Tuesday, 12 July 2016

पूर्वोत्तर का दर्द

शक्ति मिश्रा
आज के समाज के दो पहलू हैं पहला अधिकार और दूसरा दायित्व | समाज के अनुसार अधिकार शब्द का इस्तेमाल पुरुष के लिये और दायित्व शब्द का इस्तेमाल महिलाओं के लिये किया जाता है | शायद समाज के निर्माण के साथ ही हम स्त्री को दायित्व का पाठ पढ़ाते आ रहे हैं और यही स्त्री जब अधिकार की बात करती है तो यह किसी को अच्छा नहीं लगता है | और हम इस पर भी एक बनी बनाई मानसिकता पर, रीति-रिवाजों पर विश्व महिला दिवस मनाते हैं | अन्ना हजारे के 2011 के 12 दिनों के अनसन ने पुरे देश में क्रान्ति ला दी थी | लोकसभा चुनाव आने की आहट के दौरान और लाखों लोगों के शामिल इस 12 दिनों के अनसन ने सरकार को अपनी शर्ते मानने के लिये मजबूर कर दिया था | समाज का आम वर्ग तो दूर की बात, मीडिया से लेकर बॉलीवुड तक इस संवेदनशील मामले से दूर नहीं रह सके | इस मामले से जुड़ी पल-पल की खबरें देश की पूँजीवादी मीडिया ने सुबह से शाम तक दिखायी | लेकिन इसी दौरान सबकी आँखो और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया को वह इंसान क्यों नहीं दिखाई दिया जो पिछले 10 वर्षो से भी ज्यादा सालों से अनसन पर है | शायद हम इतने कठोर, निष्टुर और भुलक्कण हो गये हैं कि हमें अपने स्वार्थ के अलावा कुछ नहीं सूझता | फिर भी 10 सालों से भी ज्यादा लंबे समय से अनसन के बाद मणिपुर की आयरन लेडी इरोम चानू शर्मिला के हौसलों में आज भी वही उड़ान है जो अपने अनसन के शुरूआती दौर में थी | नवम्बर 2000 से वह आयरन लेडी मणिपुर में आमर्ड फ़ोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट1958 यानि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून1958 को हटाये जाने को लेकर अनसन पर है | इस एक्ट के तहत मणिपुर में तैनात सैन्य बलों को यह अधिकार प्राप्त है कि किसी घटना के अंदेशे पर भी वो किसी को भी जान से मार दें और इसके लिये उन्हें किसी भी अदालत में सफाई देने की जरूरत नहीं है तथा साथ ही साथ सेना को बिना किसी चेतावनी (वॉरेंट) के तलाशी और गिरफ़्तारी की भी छूट है |

23 मार्च 1956 वह दिन जब नागा विद्रोहियों ने अपना मोर्चा खोलकर भारत सरकार से अलग होकर अपना अलग देश नागालैण्ड बनाने को लेकर विद्रोह शुरू कर दिया | तब विद्रोहियों से निबटने के लिये केंद्र सरकार द्वारा पहली बार सेना भेजी गयी थी, तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संसद में कहा था कि सेना सिर्फ अस्थायी रूप से वहां जा रही है तथा छः महीने के अंदर ही सेना को वहां से वापस बुला लिया जायेगा | पर वास्तव में ठीक इसके विपरीत हुआ | सेना धीरे-धीरे पूरे पूर्वोत्तर भारत के चप्पे-चप्पे में पहुँच गयी और 12 मई 1958 को राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा अनुच्छेद1958 आमर्ड फ़ोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट यानि (आफ्सपा) लागू कर दिया गया | 1972 में पूरे पूर्वोत्तर राज़्यों में इसका विस्तार कर दिया गया और 1983 में पंजाब,चण्डीगढ़ तथा 1990 में जम्भू और कश्मीर भी इस कानून के दायरे में आ गये | सेना के ऊपर आरोप तो यहाँ तक है कि सेना इसकी आड़ में वहाँ उपस्थित सेना ने कई हत्या और बलात्कार जैसे घोर अपराधों को अंजाम दिया है | जरासा भी सन्देह होने पर बिना किसी कार्यवाही के ही नागरिकों को मार दिये जाने के कई मामले सामने आये पर हमेशा इस एक्ट ने सैनिकों बचा लिया | 

चानू का जन्म 14 मार्च 1972 को मणिपुर में हुआ था | कविता और पाठन की शौकीन चानू एक बेहतरीन लेखिका भी हैं | शर्मिला आफ्सपा के खिलाफ इम्फाल के जस्ट पीस फाउंडेशन नामक सरकारी संगठन से जुड़कर भूख हड़ताल कर रहीं हैं | इरोम ने अपनी भूख हड़ताल तब शुरू की जब उन्होंने 2 नवम्बर सन् 2000 के दिन मणिपुर की राजधानी इम्फाल के मॉलोम में 'असम राइफल्स' के जवानों के हाथों दस बेगुनाह लोग मारे गये | वह इस घटना की प्रत्यक्षदर्शी थीं, 29 वर्षीय शर्मिला इसके तुरंत बाद 4 नवम्बर से ही अनसन शुरू कर दिया | उनकी मांग थी कि मणिपुर या अन्य आफ्सपा प्रभावित क्षेत्रों पर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को हटाया जाये, हालांकि अनसन के चार दिनों बाद ही 8 नवम्बर को उन्हें 'आत्महत्या के प्रयास' के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया और धारा309 लगा दिया गया | उसके बाद 20 नवम्बर 2000 को उन्हें जबरन नाक में पाइप डालकर तरल पदार्थ दिया गया | इसके बाद इरोम चानू को बार-बार पकड़ा और रिहा किया जाता रहा है | पुलिस 14 दिन में हिरासत बढ़ाने के लिये अदालत ले जाती है | धारा 309 के अनुसार पुलिस किसी को भी एक साल ज्यादा जेल में कैद करके नहीं रख सकती | इसीलिए साल के पूरे होने से पहले दो तीन के लिए उन्हें छोड़ दिया जाता है और फिर पकड़ कर जेल में ठूस दिया जाता है | आज ये भारत सरकार के ऊपर एक कलंक है कि एक महिला 10 से ज्यादा वर्षो से अनसन पर है और उसका भारत सरकार के पास कोई मानवीय हल नहीं है | इन्होंने इस अनसन के दौरान दो रिकॉर्ड भी बना लिये | पहला सबसे अधिक दिन भूख हड़ताल करने का और दूसरा सबसे ज्यादा बार जेल जाकर रिहा होने का | इस कानून को वापस लेने की मांग के चलते शर्मिला को कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी हासिल हो चुके हैं | और विभिन्न सामाजिक संगठनों तथा नेताओं ने उन्हें समर्थन भी दिया है | इसी सिलसिले में शर्मिला को जस्ट पीस फाउंडेशन के जरिये भूतपूर्व आप नेता 'प्रशांत भूषण' ने मणिपुर की लोकसभा सीट से 'आम आदमी पार्टी' की टिकट पर 2014 के लोकसभा का चुनाव लड़ने का भी प्रस्ताव दिया किन्तु उन्होंने ये इस प्रस्ताव को मना कर दिया | अब, एक संघर्षशील औरत जो कि पिछले इतने सालों से अनसन (भूख हड़ताल) कर रही है परन्तु मीडिया उसकी तरफ देख भी नहीं रहा है | इसकी वजह क्या हो सकती है ? क्या इसकी वजह यह है की वह एक महिला है ? या फिर इसकी वजह यह है कि उसके पास अन्ना हजारे और उनकी टीम जैसी सशक्त शख्सियतें नहीं हैं | इन सब बातों से कहीं न कहीं मीडिया और सरकार दोनों ही संदेह पैदा करते हैं कि मीडिया को तो पूँजीवाद ने चपेट में ले लिया है यानि जो दिखता है वही बिकता है और सरकार की बुद्धि क्षीण हो चुकी है | वैसे मणिपुर मुख्यधारा से एक अलग राज्य माना जाता है | ऐसे में वहां के लोगों के लिए आवाज उठाने वाली इरोम चानू को शायद ही लोग न्यूज़ चैनलों पर देखना पसंद करें | 

पर शायद हो सकता है कि इस विवादास्पद एक्ट को हटाने से पूरे पूर्वोत्तर राज़्यों की हालत बहुत गंम्भीर हो सकती है | सीमा पर होने और मुख्य धारा से अलग होने की वजह से चीन और पाकिस्तान जैसे देश इन राज़्यों पर पकड़ बनाने के लिये नज़र बनाये रखते हैं | अगर यहाँ से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून हटा दिया गया तो हो सकता है कि यह राज्य देश से अलग हो जाये या वहां हिंसा फ़ैल जाये और या हो सकता है कि आतंकवादी यहाँ अपना गढ़ बना लें | पर फिर भी चाहे कुछ भी हो जाये हमें इस समस्या का कोई न कोई मानवीय हल तो ढूढ़ना ही होगा वरना यह राज्य कब तक सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून की आड़ में सेना का शोषण सहेगा और चानू जैसी महिला कब तक अनसन करेगी | आज एक चानू खड़ी है कल हो सकता है कि सारे पूर्वोत्तर राज्यों के आम नागरिक खड़े हो जायें, तो कहीं न कहीं सरकार को आग लगने से पहले ही पानी की व्यवस्था कर लेनी चाहिये | साथ ही आयरन लेडी इरोम चानू शर्मिला के संघर्ष को सम्मान देते हुये देश के शीर्ष नेताओं को उनसे मिलना चाहिये और देश में महिलाओं की गिरती साख को बचाने की कोशिश करनी चाहिये |

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