आपका फिजिकल एजुकेशन में किस प्रकार आना हुआ तथा आपकीे इस क्षेत्र में किस प्रकार रूचि बढ़ी?
उत्तर- ऐसा है कि आरम्भ से ही मेरी इसमें रूचि थी सातवीं कक्षा में मैं पहली बार डिस्ट्रिक्ट खेलने गया उसके पश्चात् आठवीं कक्षा में भी डिस्ट्रिक्ट खेलने के लिए चुना गया! इसके बाद रूचि बढ़ती चली गयी खेल की तरफ उसके बाद नौंवी कक्षा में पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का गौरव प्राप्त हुआ इसके बाद दसवीं,ग्यारवीं और बारहवीं में भी स्कूल नेशनल खेले। इस प्रकार हमने अपने पैशन को ही प्रोफेशन बना दिया। इसके बाद मुझे कानपुर से नौकरी का प्रस्ताव आया तो मुझे इस बात का आभास हुआ की इस क्षेत्र में स्कोप है बारहवीं के बाद ही मुझे स्टेट बैंक की तरफ से नौकरी का प्रस्ताव आया तो मेरे कोच सर ने मुझे प्रोत्साहित किया कि "बेटा इस लाइन में ही तुम्हे जाना चाहिए, इसी क्षेत्र में ग्रेजुएशन करो फिर मास्टर्स करो और खेल को ही अपना पैशन बनाओ।
आपको राष्ट्रीय स्तर पर खेलने में जो गौरव प्राप्त होता क्या वह गौरव अकादमिक या स्पोर्ट्स सेक्टर में महसूस होता है?
उत्तर- यहाँ पर वो बात नही है इन दोनों में बहुत अंतर है। जैसे मैंने कुछ जूनियर इंडिया और आल इंडिया यूनिवर्सिटी कैंप लगाया। इसके बाद यदि मैं अंतराष्ट्रीय प्लेयर हो जाता वहाँ अपने देश के लिए खेलता, देश का नाम ऊँचा करता। तिरंगे का रंग एक अलग चीज़ है इसमें कोई दो राय नही है। लेकिन मैं इस क्षेत्र में आ गया यहाँ हम एक खिलाड़ी बनाते है लेकिन वहाँ खुद एक खिलाड़ी होते तो वो एक अलग बात होती। इन दोनों में बहुत अंतर हो गया। वहाँ अपने तिरंगे के निचे खेलते, तिरंगा लहरा रहा होता तो वो एक अलग ही गौरव की बात होती। पढ़ाना और सिखाना एक अलग ही सेक्टर है।
लेकिन इस क्षेत्र में आकर आप खिलाड़ी बनाते है किसी के हुनर को एक नया आयाम देते हैं। इस प्रक्रिया के बारे में आपकी क्या राय है?
उत्तर- जी, ये आपने बिलकुल सही कहा ये एक खिलाड़ी बनाने की उसे प्रोत्साहित करने की एक प्रक्रिया है जो आत्म संतुष्टि प्रदान करती है। बहुत बच्चे हमारे राष्ट्रीय, अंतराष्ट्रीय और यूनिवर्सिटी लेवल पर भी खेल चुके है। आल इंडिया भी खेल चुके है रिकार्ड्स भी बना रहे हैं तो यह एक आत्मसम्मान, एक गौरव की बात है। लेकिन इससे पहले जो आपने बात कही थी की यदि भारत के लिए खेल पाते देश की जर्सी पहन पाते तो वो एक अलग बात थी। लेकिन हाँ अगर मैं कहीं जाता ही पूरे भारत में तो हर जगह हमारे खिलाड़ी है जो किसी न किसी लेवल पर हर जगह खेल रहे है। तो वो भी मेरे लिए एक गौरव की बात है।
उत्तर- अगर बात की जाए पसंदीदा खेल की तो हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी है और मेरा सबसे पसंदीदा खेल भी। वही बात यहाँ भी आती है यदि हम देश के लिए खेलते है तो एक ही खेल को प्रस्तुत करते। लेकिन अब मैंने टीचिंग के क्षेत्र में कदम रखा तो यहाँ हर खेल को महत्व देना जरूरी हो जाता है क्योंकि यहाँ 2000 बच्चे है तो हर बच्चा अलग खेल खेलना चाहता है। कोई हॉकी खेलना चाहता है तो कोई कबड्डी और कोई क्रिकेट। तो हमे उनकी रूचि का ध्यान रखते हुए उन्हें सिखाना होता है, उन पर ध्यान देना होता है, उन्हें ज्ञान देना प्रदान करना होता है, उन्हें तैयार करना होता है अपनी कंट्री को, अपने देश को प्रस्तुत करने के लिए। लेकिन अब बच्चों को सिखाना होता है तो हर खेल की तरफ हमारा भी रुझान हो जाता है लेकिन पसंदीदा खेल अभी भी हॉकी है जिसका स्तर भारत में अभी भी काफी झुका हुआ है।
आप खेल में आने वाले छात्रों को, युवाओं को किस प्रकार का संदेश देना चाहेंगे की वह किस क्षेत्र में जाएँ?
उत्तर- यदि व्यक्तिगत तौर पर देखा जाए तो मैं युवाओं को यही संदेश देना चाहूँगा की आप स्पोर्ट्स के क्षेत्र में क़दम रखें, ज़ज्बे के साथ एक जूनून के साथ खेलें तथा सबसे ऊँचाई पर जाने का प्रयास करते रहे। आरंभ में कुछ बाधाएँ जरूर आएँगी लेकिन आपको झुकना नही है। आपका लक्ष्य हमेशा याद रखे तथा एक ही लक्ष्य रखें। कठिनाईयाँ आती रहेंगी लेकिन आपको उनसे लड़ना है ताकि ताकि आप उस कठिनाई से उभर सके यदि आपका जज़्बा, आपकी सोच मजबूत होगी तो मंज़िल जरूर आपके कदम चूमेगी।
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