Monday, 28 September 2015

विषमता को बढ़ावा देती नवउदारवादी अर्थव्यवस्था


शक्ति मिश्रा
समाज के इस नवउदारवादी अर्थव्यवस्था में असमानता और विषमता की लहर सी दौड़ गयी है और इसमें देश का बुनियादी विकास पीछे छूट रहा है | इन्हीं सब बातों को समझने के लिए दिनांक 27सितम्बर 2015 को 'किशन पटनायक स्मृति व्याख्यान' के बैनर तले आयोजक साहित्य वार्ता की तरफ से गांधी शांति प्रतिष्ठान सभागार में एक व्याख्यान का आयोजन हुआ | जिसका विषय 'नवउदारवादी अर्थव्यवस्था में विषमता की चौड़ी होती खाई' रखा गया | व्याख्यान की अध्यक्षता 'सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री कमल नयन काबरा' ने किया | मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ पत्रकार अरुण त्रिपाठी ने अपना व्याख्यान दिया | उन्होंने अपने वक्तव्य की शुरुआत ही तीन महान शख़्सियतों को लेकर की | उन्होंने कहा कि आज के दिन का बड़ा संयोग है क्यों कि आज समाजवादी विचारधारा के धनी किशन पटनायक की पुण्य तिथि है और शहीदे-आजम भगत सिंह का जन्म दिन भी आज ही है | फिर क्रांतिकरी भगतसिंह को महान समाजवादी नेता डॉ राममनोहर लोहिया से जोड़ा कि लोहिया का जन्म 23 मार्च को हुआ था और संयोग ऐसा कि क्रांतिकारी भगत सिंह का शहादत दिवस भी 23 मार्च को ही है | उन्होंने कहा लोहिया को समाजवाद का अर्थ कहा जाता है पर मौलिक चिंतन के आधार पर किशन जी का भी समाजवाद में महत्वपूर्ण स्थान है और कहा कि किशन जी की स्मृति हर साल उनकी पुण्यतिथि (27 सितम्बर) पर स्मारक व्याख्यान आयोजित करने के लिये साहित्य वार्ता के साथी साधु पात्र हैं, उनके लिए रस्म अदायगी नहीं है | वे नवउदारवादी और उसके समर्थक मीडिया द्वारा अपने बचाव में पैदा की जाने वाली लहरों में नहीं बहते हैं |उन्होंने आगे किशन जी के बारे में बताते हुए कहा कि किशन जी आजीवन समता मूल्यों के साथ जिए और उसके लिए संसद (1962-1963) और उसके बाहर सतत् वैचारिक और सक्रिय संघर्ष किया | वे वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के कड़े आलोचक ही नहीं, उसके गहन और प्रखर अध्येता भी थे | फिर उन्होंने उदारीकरण के ऊपर सवाल उठाते हुए कहा कि इस दौर में बढ़ती असमानता और आम आदमी की लाचारी का सबसे ज्वलंत प्रमाण इन बीस वर्षों में देश में होने वाली तीन लाख किसानों की आत्महत्याएँ हैं और कहा कि आज पूँजीवाद के चपेट में देश का प्रत्येक किसान आर्थिक असमानता और असुरक्षा के घेरे में है | वैसे तो असमानता का सवाल बहुत पुराना है लेकिन नये सन्दर्भ में उसे उदारीकरण और उसके साथ जुड़े लोकतंत्र की बड़ी विफलता के रूप में देखा जा रहा है | यह बात सन् 2008 में शुरु हुई अमेरिकी मंदी के साथ पैदा हुई पूरी दुनिया में प्रदर्शनों की लहर से जुड़ी हुई है | उस समय ट्यूनीशिया, मिस्र, सीरिया भारत में हुए विरोध प्रदर्शनों और अकूपाईवाल स्ट्रीट के आन्दोलन ने एक प्रतिशत बनाम 99 प्रतिशत का सवाल खड़ा कर दिया | इस आन्दोलन के समय मौजूदा व्यवस्था पर तंज करते हुए नोबेल अर्थशास्त्री जोसेफ स्टिग्लट्ज ने लिखा था - "By the one present, Of the one present, For the one present" और फिर दूसरे वक्ता के रूप में हरिमोहन जी ने किशन जी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डाला | कार्यक्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्रकारिता के छात्र और पत्रकार तथा समाजसेवी ने मिलकर कार्यक्रम को सफल बनाया. अंत में अध्यक्ष महोदय ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया.


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