सूरज कुमार
पाखी महोत्सव के दूसरे दिन "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम असहिष्णुता" विषय पर चर्चा हुई । जिसमें वक्ता के तौर पर उत्तराखण्ड के मुख्य मंत्री हरीश रावत, तरुण विजय, अभय कुमार दुबे और स्वामी शिवानंद सरस्वती ने अपने विचार व्यक्त किए। तरुण विजय ने अपने जीवन के कुछ किस्से बताए जैसे की उनके मित्र अब्बुतबसि को उन्होंने निजामुद्दीन का दरगाह घुमाया और अक्षरधाम मंदिर पर उनको और उनके साथियो को रोज़ा खुलवाला। उन्होंने देश को जात-पात से ऊपर बताया और कहा हर सिक्के के दो पहलु होते हैं जिसे नाकारा नहीं जा सकता. उन्होंने मीनाक्षी मंदिर में हुए तमिल संगम का जिक्र करते हुए अपनी बात को साबित किया और असहिष्णुता को एक लोकप्रिय असहिष्णुता ही बने रहने को कहा है और साथ ही मुन्नवर राणा की पुरुस्कार वापसी को उनके निजी फैसला बताते हुए कहा है की इससे उन्होंने अपना ही नुकसान किया है किसी दूसरे का नहीं साथ ही पुरुस्कार वापसी से किसी मुद्दे का हल नही निकल सकता उसके लिए उन्हें अनशन व धरने पर बैठना चाहिए और लगातार आंदोलन करते रहना चाहिए।
अभय कुमार दुबे ने कहा की असहिष्णुता कोई सांस्कृतिक व सामाजिक मुद्दा नही है बल्कि यह एक राजनीतिक मुद्दा है जो देश में इस वक्त उफानो पर हैं. उन्होंने असहिष्णुता और सहिष्णुता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कहा कोई भी चीज़ सहिष्णु तब है जब उसे स्वीकार कर लिया जाए इस पर उन्होनें कहा की क्या एक छोटी जाति बड़ी जाति से जाकर ये कहे की उसे स्वीकार कर लिया जाए या बड़ी जाती छोटी जाती के पास जाकर कहे की उसे स्वीकार कर लिया जाए या एक स्त्री ब्राह्मण को जाकर कहे की उसे स्वीकार कर लिया जाए इस तरह के उदहारण देते हुए अभय जी ने सहिष्णु और स्वीकृत को अलग अलग बताया है जब तक कोई व्यक्ति कोई राष्ट्र किसी चीज़ को स्वीकार न करले वो सहिष्णु नही हो। सकता। साथ ही उन्होंने 1942 भारत छोडो आंदोलन के बाद 1992 में राम जन्म भूमि आंदोलन को सबसे बड़ा आंदोलन बताया क्योंकि इसमें राष्ट्र की जनता एक साथ बड़ी मात्रा में एकत्रित हुए थे ऐसा लोगों का सैलाब इससे पहले कभी नहीं आया था
अंतत: उन्होने सरकार पर अपनी राय रखी कहा की आज आप लोग साहित्यकारों को पुरुस्कार लौटाने के लिए उनकी आलोचना कर रहे हो यदि बिहार विधानसभा चुनाव में आपकी हार हो जाती है तो इसके लिए हमें जिम्मेदार मत मानना यदि साहित्यकारों ने एक सरल और लोकतांत्रिक रवैया अपना कर पुरुस्कार लौटाए तो इसमें सरकार को इतनी चिंता क्यों हो रही है।
उत्तराखंड के मुख्य मंत्री ने असहिष्णुता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा की सहिष्णुता व सद्भाव भारत की परम्परा व संस्कृति का अभिन्न अंग है की सभी धर्मो का मानना सरहानीय है. वही व्यक्ति महान कहला सकता है जो सभी धर्मो का सम्मान करता है. औरंगजेब विद्धवान और धर्मपरायण शासक था परंतु महान अकबर को कहा गया क्योंकि अकबर सभी धर्मो का सम्मान करता था और उनकी राजनीति सहिष्णुता पर आधारित थी। उन्होंने असहिष्णुता पर कहा की सम्राट अशोक जब तक युद्ध की नीति और रीति पर चलते रहे तब तक उनका नाम नही हुआ परन्तु उन्हें महान तभी कहा गया जब उन्होंने हिंसा छोड़ प्रेम की निति को अपना महत्वपूर्ण अंग बनाया । उन्होंने देश के लोगों को जागरूक बताते हुए कहा की जागरूक लोग देश में असहिष्णुता बर्दाश्त नहीं करेंगे।
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