संदीप राय
एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए 2200/kl प्रति दिन भोजन की आवश्यकता होती है और उत्पादन हम 2400/kl प्रति दिन करते हैं, फिर भी देश के 40 % बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, भूखमरी में भारत का स्थान 16th है, अनुमानित 20 करोड़ की आबादी एक वक़्त भोजन नही पाती. चलिए जनाब माना की स्थिति बहुत खराब है, तो निमोनिया का उल्टा मलेरिया तो नही होता हमें तो पता है की अच्छा स्वास्थ होता है , लेकिन यहाँ तो मेरी सोच गलत है क्यों की स्थिति सुधार में भी भारत का स्थान 76th है . चलिए खेती की तरफ चलते हैं . हर घण्टे दो किसान आत्महत्या कर रहे हैं , ये वही किसानी है जो 1950 में हमारी जीडीपी में 52% का हिस्सा रखती थी लेकिन आज 14% जो किसानी अपने आप में एक व्यवस्था हुआ करती थी वो व्यवस्थाओं की मोहताज़ हो गयी है . जिस तरीक़े की खेती भारत में आजमायी गयी वो ब्रिटेन में 400 साल पहले आजमायी गयी थी जिसके फलस्वरूप किसानी में असमानता व पलायन में भारी वृद्धि हुई उदाहरण के तौर पर देखा जाये तो लंदन शहर की आबादी जो 1520 में 60000 थी जो 1700 में बढ़कर 5 लाख 75 हजार हो गयी . आइये थोडा सन् 1970 में चलते हैं जब गेहूँ का समर्थन मूल्य 76 रुपये प्रति क्विंटल था जो 19 गुना बढ़ कर आज 1450 रुपये है , जबकि इतने ही वर्षो में केंद्रीय कर्मचारियों की पगार में 120 से 150 गुना , प्रोफेसरों की पगार में 150 से 170 गुना , निजी क्षेत्र में काम करने वाले मध्यम वर्गी कर्मचारी की पगार में 300 गुना और उच्च वर्ग के कर्मचारी की पगार में 1000 गुना की वृद्धि हुई . आज एक किसान परिवार की आय 20000 सालाना है ( आर्थिक समीक्षा ,2016 ) लेकिन अब दिन दूर नही जनाब पूरी तस्वीर बदलने वाली है क्यों की मोदी सरकार ने वादा कर दिया है की 5 साल में किसान परिवार की आय दुगना कर देगी . मतलब 40000 सलाना और 3000 मासिक अब तो किसान भी हवाई जहाज़ में सफ़र करेगा . सोच रहा हूँ मराठवाड़ा (महाराष्ट्र) जाकर वहाँ के किसानों को बता ही दूँ की अब हफ्ते में 35 लोगों को आत्महत्या करने की जरूरत नही पड़ेगी . यहाँ एक सवाल का जवाब मेरा मिल गया की" विकास एक सरकारी झूठ मात्र ही है " . जिसका मतलब सरमायदारों की तिजोरी भरना है और आज की अर्थव्यवस्था एक नया तरह का धर्मशास्त्र है . 7 वाँ वेतन आयोग आने के बाद एक चपरासी भी इनकम टैक्स भरने के योग्य हो जायेगा , बजट पर 1 लाख करोड़ का बोझ पड़ेगा 7 वाँ वेतन आयोग से लेकिन जैसे ही फसल का समर्थन मूल्य बढ़ाने या क़र्ज़ माफ़ी की बात किसान ने कर दिया फिर तो भईया बवाल ही है की पैसा कहाँ से आएगा , "पैसे पेड़ो पर तो उगते नही " . वहीँ से आएगा जनाब जहाँ से ये 1 लाख करोड़ आएंगे और पूँजीपतियों के लिए 6 लाख 11 हज़ार करोड़ का वित्तीय मदद आएगी . अपनी जमीन पर मेहनत करके फसल उगाने के बाद भी अगर किसान एक अच्छा जीवन नही जी पा रहा है तो क्या वो विस्थापित जीवन से कम है . आज जीने के लिए अवैध और अनैतिक संसाधनों की दुनिया कायम की जा रही है ..ये तो तय है की मानव रक्त से सिंचित खेतों में अन्न नहीँ , विषैले धतूरो की काँटेदार फसलें उगेंगी ही .
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