Saturday, 2 January 2016

स्मार्ट सिटी में रेहड़ी-पटरी का भविष्य

सोनु चौबे और बिपिन बिहारी दुबे की प्रस्तुति

किशोर प्रसाद उम्र 62 साल 1985 से ही सासाराम डाकघर के पास फल की दुकान लगा रहे हैं। इसके पहले इस दुकान को 1960 से उनके पिता चला रहे थे। किशोर प्रसाद इस दुकान के सहारे ही अपने 3 बेटे 2 बेटियों समेत 8 लोगों के परिवार का भरण.पोषण कर रहे हैं। उनके पास इसके अलावा आय का कोई वैकल्पिक साधन नहीं है। वह बड़े दुखी मन से कहते है कि आप ही बताईये अगर सरकार प्रशासन बिना कोई दूसरी व्यवस्था किये हमको यहाँ से भगा दे या दुकान तोड़ दे तो मैं अपने 8 लोगों के परिवार के साथ सडक़ पर ही जाऊँगा या फिर भूखा मरूँगा आखिर मैं भी इस देश का नागरिक हूँ। ईमानदारी से अपना पेट पालता हूँ तो क्या मुझे और मेरे परिवार को जीने का अधिकार नहीं है। 

अपने ऊपर हुई बर्बरता का ज़िक्र करते हुए किशोर बिलकुल रो पड़ते हैं उनके अनुसार यह तो आम बात है कि कभी नगर परिषद के ठेकेदार तो कभी पुलिस प्रशासन अलग.अलग बहाने बनाकर नहीं तो धमकाकर पैसा वसूलते है। एक बार की बात है यहीं के एक पुलिस वाले थे जो कि बैगर पैसा दिये फल ले जाने की बात कर रहे थे। जब मै नहीं दिया तो मेरी दुकान को गैरकानूनी बता कर मेरा ठेला पलट दिए। और निचे गिरे फलों को जूते से कुचलने लगें। लोगों ने बीच.बचाव किया तो छोड़कर गये। जहाँ तक जब्त करने का सवाल है तो पुलिस के लोग बिना किसी लिखित प्रमाण के सामान ज़ब्त कर ले जाते हैं। जिसके कारण अगर वापस भी किये तो 5 पेटी सेव की जगह 2 पेटी 20 किलो संतरे के जगह 5 किलो वापस करते हैं। आप ही बताईये हम गरीब लोग जो कम से कम मुनाफा रख के किसी तरह अपना पेट पालते हैं। गर्मी जाड़ा बरसात हर समय जनता की सेवा करते हैँ। और कोई हमसे 4 पेटी सेब 10 किलो संतरा हड़प ले तो पुरे महीने भर का धंधा चौपट हो जाता है। दुकान बंद करने से भूखा मरने की नौबत आती है सो अलग। यह तो भला हुआ कि 2014 में कानून बना माननीय सुप्रीमकोर्ट ने हमें स्वीकार किया और हम सब संगठित हुए जिससे पिछले 1.2 साल में कुछ घटनाएं कम हुई नहीं तो हमें कौन गिनता है । अब तो और सुन रहे हैं कि यहाँ;सासाराम में स्मार्ट सीटी बनने वाला है ऐसे में हमारे भविष्य का भगवान ही मालिक है ।

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