भारतीय लोकतंत्र में संसद जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था है. इसी माध्यम से आम लोगों की संप्रभुता को अभिव्यक्ति मिलती है. संसद ही इस बात का प्रमाण है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था में जनता सबसे ऊपर है और जनमत सर्वोपरि. सामान्यतया प्रतिवर्ष संसद के तीन सत्र या अधिवेशन होते हैं, बजट अधिवेशन (फरवरी-मई), मानसून अधिवेशन (जुलाई-सितंबर) और शीतकालीन अधिवेशन (नवंबर-दिसंबर). संसद की कार्यवाही प्रतिवर्ष 80 दिनों के लिए चलती है, जिसमें प्रतिदिन का कार्यकाल 6 घंटे का होता है. संसद का कार्य विधान बनाना, मंत्रणा देना, आलोचना करना और लोगों की शिकायतों को व्यक्त करना है.
संसद की कार्यवाही के दौरान एक मिनट 2.5 लाख रुपया खर्च होता है। इस प्रकार एक दिन का खर्च 9 करोड़(2.5×360) रुपया होता है. लोकतंत्र में विधायिका के सदस्य जनता के सेवक होते हैं, लेकिन जनता के इन सेवकों के वेतन और सुविधाएं देखकर राजतंत्र भी झेंप जाती है. लोकसभा और राज्यसभा के सांसद को कार्यकाल के दौरान 50,000 रुपया वेतन, संसद की कार्यवाही में भाग लेने पर प्रतिदिन 2000 रुपया का भत्ता, अपने कार्यक्षेत्र में कार्य करने के लिए 45,000 रुपया प्रतिमाह, ऑफिसियल खर्चों के लिए अलग से 45,000 रुपया मिलता है. लोकल एरिया डेवलपमेंट स्कीम के तहत 5 करोड़ रुपया प्रतिमाह कर सकता है.
हर तीन महीने में घर के कपड़े और पर्दे धोने के लिए 50,000 रुपया मिलता है. साल भर में 34 हवाई यात्रा, रेलवे में फर्स्ट क्लास एसी यात्रा अनगिनत, तथा सड़क मार्ग के लिए 16 रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से भत्ता ले सकता है. डेढ़ लाख फोन कॉल, 50 हजार यूनिट बिजली, 40 लाख लीटर पानी, दिल्ली में रहने के लिए मकान और मडिकल सुविधा मुफ्त में मिलता है. संसद की रहस्यमयी कैंटीन से भला कौन नहीं वाकिफ है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस मानसून सत्र में लोकसभा में 32 घंटे 11 मिनट तथा राज्यसभा में 79 घंटे 40 मिनट, बाधाओं के कारण नष्ट हुए. जिस कारण बहुप्रतीक्षित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पास न हो सका. यह एक समान राष्ट्रीय बाजार को तथा विनिर्माण और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाला महत्वपूर्ण बिल है. संसद को ठप कर देना और ऐसे महत्वपूर्ण बिल को पास न होने देना, एक तरह से लोकतंत्र को नकारना है. इन सब के बावजूद हमें भ्रम है कि हम दुनिया के सबसे बड़े ‘लोकतंत्र’ हैं.
बदले की राजनीति से देश का कभी भला नहीं हो सकता. यह देश की जनता से वादाखिलाफी है, इसे कतई स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. जो भी पार्टी ऐसा करे उसे सबक मिलना चाहिए. आशा है बिहार के मतदाता इसे ध्यान में रखेंगे. अभी कई संसद सत्र बांकी है.
संसद की कार्यवाही के दौरान एक मिनट 2.5 लाख रुपया खर्च होता है। इस प्रकार एक दिन का खर्च 9 करोड़(2.5×360) रुपया होता है. लोकतंत्र में विधायिका के सदस्य जनता के सेवक होते हैं, लेकिन जनता के इन सेवकों के वेतन और सुविधाएं देखकर राजतंत्र भी झेंप जाती है. लोकसभा और राज्यसभा के सांसद को कार्यकाल के दौरान 50,000 रुपया वेतन, संसद की कार्यवाही में भाग लेने पर प्रतिदिन 2000 रुपया का भत्ता, अपने कार्यक्षेत्र में कार्य करने के लिए 45,000 रुपया प्रतिमाह, ऑफिसियल खर्चों के लिए अलग से 45,000 रुपया मिलता है. लोकल एरिया डेवलपमेंट स्कीम के तहत 5 करोड़ रुपया प्रतिमाह कर सकता है.
हर तीन महीने में घर के कपड़े और पर्दे धोने के लिए 50,000 रुपया मिलता है. साल भर में 34 हवाई यात्रा, रेलवे में फर्स्ट क्लास एसी यात्रा अनगिनत, तथा सड़क मार्ग के लिए 16 रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से भत्ता ले सकता है. डेढ़ लाख फोन कॉल, 50 हजार यूनिट बिजली, 40 लाख लीटर पानी, दिल्ली में रहने के लिए मकान और मडिकल सुविधा मुफ्त में मिलता है. संसद की रहस्यमयी कैंटीन से भला कौन नहीं वाकिफ है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस मानसून सत्र में लोकसभा में 32 घंटे 11 मिनट तथा राज्यसभा में 79 घंटे 40 मिनट, बाधाओं के कारण नष्ट हुए. जिस कारण बहुप्रतीक्षित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पास न हो सका. यह एक समान राष्ट्रीय बाजार को तथा विनिर्माण और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाला महत्वपूर्ण बिल है. संसद को ठप कर देना और ऐसे महत्वपूर्ण बिल को पास न होने देना, एक तरह से लोकतंत्र को नकारना है. इन सब के बावजूद हमें भ्रम है कि हम दुनिया के सबसे बड़े ‘लोकतंत्र’ हैं.
बदले की राजनीति से देश का कभी भला नहीं हो सकता. यह देश की जनता से वादाखिलाफी है, इसे कतई स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. जो भी पार्टी ऐसा करे उसे सबक मिलना चाहिए. आशा है बिहार के मतदाता इसे ध्यान में रखेंगे. अभी कई संसद सत्र बांकी है.
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