आएशा खान
बिहार के गया जिले के निवासी दशरथ माँझी एक ऐसे साधारण व्यक्ति थे जिनके पास अपनी पत्नी का इलाज कराने के ना ही उचित साधन थे, ना ही सुविधाएं।
था तो दृढ़निश्चय, प्रेम और कुछ कर गुज़रने का जज़्बा. इसी जज़्बे ने उस साधारण व्यक्ति को असाधारण बना दिया.
अपनों को खोने के बाद आमतौर पर लोग ग़म में डूब जाते हैं, हताश-निराश होकर बैठ जाते हैं मगर माँझी न रुके-न थमे, बस निश्छल मन से पर्वतों-सा अडिग हौसला लिए पहाड़ तोड़ने चल पड़े..पहाड़ से पैर फिसलकर गिरने से हुई उनकी पत्नी की मौत ने उन्हें आतंरिक रूप से झकझोर कर रख दिया..
ज़िद थी कि अब इस पहाड़ की वजह से किसी और को यह दिन ना देखने दूंगा.
हथौड़ा और छेनी से पहाड़ तोड़ते हुए देख लोगों ने इन्हें कई उपाधि दी, पागल-सनकी तो मानो इनके नाम से ही बन गए थे.. 22 वर्षों के संघर्ष के बाद उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती..
हम कहते हैं कि अकेला चना क्या भाड़ फोड़ेगा?
और यह रहा हमारा पहाड़ों से ऊँचा आदमी जिसने सबको सिखा दिया कि कर्मठ को सब कुछ प्राप्त है। अपने नामानुसार उन्होंने मुसीबत-रूपी लहरों का डट कर सामना किया और एक कुशल माँझी की तरह अपना किनारा स्वयं ढूंढ लिया।
दुनिया ताजमहल को विश्व का सबसे बड़ा प्रेमचिह्न मानती है, परन्तु मुझे यह पहाड़ को चीर कर बनाया गया रास्ता प्रेम का सर्वश्रेष्ठ चिह्न लगता है..
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