कृष्णा द्विवेदी
एक बार तमिलनाडू के मुख्यमंत्री कामराज ने गाँव में कुछ बच्चों को अपनी
गाय-भैंसों के साथ देखा. उन्होंने बच्चों से पूछा- आप स्कूल क्यों नहीं
जाते हो? एक बच्चा बोला- स्कूल जाने से क्या हमें खाना मिलेगा?
गाय-भैंसों की देखभाल से तो हमें खाना मिलता है. इस घटना के बाद ही
तमिलनाडु में मुख्यमंत्री के कामराज ने 1960 में मिड डे मील की शुरुआत की.
बाद में 28 नवम्बर 2001 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस योजना को पूरे
देश में लागू कर दिया गया. इस योजना को शुरू करने के निम्नलिखित उद्देश्य
थे
*पौष्टिक भोजन द्वारा गरीब बच्चों की भूख और कुपोषण से रक्षा करना.
*विद्यालयों में छात्रों की संख्या में वृद्धि करना.
*छात्रों को नियमित रूप से स्कूल आने के लिए प्रेरित करना.
*महिलाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करवाना आदि.
*बच्चों में भाईचारे की भावना विकसित करना.
*पौष्टिक भोजन द्वारा गरीब बच्चों की भूख और कुपोषण से रक्षा करना.
*विद्यालयों में छात्रों की संख्या में वृद्धि करना.
*छात्रों को नियमित रूप से स्कूल आने के लिए प्रेरित करना.
*महिलाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करवाना आदि.
*बच्चों में भाईचारे की भावना विकसित करना.
*जाति और धर्म के भेदभाव को दूर करना.
मिड डे मील योजना को शुरू करने के
पीछे उसके उद्देश्य अच्छे थे. प्रारंभ में इसमें सफलता भी मिली पर बाकी योजनाओं की
तरह ही यह योजना भी भ्रष्टाचार और लापरवाही की भेंट चढ़ गयी. हर रोज अखबार
में ऐसी ख़बरें पढ़ने को मिलती रहती है जिससे कभी-कभी ये लगता है कि ये
योजना कुछ समस्याओं के निराकरण के लिए शुरू की गयी थी या फिर समाज की
मुश्किलें बढ़ाने के लिए? कहीं पर अनाज शिक्षकों के घर पहुँच रहा है. कहीं
पर पैसे खाने के चक्कर में ख़राब गुणवत्ता का अनाज पहुँचाया जा रहा है.
कहीं खाने में छिपकली पड़ी हुई मिलती है तोकहीं खाने में जहर या कीड़े
मिलते हैं. आये दिन बच्चें बीमार पड़ रहें है. कई बच्चें मृत्यु का ग्रास बन
रहे हैं. लालच और स्वार्थ के चलते मासूम बच्चों की जिन्दगी को दांव पर
लगाया जा रहा है. हाल ही में बिहार के छपरा जिले के एक सरकारी प्राथमिक
विद्यालय में विषाक्त मिड डे मील खाने से 23 बच्चों की मृत्यु हो गयी और 48
बच्चें बीमार पड़ गए. कोई इस घटना की वजह खाना पकाने में हुई लापरवाही को
बता रहा है तो कोई इसे राजनैतिक साजिश बता रहा है. मासूमों की मौत पर भी
राजनीति की जा रही है. अगर सख्ती से सही रूप में ऐसी योजनाओं का संचालन नहीं
किया जा सकता है तो मासूमों की जिन्दगी और स्वास्थ्य की कीमत पर चल रही
ऐसी योजनाओं का क्या फायदा? बेहतर है इन्हें बंद किया जाए. कई सारे
विकल्प है जो बच्चों को पढ़ाई जारी रखने के लिए लालायित कर सकते हैं.
जैसे-
*पकाए गए भोजन की जगह फल, बिस्कुट के पैकेट या ऐसी ही अन्य वैकल्पिक चीजें वितरित की जा सकती है.
*किताबें, वस्त्र, स्टेशनरी का दूसरा सामान दिया जा सकता है.
*नियमित रूप से स्कूल आने वाले छात्रों को छात्रवृति दी जा सकती है. *अन्य पारितोषिक जैसे स्कूल आने के लिए साइकिल की व्यवस्था आदि की जा सकती है. इसके अलावा बहुत जरुरी है बच्चों के स्वास्थ्य के साथ लापरवाही बरतने वालों कोकड़ी से कड़ी सजा दी जाए. सरकार द्वारा परिजनों को दिया गया मुआवजा घर के बच्चें की कमी को पूरा नहीं कर सकता. इसलिए जरुरी है सख्ती से योजना का पालन किया जाए या फिर अन्य वैकल्पिक उपाय अपनाये जाए. बच्चे देश का भविष्य है. उनके स्वास्थ्य के साथ की गयी लापरवाही कतई बर्दाश्त नहीं की जा सकती है.
*पकाए गए भोजन की जगह फल, बिस्कुट के पैकेट या ऐसी ही अन्य वैकल्पिक चीजें वितरित की जा सकती है.
*किताबें, वस्त्र, स्टेशनरी का दूसरा सामान दिया जा सकता है.
*नियमित रूप से स्कूल आने वाले छात्रों को छात्रवृति दी जा सकती है. *अन्य पारितोषिक जैसे स्कूल आने के लिए साइकिल की व्यवस्था आदि की जा सकती है. इसके अलावा बहुत जरुरी है बच्चों के स्वास्थ्य के साथ लापरवाही बरतने वालों कोकड़ी से कड़ी सजा दी जाए. सरकार द्वारा परिजनों को दिया गया मुआवजा घर के बच्चें की कमी को पूरा नहीं कर सकता. इसलिए जरुरी है सख्ती से योजना का पालन किया जाए या फिर अन्य वैकल्पिक उपाय अपनाये जाए. बच्चे देश का भविष्य है. उनके स्वास्थ्य के साथ की गयी लापरवाही कतई बर्दाश्त नहीं की जा सकती है.
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