Wednesday, 23 March 2016

अंतिम जन के पत्रकार थे गाँधी

मीना प्रजापति 
नई दिल्ली के राजघाट स्थित गाँधी दर्शन समिति और प्रज्ञा संस्थान के तत्वाधान में दो दिवसीय युवा पत्रकार कार्यशाला का आयोजन किया। इस मौके पर हज़ारो की संख्या में विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं को गांधी की पत्रकारिता से रूबरू कराया गया। पत्रकारिता मिशन से प्रोफेशन की ओर किस तरह से बढ़ रही है और आदर्श पुरुष गांधी की पत्रकारिता कैसी थी। इस विषय पर विभिन्न विद्वानों ने अपने विचारो को युवाओं के साथ साँझा किया। जिस प्रकार किसी ज़हाज की देखभाल कप्तान करता है ठीक उसी तरह किसी अख़बार का कार्यभार उसके संपादक पर होता है। यह बात गोविन्दाचार्य ने कहा। संपादक के रूप में गांधी विषय पर कार्यशाला के मुख्य वक्ता गोविंदाचार्य ने कहा कि गांधी एक अच्छे संपादक थे उन्होंने हरिजन, नवजीवन, यंग इंडिया आदि अख़बारों का कुशल संपादन किया। गांधी की पत्रकारिता में रचनात्मकता थी लेकिन वर्तमान समय की पत्रकारिता में ना तो रचनात्मकता है और ना ही स्वतंत्रता है। आज विज्ञापन कंटेंट से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं। वरिष्ठ पत्रकार जवाहरलाल कौल  ने अपना अनुभव छात्रों से साँझा करते हुए कहा कि पत्रकारिता अच्छे और बुरे का मिक्स वेज है। यहाँ दोनों बातें चलती हैं। उन्होंने छात्रों को यह भी बताया कि जब तक पत्रकारिता मिशन है तब तक ठीक है लेकिन जैसे ही पेट की बात आती है इसमें विकृतियां दिखाई देने लगती हैं। इसलिए हमें केवल पत्रकार बनने के लिए काम नहीं करना है बल्कि बुराइयों को भी ख़त्म करना है। इस कार्यशाला के दूसरे सत्र का विषय 'मिडिया और युवा कार्यकर्त्ता' था। जिस परब्राडकास्ट  एसोसिएशन के प्रमुख श्री एन. के. सिंह ने पत्रकारिता में वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कहा कि हमें ना राइट में रहना है और ना लेफ्ट में बल्कि प्रत्यक्ष रूप से अपने विचारों को जनता के सामने रखना है। तभी हम सही पक्ष को जनता के सामने रख पाएंगे। पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने कहा कि गांधी की पत्रकारिता मुनाफे की पत्रकारिता नहीं थी बल्कि सच्चाई और जीवन मूल्यों की पत्रकारिता थी। आज ज़रूरत है कि एक पत्रकार अपने अंदर संयम और विवेक रखे तभी हम सच्ची और सही पत्रकारिता कर पाएंगे।
युवा पत्रकारों की कार्यशाला दूसरे दिन तीसरा सत्र 'सत्याग्रह और मिडिया तब और अब'  विषय पर वरिष्ठ पत्रकार  श्रवण गर्ग ने गांधी के समय की पत्रकारिता और वर्तमान समय की पत्रकारिता में अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि गांधी के समय की पत्रकारिता आदर्श रूप में देखी जा सकती है। उस समय ग्लैमर नहीं था पर आज़ादी एक लक्ष्य था पर आज का मीडिया व्यावसायिक मीडिया है जहाँ नाम, संपत्ति ज़्यादा मायने रखती है। इस सत्र के दूसरे वक्ता वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द मोहन ने कहा कि गांधी में कम्युनिकेशन करने की ज़बरदस्त क्षमता थी और इसी क्षमता की वजह से वे चंपारण में जब सन 1917 में जाते हैं, और एक हफ्ते में ही उनके काम की चर्चा पूरे चंपारण में होने लगती है। अरविन्द मोहन ने चंपारण में गांधी की सक्रियता और कम्युनिकेशन स्किल्स के विषय में छात्रों का ज्ञानवर्धन किया। समापन सत्र में पत्रकार उमेश चतुर्वेदी 'संचार तकनीक के दौर में रचनात्मक लेखन' पर अपनी बात रखते हुए सोशल मीडिया की महत्ता बताते हुए कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन की कोख से पत्रकारिता निकली है इसलिये इसे सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है। रामधीरज जी ने गांधी के जीवन मूल्यों की बात करते हुए अपनी बात को रखा और कहा कि हमें गांधी से बहुत सीखने की ज़रूरत है। कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे अवधेश कुमार ने जोश भरा वक्तव्य देते हुए युवाओं में उत्साह जगाया। उन्होंने कहा कि परिस्थितियों से घबराने की ज़रूरत नहीं है बल्कि बीच का रास्ता निकल कर समस्या से लड़ना है।

No comments:

Post a Comment