Friday, 1 January 2016

रेहड़ी पटरी की कहानी उनकी जुबानी



सोनु चौबे और बिपिन बिहारी दुबे की प्रस्तुति
  
पुलिस की लाठी चले या नगर पालिका की कारवाई मैं किसी से नहीं डरती क्योंकि सुप्रीमकोर्ट ने रेहडी -.पटरी लगाने की मुझे अनुमति दी है. जब तक प्रशासन मेरी जीविका के लिए मेरी आय का कोई वैकल्पिक स्रोत या स्थान नहीं देता मैं अपनी दूकान यहीं लगा सकती हूँ. पूजा कौर की पहचान आप उनकी इसी बुलंद आवाज और मजबूत तेवर से लगा सकते हैं। शायद यही वजह है कि सासाराम की सड़को के किनारे लगने वाले हज़ारों रेहड़ी.पटरी की दूकानों के अस्तित्व अथवा उनकी जीविका को बचाने की लड़ाई में पूजा एक मात्र सक्रीय महिला है जो मरते दम तक इस संघर्ष को जारी रखना चाहती हैं। पूजा की शादी नौ वर्ष पहले सासाराम के गुड्डू सिंह से हुई जिससे इनको दो बेटी और एक बेटा है। एक माँ एक पत्नी होने के साथ ही पूजा सासाराम के शंकर कॉलेज के बी.ए इतिहास विशेष प्रथम वर्ष की छात्रा भी है. इसके साथ-साथ पूजा सिविल सर्विस की तैयारी भी कर रही हैं। 

पूजा का सपना एक सरकारी अधिकारी बनना है। जिससे वो अपना समाज ख़ासकर रेहड़ी.पटरी वालों की लड़ाई को व्यवस्था के अंदर और बहार दोनों तरफ से मज़बूती से लड़ सकें । पूजा कौर रोहतास फुटपाथ फेरी विक्रेता संघ की जिला सचिव है और इस संग़ठन से जुड़ने वाली पहली महिला भी हालांकि पूजा इस लड़ाई में और महिलाओं को जोड़ने के लिए उन्हें जागरूक करने का कार्य भी करती हैं। इस कार्य में उन्हें तमाम तरह की चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है. पूजा के अनुसार जब वो किसी धरना प्रदर्शन या फिर पुलिस- प्रशासन से बात करने जाती हैं तो लोग उनका मज़ाक उड़ाते हैं और ताने भी मारते हैं जिसका कारण भी वो इस लड़ाई में महिलाओं की नगण्य हिस्सेदारी को मानती है। ऐसी विपरीत परिस्थिति में पूजा अपने विकलांग पति से ही सीख लेती हैं । किसी भी परिवार को चलाने के लिए आर्थिक स्थिती का बेहतर होना जरुरी है। इस छोटी सी दुकान के सहारे ही जिस भरोसे के साथ इन्होंने मेरी पढाई, बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ परिवार को सुगमता पूर्वक चलाया है वह अत्यन्त सराहनीय है । अपने पति के बारे में चर्चा करते हुए पूजा की आँखे भावुकता से नम हो जाती हैं।

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