Monday, 21 September 2015

सोशल साइट्स की चपेट में युवा पीढ़ी

विनीता सामंत 
'युवा' शब्द सुनकर प्रथम रूप से हमारे मन मे जुनून और जोश-सा भर जाता है। वैसे युवा का अर्थ होता है, वह पीढ़ी जो समय के साथ चले, अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाये, निडर होकर देश को चलाने में भागीदारी करे। आज भी 'भगत सिंह' , 'राजगुरु' जैसे युवा याद आते है उनका वह जोश, देश के प्रति निष्ठा भाव, ऐसा गर्म खून जिसने अंग्रेजो को भीतर से थर्रा दिया था। अब समय बदल चुका है हम आधुनिकता में आ गए है तो आधुनिक समय की युवा पीढ़ी भी अलग ही होगी। आधुनिक युवा पीढ़ी इतनी व्यस्त हो गयी है कि देश की समस्याओं पर विचार करने का भी उनके पास समय ही नहीं है।
ये युवा देश के बारे में न सोचकर अपनी निजी ज़िन्दगी में उलझ कर रह गए हैं। वे लोग अब फ़ेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ही ज्यादा समय बिता रहे हैं। अगर देश में कुछ बड़ा हो रहा है तो फ़ेसबुक मे पेज लाइक करके वे सोचते हैं कि उन्होंने उन्होंने देश के लिए भागीदारी की है। मानते हैं कि 16 दिसम्बर को जो हुआ उससे हमें लगता है कि अभी भी कुछ इंसानियत बाकी है। "निर्भया कांड" में आधा देश और ज्यादातर हमारे युवाओं के विरोध की वजह से ही गुनाहगारों को कड़ी से कड़ी सजा हुई। अगर एक चिंगारी आग बन सकती है तो क्यों हमारे युवा स्थिर हैं? क्यों सिर्फ यही एक मसला था क्या? एक लड़की के साथ ऐसा घिनौना काम हुआ उसे इंसाफ मिल ही गया पर क्या एक लड़की को न्याय दिला कर सब ठीक हो गया और सही बात भी है लेकिन अब हर लड़की को न्याय दिलाना मुश्किल है लेकिन इस बलात्कार जैसी घटना को ही खत्म करने का दृढ़ निश्चय लिया जाये तो निर्भया जैसे हादसे ही नही होंगे।
युवा घर बैठे सोच रहे हैं की सरकार का काम है वही करेगी। सिर्फ यही मुद्दा नहीं है देश के कई मसले हैं जिन पर सभी युवा मिलकर काम करें तो परिणाम अच्छा मिल सकता है और वो मुद्दे तभी नजर आयेंगे जब तक उसके लिए कड़ा विरोध नही किया जायेगा। क्या भारतीय युवाओं से उम्मीद रखनी चाहिए ?? ये तो वही युवा है जो ट्रैफिक रूल्स का पालन नही कर रहे और तेज़ रफ़्तार मे गाड़ियाँ चला रहे हैं। हमारे भविष्य में देश को संभालने वाले आज होटलों, पबों, बारों, डिस्क में ही ज्यादातर समय गुज़ार रहे है। अगर यही हाल रहा तो देश के इन युवाओं पर जो गर्व था वो चूर -चूर हो जायेगा । भारतीय युवाओं में पाश्चात्य सभ्यता अपनाने का बड़ा पागलपन सवार है। उनके जैसा रहन-सहन, तौर-तरीके अपनाने में लगे हैं। अगर मान भी लिया जाये कि देश विकास कर रहा है लेकिन अपनी सभ्यता और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियां भूल जाना ये कहाँ का न्याय है? जो राजनेता आज की पीढ़ी के युवाओं से डरते है कहीं उनका कोई गलत काम युवाओं को जगा न दे लेकिन अब उन्हें कोई डर नहीं है तो वे नेता भ्रष्टाचार जैसे गलत काम खुलेआम करने लगे हैं। भारतीय युवाओं की सोच हो गयी है कि चार दिन की जिंदगी है तो उसे मौज में उड़ाओ क्या पता कल आये न आये। वे सोचते हैं क्या अपनी पूरी जिंदगी देश को सम्भालते फ़िरे और वैसे भी हमारे देश को बदलने से कुछ ठीक नही होने वाला। एक बात गौर से सोचें तो किसी एक के कदम बढ़ाने से दस युवा आपके साथ खड़े होंगे ही धीरे -धीरे दस से बीस और ऐसे ही एक आंदोलन होगा जिससे हमारी आवाज़ सरकार तक पहुँचेगी और सरकार को कठोर कानून बनाने होंगे, ऐसे बदलेगा समाज। रही बात चार दिन की जिंदगी की तो यही सोच अगर महात्मा गांधी, चन्द्रशेखर आजाद ने सोची होती तो हो गया था हमारा देश आजाद! आज इतिहास चीख-चीख कर इनकी दास्तां कहता है,हर कोई इनका नाम गर्व से लेता है।
आज तो युवा 15 अगस्त और 26 जनवरी आने पर सिर्फ वाट्सएप्प पर मैसेज और फेसबुक पर प्रोफ़ाइल डाल कर सोच लेते है बस मन गया स्वतंत्र ता दिवस और गणतंत्र दिवस। वहीं वैलेंटाइन डे की तैयारी कुछ दिन पहले से हो जाती है जबकि ये यह सबको पता है की यह पश्चिमी सभ्यता की देन है फिर भी उसके पीछे पागल होते है ।आपको नही लगता की यह सब पश्चिमी सभ्यता गलत रास्ते अख्तियार करने पर मजबूर कर रही है। इस सभ्यता ने हमारे युवाओ को अंधा बना दिया है । मेरा मानना है अगर हाथ बड़े तो किसी की मदद के लिए, जिंदगी बहुत कीमती है इसको किसी अच्छे काम में लगाना चाहिए मदद उनकी करो जो बेबस , लाचार और शोषण का शिकार हैं ऐसी जिंदगी के कोई मायने नही और ऐसी जिंदगी का कोई मूल्य नहीं। तो कदम बढ़ाओ हमारे युवाओं और अन्याय, शोषण, बलात्कार जैसी बीमारी को जड़ से मिटा दो जिससे पूरे देश को भारतीय युवाओं पर गर्व हो ।

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