सी.आई. के चयनकर्ताओं पर आरोप लगाया कि टेस्ट क्रिकेट में उन्हें खुद को साबित करने का मौका नहीं दिया गया। रैना का इस तरह खुलकर अपने विचार प्रकट करना सराहनीय है। कोई भी खिलाड़ी यह नहीं चाहता कि उसे किसी खास फौर्मेट के लिए ही उपयुक्त मान लिया जाए। आपको याद होगा कि क्रिकेट के दिग्गज खिलाड़ी राहुल द्रविद, वी.वी.एस. लक्ष्मण और अनिल कुंबले भी कभी इस दौर से गुजरे थे, उन पर टेस्ट क्रिकेट के लिए ही उपयुक्त होने का ठप्पा लगा दिया गया था। लेकिन कभी भी इन खिलाड़ियों ने इस तरह खुल कर पक्षपात का आरोप नहीं लगाया। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध के स्वर का सम्मान करते हुए उस पर पुनर्विचार का विकल्प हमेशा खुला रखना चाहिए। लेकिन एक बड़ा सवाल तो यह है कि क्या बी.सी.सी.आई. अपने आप को एक लोकतांत्रिक इकाई मानती भी है। रैना के इस बयान से दो-तीन प्रश्न उभर कर सामने आते हैं। पहला कि रैना का यह आरोप कि, उन्हें टेस्ट क्रिकेट में खुद को साबित करने का मौका नहीं मिला, कितना जायज है। दूसरा कि रैना को अगर लगता था कि उन्हें उन्हें पर्याप्त मौका नहीं दिया गया तो उन्होंने पहले कभी इसका विरोध क्यों नहीं किया। तीसरा कि अब जबकि धोनी टेस्ट क्रिकेट से सन्यास ले चुके है और विराट कोहली ने कमान सँभाला है तो रैना ने इसे टेस्ट क्रिकेट में वापसी का उचित वक्त क्यों समझा।
आपको य़ाद होगा कि गांगुली, लक्ष्मण, सचिन और द्राविद के सन्यास के बाद टीम में पर्याप्त जगह थी और उनके स्थान पर रैना फिट हो सकते थे। सच तो यह है कि एक के बाद एक उन्हें 18 मौके दिए भी गये जिसमें 26.48 कि औसत से, 1 शतक और 7 अर्धशतक की मदद से, उन्होंने कुल 768 रन बनाये। टेस्ट मैच कि पिछली दस पारियों में उन्होंने क्रमशः 1, 4, 10 ,0 ,0, 3, 55, 0, 0, 0 रन बनाए हैं। रैना का यह आरोप कितना जायज है इसका अंदाजा उनके प्रदर्शन के आधार पर ही लगाया जा सकता है। ये आंकड़े तो यही बताते हैं कि सुरेश रैना टेस्ट मैचों में अब तक बेहद साधारण दर्जे के खिलाड़ी साबित हुए हैं। अहम सवाल यह है कि किसी खिलाड़ी को खुद को साबित करने के लिए कितने मौके मिलने चाहिए। ऐसे खिलाड़ियों कि एक लंबी सूची है जिन्हें टेस्ट या वनडे क्रिकेट में खुद को साबित करने के लिए 18 मौके भी नहीं मिले। क्या किसी खिलाड़ी को तब तक मौके दिये जाएं जब तक कि वह खुद को पूरी तरह स्थापित न कर ले या किसी खिलाड़ी को मौका दिए जाने का आधार क्या होना चाहिए, ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो हमेशा अनुत्तरित रह जाते हैं। तो उनका यह कहना कि उन्हें मौका नहीं दिया गया उन्हें अतार्किक, असंगत और उनके बड़बोलेपन को ही साबित करता है।
रैना और धोनी की दोस्ती या यूँ कहें कि आपसी तालमेल किसी से छिपा नहीं है। बात चाहे मैदान कि हो या मैदान के बाहर कि दोनों ने कई मौकों पर खुल कर एक दूसरे का साथ दिया है। पिछले पाँच सालों में जबकि धोनी टेस्ट कप्तान थे रैना ने कभी अपना विरोध नहीं जताया। सनद रहे कि अब रैना ने धोनी के दोस्त, रिति स्पोर्ट्स के मालिक, अरुण पांडे से सारे रिश्ते तोड़ लिया है और दूसरी कंपनी आईओएस स्पोर्ट्स के साथ 35 करोड़ का करार किया है। रिति स्पोर्ट्स में धोनी के होने को कारण उन्हें ज्यादा एक्सपोजर नहीं मिल पा रहा था। यह फैसला करते हुए उन्होंने कहा कि वो इस कंपनी के नंबर दो खिलाड़ी नहीं बनना चाहते। यह मामला अब एक नए विवाद को जन्म दे रहा है कि क्या रैना और धोनी के बीच सब कुछ पहले जैसा ठीक नहीं है। क्या रैना अब तक धोनी से अपनी नजदीकियों के कारण चुप थे। क्या रैना अब अपने क्रिकेटिंग करियर को अधिक सुरक्षित करना चाहते हैं। हाल में ही जस्टिस आर.एम.लोढा कमिटि के फैसले के बाद चेन्नई सुपरकिंग्स को दो साल के लिए बरखास्त कर दिया गया है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि रैना और धोनी क्या अब कभी आई.पी.एल. में एक ही टीम के लिए खेल पायेंगे।
बांग्लादेश दौरे को छोड़ कर पिछले दो वर्षों में भारत का टेस्ट मैचों में प्रदर्शन लचर ही रहा है। भारतीय टीम पिछले चार टेस्ट सिरीज में केवल एक मैच जीत कर साउथ अफ्रिका, न्यूजीलैंड, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के हाथों सिरीज हार कर आ गई। इस दौरान कुछ पुराने खिलाड़ियों का क्रम बदला गया तो कई नए खिलाड़ियों को भी आजमाया गया। सुरेश रैना को अगस्त 2012 के बाद केवल एक टेस्ट खेलने का मौका मिला जिसकी दोनों पारियों में वो शून्य पर आउट हुए। रैना का कहना है कि आप किसी खिलाड़ी को एक मैच आधार पर नहीं परख सकते। उन्हें शायद लगता हो कि तकनीकी तौर पर अब वो पहले से अधिक परिपक्व हो चुके हैं इसलिए उन्हें अभी और मौके मिलने चाहिए। पर अहम सवाल तो यह है कि क्या चयनकर्ताओं को भी ऐसा लगता है।
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