Sunday, 10 April 2016

युवा पत्रकारों की दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

शिवांगी पाण्डेय  
19और 20 मार्च को  राजघाट पर युवा पत्रकारों की दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन हुआ. इस दो दिवसीय गोष्ठी की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन तथा कुछ संगीत के कार्यक्रमों के  साथ की गई . गांधी स्मृति म्यूजिकल बैंड ने अपनी शानदार प्रस्तुति देते हुए दो  देशभक्ति गीत प्रस्तुत किए । इरादे कर बुलन्द तथा रघुपति राघव राजा राम।

पहले सत्र के संचालनकर्ता अनुराग दवे ने गोष्ठी को आगे बढाया। गोविन्दाचार्य जी ,श्री जवाहरलाल कोल , राम धीरज एवं अनुराग दवे ने गोष्ठी में  विचारक व मार्गदर्शक की भूमिका निभाई. पहले सत्र के मुख्य वक्ता के रूप में गोविन्दाचार्य जी ने अपने विचार प्रस्तुत किए । गोविन्दाचार्य जी ने सबसे पहले परमात्मा का नाम लिया फिर अपनी बात रखी । गोविन्दाचार्य जी ने गांधी जी का चरित्र बताया । गांधी जी ने सत्याग्रह को कैसे अपने जीवन मे उतारा । गोविन्दाचार्य जी ने बहुत महत्तवपूर्ण बातों पर सभी का ध्यान आकर्षित किया जैसे गांधी जी स्वयं एक प्रयोगशाला थे और गांधी जी का पत्रकारिता व यंग इंडिया ,ए इंडिया ओपिनियन में उनका अटूट विश्वास था। सत्य कभी एकतरफा नही होता । यदि हम मे संवाद होगा तभी हम अपनी बात को बेहतर ढंग से रख पांएगे । इसी बात के साथ श्री गोविंदाचार्य जी ने अपनी बातो को विराम दिया । 

दूसरे वक्ता के रुप में श्री जवाहरलाल कोल ने अपने विचारों में कहा की गांधी जी जो भी नियम एवं सिद्धांत दूसरों को बताते थे वे सारे मानक वो पहले खुद पर इस्तेमाल करते थे । उन्होने कोई भी नियम या सिद्धांत ऐसा नही बनाया जिसे वे खुद न अपना सकें। कोल जी ने गांधी जी के बारे में कहा कि वे कहते थे कि वे पत्रकार बनने के लिए पत्रकारिता नही करना चाहते थे बल्कि पत्रकारिता को एक मिशन के रुप मे मानते थे ।कोल जी ने कहा की पत्रकारो मे गलत धारणाएं है कि 4 रुपए मे कोई अखबार बिक रहा है और वो 40 रुपए मे छपता है ये अखबार चलाने के मालिक या पाठक कि जरुरत ही नही बल्कि तीसरी पार्टी की जरुरत भी होती है जो न पाठक हो और न मालिक वो इसलिए हो जो अखबार का खर्चा चला सके । गांधी जी ने नव जीवन पत्रिका को उर्दू और हिन्दी मे भी निकाला । गांधी जी के  मन , वचन ,कर्म ,निंदा एवं आलोचना मे फर्क है यही कहकर श्री जवाहरलाल कोल जी ने अपनी बात को विराम दिया ।

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