अभय पाण्डेय
'दहलीज पर दिल' युवा वर्ग को केंद्र में रखकर लिखा गया उपन्यास है. युवावर्ग को लुभावने अंदाज में लिखा गया यह उपन्यास युवाओं में बेहतर रोचकता लाया है. लेकिन यदि बात करें उपन्यास के कसौटी कि तो इसमें कुछ ज्यादा नजर नहीं आता जिससे इसे एक अच्छे उपन्यास के श्रेणी में रखा जा सके. वैसे भी आज हिंदी साहित्य में प्रेमचंद के उपन्यासों को युवाओं में कम पसंद किया जा रहा है क्योंकि युवा प्रेक्टिकल जो हो चला है. इसलिए भी इस प्रकार के उपन्यास युवाओं में और प्रासंगिक हो जाते है. सबसे दुःखद बात यह है कि दो लेखक दिलीप पाण्डेय और चंचल शर्मा मिलकर भी इसे एक अच्छे उपन्यास में प्रणित करने में नाकामयाब रहे हैं. अगर लेखक इस उपन्यास के लिए अपने पास इकट्ठा किये गए सामग्री से उपन्यास न लिखकर एक डायरी लिखने की कोशिश करता, जिसमें नायक या नायिका किसी एक की दिनचर्या की चर्चा करता तो यह एक अच्छी डायरी हो सकती थी जिसे पढ़ने के बाद पाठक वर्ग कहीं से भी ठगा नहीं महसूस करता.
जिस प्रकार इस उपन्यास में जबरदस्ती पात्रों का जिक्र किया गया है उससे स्पष्ट हो रहा है कि लेखक के पास उपन्यास के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं थी. उपन्यास में दो लव स्टोरी को बराबरी से चलाने और उसे आपस में रिलेट करने की पूरी कोशिश उपन्यासकारों ने की है लेकिन इसमें वे पूर्णत: विफल हो रहें हैं. रानू के दोस्तों का उल्लेख एक हद तक उपन्यास में ठीक लगता है लेकिन उनके लव स्टोरी को बढ़ा-चढ़ा दिखाना उपन्यास को बोझिल बनाता है और उपन्यास उबन का कारण बनने लगता है. इसी प्रकार अन्ना आंदोलन को जरूरत से बहुत अधिक महत्व दिया गया है. जिससे एक समय ऐसा लगने लगता है जैसे उपन्यास के मूल कैरेक्टर कहीं खो से गये हैं. उपन्यास में आंदोलन की व्यापकता ने पाठकों को बहुत अधिक उबाया है. इस उपन्यास ने हिंदी साहित्य में बरती जा रही शालीनता को बहुत अधिक क्षति पहुँचायी है. अंग्रेजी उपन्यास के तर्ज पर लिखे गए इस उपन्यास में कामुक दृश्यों के चित्रण पर विशेष ध्यान दिया गया है. एक 150 पेज के उपन्यास को 269 पेज लिखा जाना, लेखक की लेखन क्षमता और लेखन कुशलता को दर्शाता है. दिल्ली का चित्रण सम्पूर्ण उपन्यास में बड़ी बारीकी से किया गया है. उपन्यास के पात्रों का चित्रण करते समय अतिश्योक्ति का प्रयोग खूब हुआ है. जिसे स्पष्ट तौर पर पूरे उपन्यास के दौरान देखा जा सकता है. अंतिम दृश्य के चित्रण पर लेखक ने विशेष जोर दिया है और इसमें काफी हद तक कामयाब भी रहें हैं. हैप्पी एंडिंग के तर्ज पर लिखे गये इस उपन्यास को औसत दर्जे का उपन्यास कहा जा सकता है. अगर उपन्यास के कुछ दृश्यों पर विशेष ध्यान न दिया जाये तो इस उपन्यास को एक बार पढ़ने में कोई हर्ज नहीं है. कम से कम हम इस उपन्यास से दिल्ली को काफी करीब से जान सकेगें.
उपन्यास- दहलीज पर दिल
लेखक- चंचल शर्मा और दिलीप पाण्डेय
प्रकाशक- ब्लैकस्वान नई दिल्ली.
प्रकाशक- ब्लैकस्वान नई दिल्ली.
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