Sunday, 13 March 2016

आज के कहानीकारों में सीखने की प्रवृत्ति की कमी


हिमांशु रजनीश
नई दिल्ली, हिंदी अकादमी के तरफ से त्रिवेणी सभागार में 'अपने समय की कहानियां' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वक्ताओं के रूप में कहानीकार ममता कालिया, संजय कुंदन, शशिभूषण द्विवेदी थेअध्यक्षता हिंदी अकादमी की उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा जी ने किया । मंच का संचालन मृत्युंजय प्रताप सिंह ने किया । 
पहले वक्ता के रूप में शशिभूषण द्विवेदी ने साठोत्तरी कहानियों और कहानीकारों का जिक्र किया तथा इस पर ख़ेद जताया कि उस वक़्त की तरह ना अब कहानीकार हो रहे हैं, और ना कहानियां । 
दूसरे वक्ता के रूप में ‎संजय कुंदन जिन्होंने बहुत सरल तरीके से अपनी बात रखी । उन्होंने कहानीकारों में युवाओं के योगदान का जिक्र किया औए कहा की युवाओ का स्वागत और  प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह भी कहा कि कहानी पर चर्चा से बेहतर कहानी का पाठ किया जाना चाहिए। कहानी को लेकर राय बनाने में हड़बड़ी नहीं किया जाना चाहिए अंत में उन्होंने कहानी "अगले जन्म" का पाठ किया। जिसमें उन्होंने दर्शाया कि एक आदमी किस तरह अपनी ज़िन्दगी से तंग आ चुका है । वो हर चीज़ों को अगले जन्म पर टालता है और वो अगले जन्म के ही सपने देखता रहता है। साथ ही बताया की कहानियां आत्मीय होनी चाहिए । कहने और सुनने वाले के बीच संबंध स्थापत्य होने चाहिए ।
तीसरे वक्ता के रूप में ममता ‎कालिया ने कहानियों के बने रहने पर खुशी ज़ाहिर की। उन्होंने कहा कि कहानी बची हैं, युवा इसमें आ रहे हैं...ये बड़ी खुशी की बात है । वरना आलोचना ने तो सारी विधाओं को ही नष्ट कर दिया । उन्होंने अपने समय की कहानियों और कहानीकारों की बात पर जोर दिया । खासतौर से साठोत्तर के समाज की कहानियों की बात किया।  उन्होंने इस पर चिंता ज़ाहिर कि उस वक़्त पुरूषों ने कहानियां लिखना कम किया था लेकिन महिलायें लिखती रहीं । उन्होंने  कहानी "लड़के" का पाठ करके अपनी बातों को समाप्त किया । इस कहानी में कालेज के लड़कों, आंदोलित लड़कों को दर्शाया गया था 
मैत्रेयी पुष्पा  ने अध्यक्षीय भाषण दिया, जिसमें उन्होंने सबका धन्यवाद ज्ञापन करते हुए एक कहानीकार के रूप में अपनी बात रखी ।  उन्होंने कहानी को आसान भाषा, भाव में परोसने पर ज़ोर दिया । उन्होंने कहा कि आख़िर हम क्यों कहानियों को उलझाते हैं? कहानियां किसके लिए लिखी जाती है? जनता के लिए या सिर्फ़ कुछ विशेष जनों के लिए? कहानियां ऐसी होनी चाहिए कि एक आम पाठक उसे समझ सके। इस बात पर ख़ेद जताया कि आज के कहानीकारों में सीखने की प्रवृत्ति कम हुई है, जिस पर उन्हें ध्यान देना चाहिए ।
अन्त में हिंदी अकादमी के सचिव ‎जीतराम भट्ट जी ने सबका धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कार्यक्रम के समाप्ति की घोषणा की ।

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